डिजिटल नगरी चौपट राजा
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(1)
अति प्राचीन काल में आत्मनिर्भर नामक राज्य पर सर्वदमन नामक राजा राज करता था।
राजा सर्वदमन के सुशासन की दो प्रमुख विशेषताएं थीं। हंसने पर सख्त पाबंदी और उसकी हां में हां न मिलाने का मतलब- सत्य का विरोध।
राजा सर्वदमन जिस सिंहासन पर बैठता था, वह कोई सिंह की आकृति वाला आसन नहीं था, बल्कि सामान्य कुर्सी ही थी। चूंकि उस सामान्य कुर्सी पर बैठने के बाद सियार को भी सिंह हो जाने जैसी फीलिंग आती थी, अतः उसे सामान्य कुर्सी होने के बावजूद सिंहासन सम्बोधित किया जाता था।
राजा सर्वदमन का स्वयं का दावा था कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में उसके जैसा अतुलनीय पराक्रमी राजा न भूतकाल में हुआ है और न भविष्य में होगा। राजा सर्वदमन के अतुलनीय पराक्रमी होने का अंदाज उस दृश्य से भी लगाया जा सकता था कि उसके सिंहासन के चारों पायों से धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया हर समय बंधे रहते थे। चारों पायों से बंधे बेचारे वे उतनी ही लम्बाई तक घूम-फिर सकते थे जितनी उनकी रस्सियों की लम्बाई रख छोड़ी गई थी। बंधकों का रिमोट राजा के हाथ में था और राजा का रिमोट कहीं दूर किसी कॉरपोरेट के हाथ में।
धर्म मिशनभाव से प्रजा को यह गूढ़ रहस्य समझाने में रत रहता था कि भ्रम ही ब्रह्म है। राष्ट्रवाद का दृढ़ मत था कि उसके तेज के आगे सूर्य भी निस्तेज है। एजेंसियां राजा के लिए ढाल का काम करती थीं और राजा के विरोधियों के लिए तलवार का। मीडिया का एकमात्र लक्ष्य था राजा के षड़यंत्रों को कूटनीति और मूर्खताओं को मास्टर स्ट्रोक सिद्ध करते रहना।
शासन पर मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए राजा सर्वदमन सदैव तरकश में छह घातक तीर रखता था- कॉस्ट्यूम मोह, कैमराकांक्षा, प्रचारपिपासा, अहंकार, आत्ममुग्धता और मिथ्याभाषण।
रात में राजा देर से सोता था, ताकि देर रात तक कॉस्ट्यूम चेंज करता रहे और सुबह जल्द उठ जाता था, ताकि फटाफट कॉस्ट्यूम चेंज करना शुरू कर सके।
राजा को कैमरे में कैद होने की इस हद तक लत थी कि किसी दीवार पर 'आप सीसीटीवी कैमरे की नजर में हैं', लिखा पढ़कर जहां जन सामान्य में डर पैदा होता था, वहीं राजा सर्वदमन की बांछें खिल उठती थीं।
अपने प्रचार के मामले में वह अन्य राज्यों के राजाओं से असंख्य योजन आगे था। अन्य राज्यों के राजा जहां नेकी हो जाने पर मीडिया-सोशलमीडिया पर अनायास डाल-डूल देते थे, राजा सर्वदमन मीडिया-सोशलमीडिया पर डालने ही के लिए नेकियां किया करता था।
अपने अहंकार की तुष्टि के लिए राजा अपने ही हाथों अपने ऊपर चंवर डुलाने का एक्शन बराबर करता रहता था।
राजा सर्वदमन की आत्ममुग्धता का कोई पारावार नहीं था। एक दिवस शिकार के लिए गया राजा जंगल में जब पांच मिनट तक अपनी धज नहीं देख पाया, तो उसके प्राण सूखने लगे। जंगल में दर्पण की व्यवस्था थी नहीं और शिकार की प्लानिंग और हथियारों के चयन की हड़बड़ी में सबके मोबाइल भी राजमहल ही में छूट गए थे। वह तो एक हांका लगाने वाला अपनी वाटर बोटल से गड्ढे में पानी भरकर राजा को धज देख लेने का जुगाड़ नहीं करता, तो उस बियाबान में मुख्य शिकारी का खुद शिकार होना तय था।
आ हा हा हा! राजा के मिथ्याभाषण के तो कहने ही क्या थे? वह राज्य में भूकम्प आने का दावा करता था और पत्ता तक नहीं हिलता था। भूकम्प आने वाला उसका दावा ऑन रिकॉर्ड होने पर भी वह अपने दावे से पलट कर कह डालता था कि देखो, मैंने तो पहले ही दावे के साथ कह दिया था कि मेरे रहते राज्य में पत्ता तक नहीं हिल सकता।
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जुलाई 02, 2022
(2)
सही राय देने यानी दोहरे होकर जी, हुजूर कहने के लिए राजा सर्वदमन के मातहत एक भारी भरकम अमात्यमण्डल था। यह अलग बात है कि अमात्यमण्डल में अकेला शांतिरिपु ही अमात्य-महामात्य सबकुछ था, बाकी तो बस मण्डल था।
महामात्य शांतिरिपु की हैसियत इस बात से लगाई जा सकती थी कि वह राजा सर्वदमन के दोनों हाथ था। दायां भी और बायां भी।
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, महामात्य शांतिरिपु शांति का शत्रु था। महामात्य शांतिरिपु ही ने राजा सर्वदमन को सुशासन का रहस्य बता रखा था कि महाराज, शांतिपूर्वक शासन करने के लिए राज्य में हर घड़ी अशांति बनाए रखना बेहद जरूरी होता है।
इस हेतु राजा सर्वदमन ने जब राज्य के नागरिकों को लड़ाकर दो भागों में विभाजित करने के हथकण्डे अपनाने का आदेश दिया, तो महामात्य शांतिरिपु ने सुझाया कि महाराज 2जी का जमाना लद गया। अब दुनिया 5जी-6जी की ओर बढ़ रही है। अतः नागरिकों को सिर्फ दो भागों में बांटने से बात नहीं बनेगी। चिरकाल तक राज करने के लिए प्रजा को कई भागों में बांटकर रखना जरूरी होता है, बल्कि मजा तो तब है जब नागरिकों को कई भागों में बांटते रहने के बजाय हर नागरिक कई भागों में बांट दिया जाए।
गुणों के मामले में राजा सर्वदमन खुद भले ही अधूरा था, पर वह गुणग्राहक पूरा था। उसने शांतिरिपु के गुणों को पहचाना और जो शांतिरिपु अमात्य लायक समझा गया था, इस शानदार सलाह के बाद महामात्य बना दिया गया।
राजा सर्वदमन राज्य में बराबर अशांति मेंटेन रखने की जिम्मेदारी महामात्य शांतिरिपु को सौंपकर निश्चिंत हो गया। महामात्य शांतिरिपु ने भी अपने पद की जिम्मेदारी और कर्तव्य का हमेशा ध्यान रखा और राज्य में अशांति बनाए रखने को लेकर कभी शिकायत नहीं आने दी। उसने प्रजा को सदैव बेचैन रखा, ताकि राजा चैन से राजा बना रह सके।
महामात्य शांतिरिपु के सद्प्रयासों से हालात यहां तक अशांत रहते थे कि नागरिक प्रथम तो परस्पर सलाम-नमस्ते ही नहीं करते थे और सलाम-नमस्ते करते भी थे, तो एक-दूसरे को सबक सिखाने के उद्देश्य से करते थे।
लोग इस कदर गुस्से से भरे रहते थे कि जूते-चप्पल बजाय पहनकर चलने के, तानकर चलते थे।
सम्पूर्ण राज्य में सिंगल सिटीजन के भी शांत रहने का मतलब था, इंद्र का सिंहासन डोलाने के लिए किसी ऋषि द्वारा तपस्या शुरू कर डालना। अतः किसी नागरिक के क्षणिक शांति रखते ही महामात्य शांतिरिपु के सिपाही उसे अशांतिभंग के अपराध में पकड़ कर कारागार में डाल देते थे।
बहुधर्मी लोगों को धर्मों के नाम पर लड़ाया जाता था। जहां एक धर्म के लोग होते, वहां जातियों के नाम पर भिड़ाया जाता और एक जाति के लोग होने पर गौत्रों के नाम पर। एक गौत्र वालों में उपगौत्रों की दीवारें खड़ी कर जूतम-पैजार कराई जाती थी।
प्रजा में लड़ाई-झगड़े की खबर नहीं मिलने पर महामात्य शांतिरिपु तत्काल काम पर लगता था कि मेरे होते यह अघट कैसे घट गई?
महामात्य शांतिरिपु के क्रियाकलापों से राज्य में अशांति का यह आलम था कि विश्राम की मुद्रा में खड़ा नागरिक भी उलटी गुलेल का लुक देता था।
महामात्य शांतिरिपु के कारनामों से राजा सर्वदमन भी राज-काज में अशांति का महत्व जान चुका था। यही कारण है कि एक दफा सड़क महकमा सम्भाल रहे शांतिप्रिय अमात्य ने राजा सर्वदमन से निवेदन किया, "महाराज! राज्य में हर तरफ तू-तड़ाक, गाली-गलौच, दंगे-फसाद चल रहे हैं। कोई कुल्ला भी कर रहा होता है, तो लगता है बंदूक अपनी नाल खुद साफ कर रही है। अशांति मानवता के लिए अशुभ होती है, महाराज।"
राजा सर्वदमन उस पर फट पड़ा, "अपनी सड़कछाप सलाह अपने ही पास रखा करो। जिसे तुम अशांति बता रहे हो, वही तो मेरे सुशासन की टीआरपी है।"
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जुलाई 13, 2022
(3)
बंधुआ न्यूज चैनलों पर घंटों अपना महिमा मण्डन सुनने-देखने के बाद भी जब समय नहीं कटा, तो राजा सर्वदमन नेलकटर लेकर नाखून काटने लगा।
राजा सर्वदमन अपने नाखून खुद काटने लगा, ताकि राज्य के नाम के अनुरूप प्रजा में आत्मनिर्भर बनने का संदेश जा सके।
वह जैसे-जैसे अपने नाखून काटता जाता था, उसके ठीक सामने कागज-कलम लिए खड़ा उसका राजकवि वैसे-वैसे दृश्य को छंदबद्ध करता जाता था।
यों तो नेलकटर राजमहल के आसपास की छोटी-मोटी दुकानों पर भी आसानी से उपलब्ध थे, लेकिन राज्य को फुल्ली डिजिटल बनाने के लक्ष्य से राजा सर्वदमन ने नेलकटर ऑनलाइन खरीदा।
नेलकटर था तो 'मेड इन पिंगपोंग', पर स्वदेशी के हो-हल्ले को देखते हुए पिंगपोंग राज्य की निर्माता कम्पनी ने उसकी पैकिंग पर 'मेड इन आत्मनिर्भर' लिखवा दिया था। इससे आत्मनिर्भर राज्य की मुद्रा भले ही बाहर चली जाती थी, पर स्वदेशी के प्रति आग्रही नागरिकों का राष्ट्रवाद तुष्ट रहता था।
ऐसा नहीं था कि नेलकटर जैसी सामान्य वस्तु भी आत्मनिर्भर राज्य के उद्यमी नहीं बना सकते थे, बना सकते थे, लेकिन पिंगपोंग नामक राज्य के राजा से राजा सर्वदमन की प्रगाढ़ मैत्री की वजह से 'मेड इन पिंगपोंग' नेलकटरों का आयात अपरिहार्य कर दिया गया था।
राजा सर्वदमन ने नाखून काटने को ज्योंही नेलकटर उठाया, राजकवि ने कविता का श्रीगणेश किया- 'रिपुओं के शीश उड़ाने को तलवार उठाई सिंघम ने'। राजा सर्वदमन ने बायें हाथ की अंगुलियों के नाखून काटकर दायें हाथ की अंगुलियों के नाखून काटने के लिए नेलकटर को दायें से बायें हाथ में पकड़ा, तो राजकवि ने अपने राजा की वीरता का कलात्मक वर्णन किया- 'हाथों की अदला-बदली कर तलवार चलाई सिंघम ने'।
राजा सर्वदमन अपनी एक अंगुली का नाखून काटता और राजकवि से अपनी उस वीरता का काव्यात्मक बखान सुनता, ततपश्चात ही नेलकटर दूसरी अंगुली के नाखून की ओर बढ़ाता। यदि एक नाखून सम्पूर्ण कटने पर भी राजकवि राजा सर्वदमन के उस पराक्रम को काव्य में नहीं बांध पाता, तो राजा सर्वदमन तब तक उस कटे हुए नाखून को ही काटने का अभिनय जारी रखता, जब तक कि राजकवि उस दृश्य को छंदबद्ध नहीं कर देता था।
हाथों-पैरों की बीसों अंगुलियों के नाखून काटते-काटते राजकवि ने निम्नलिखित मजेदार कविता लिख मारी-
रिपुओं के शीश उड़ाने को तलवार उठाई सिंघम ने।
हाथों की अदलाबदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
खड़ग एक हाथ दो और दुश्मन की संख्या बीस लाख,
सबकी गर्दन यों काटी काटी हों गाजर बीस लाख,
आसन पर बैठे-बैठे ही तलवार चलाई सिंघम ने।
हाथों की अदला-बदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
पांच मिनट में रण जीता हल्की सी लीनी अंगड़ाई,
थकने-वकने की बात दूर शिकन-विकन तक ना आई,
देवों ने पुष्प वृष्टि की तलवार चलाई सिंघम ने।
हाथों की अदलाबदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
राजा सर्वदमन ने सच्ची कविता रचने पर अपने राजकवि को एक नाखून बराबर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं अर्थात बीस लाख स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं।
राजकवि को इतनी बड़ी भेंट देना बनता भी था, क्योंकि राजा के लिए सच्चा कवि वही होता है जो नेलकटर को तलवार लिखदे, एक नाखून की तुलना एक लाख दुश्मनों से करदे और नाखूनों में खून नहीं होने के बावजूद राजा द्वारा उनके काटे जाने पर अपनी कलम से खून की नदियां बहादे।
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जुलाई 16, 2022
(4)
महामात्य शांतिरिपु ने अपने रणनीतिक कौशल से आत्मनिर्भर राज्य के नागरिकों को मोटा-मोटी तीन श्रेणियों में बांट रखा था। भक्त, विरोधी और मूर्ख।
महामात्य शांतिरिपु के तमाम हथकण्डों के बावजूद जो उक्त श्रेणी विभाजन से बच-खुच गए थे, वे समझदार थे। मूर्ख इस सीमा तक मूर्ख होते थे कि वे खुद को समझदार मानते थे और समझदारों को मूर्ख।
भक्तों का मिशन था अपने आराध्य राजा सर्वदमन से भिन्न मत रखने वालों को ईश्वर विरोधी मानना और उन्हें चिढ़ाने के लिए जीभें दिखाते रहना। विरोधियों का काम था, भक्तों द्वारा जीभें दिखाए जाने पर जवाब में अंगूठे दिखाना। यदि समझदार दोनों पक्षों को समझाते कि बजाय एक-दूसरे को जीभें-अंगूठे दिखाने के हम सबको मिलकर राजा सर्वदमन को नीति विरुद्ध कार्य करने पर मुट्ठियां तानकर दिखानी चाहिएं, तो मूर्ख भक्तों के खेमे में खड़े होकर समझदारों को जीभें दिखाने लगते थे।
राजा सर्वदमन ने आटे पर पुराना टैक्स बढ़ा दिया और नमक पर नया टैक्स लगा दिया। उसे आशंका हुई कि प्रतिक्रिया में मुट्ठियां तन सकती हैं। उसने महामात्य शांतिरिपु को इशारा किया और शांतिरिपु ने भक्तों को। फिर क्या था, महामात्य शांतिरिपु का इशारा पाते ही भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़े। सैकड़ों चिढ़ाती हुई जीभें अपनी ओर बढ़ती देख, विरोधी भी छतों-बलकोनियों पर से जीभें दिखाने वालों को अंगूठे दिखाने लगे।
समझदारों ने दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश की, तो ऑनलाइन मचानों पर चढ़कर मूर्खों ने उन्हें जीभें और अंगूठे दोनों दिखाने शुरू कर दिए।
दृश्य ऐसा मनोरंजक बन पड़ा कि भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब आटा-नमक का भाव भूल गए।
यह आत्मनिर्भर राज्य का फुल टाइम खेला था। राजा सर्वदमन अनीति करके महामात्य शांतिरिपु को इशारा करता। महामात्य शांतिरिपु भक्तों को इशारा करता। महामात्य शांतिरिपु का इशारा पाते ही भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़ते। सैकड़ों चिढ़ाती जीभें अपनी ओर बढ़तीं देख, विरोधी छतों-बालकोनियों पर से जीभें दिखाने वालों को अंगूठे दिखाने लगते। समझदार दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करते, तो ऑनलाइन मचानों पर चढ़कर मूर्ख समझदारों को जीभें और अंगूठे दोनों दिखाने लगते।
दृश्य ऐसा मनोरंजक बन पड़ता कि भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब राजा सर्वदमन की अनीति भूल-भाल जाते।
एक बार जीभें दिखाकर चिढ़ाने के उद्देश्य से भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों के यहां पहुंचे। जब बदले में अंगूठे दिखाने वाले विरोधी नहीं दिखे, तो भक्तों को बड़ी निराशा हुई कि आज तो वार खाली चला गया।
चिढ़ने के लिए शिकार न मिले, तो चिढ़ाने वाला अपने से चिढ़ने लगता है। अतः उस हादसे के बाद से भक्त जीभें दिखाने वाले प्रोजेक्ट पर तभी निकलते थे, जब उन्हें दरबारी सूत्रों से पुख्ता सूचना मिल जाती थी कि चिढ़ने वाले घरों पर ही मौजूद हैं, निकल लो। जीभों का जवाब अंगूठों से देने वाले भी काम-धंधे छोड़-छाड़ कर घरों ही पर रहने लगे थे कि आने दो जीभें दिखाने वालों को।
चूंकि परस्पर चिढ़ाने के लिए मनुष्य के पास जीभ एक ही होती है, जबकि अंगूठे दो। सो, जीत के अहसास के बावजूद भक्तों के मन में यह कसक रहती थी कि हाय! हम सौ का मुकाबला वे पचास होकर ही कर लेते हैं।
मजे की बात थी कि महीने में दो-चार बार तो भक्त इस कसक के याद आने पर ही डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़ते थे।
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जुलाई 18, 2022
(5)
राजा सर्वदमन का दृढ़मत था कि ई-रिक्शा, ई-बैंकिंग, ई-मेल, ई-सिगरेट, ई-कॉमर्स की तर्ज पर जिस दिन आत्मनिर्भर राज्य की तमाम भाषाओं-बोलियों के तमाम शब्दों से पहले 'ई' लगा दी जाएगी, उसी दिन राज्य में डिजिटल क्रांति हो जाएगी।
राजा सर्वदमन डिजिटल क्रांति के मजे जानता था। डिजिटल क्रांति के बाद वे लोग भी बसों, ट्रेनों, हवाईजहानों के किराए और टाइम टेबल देखते रह सकते हैं, जिन्हें कभी कहीं नहीं जाना होता। परीक्षाएं ऑनलाइन हो जाने से नकल के पुर्जों पर जाया होने वाला समय और कागज दोनों बचते हैं। डिजिटल क्रांति उपरांत जेबकतरे प्रमोट होकर ठग बन सकते हैं। रियल लाइफ के कष्टों से मुक्ति के लिए वर्चुअल लाइफ रामबाण होती है।
सूर्योदय का वक्त था। राजा सर्वदमन मुकुट धारण किए सिंहासन पर आरूढ़ था। सूरज उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेर रहा था। राजा सर्वदमन यदि रात में भी मुकुट धारण कर सिंहासन पर आरूढ़ हो जाता, तो उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेरने के लिए सूरज को रात में भी निकलना पड़ता था।
भक्तों का तो यहां तक दावा था कि एक रात उनका महापराक्रमी राजा सर्वदमन मुकुट धारण कर सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, लेकिन पूरी रात गुजरने पर भी उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेरने सूरज नहीं आया। फिर क्या था, कुपित राजा सर्वदमन ने सुबह उदय होते ही भरे दरबार में बुलाकर सूरज की ऐसी क्लास लगाई कि बेचारा रात में निकलने को सदा के लिए तरस गया। वह तो सूरज ने राजा सर्वदमन से अपने अपराध के लिए साष्टांग क्षमा मांग ली थी, अन्यथा वह उसका हमेशा के लिए दिन में भी निकलना बैन कर देता।
राजा सर्वदमन ने सरकण्डे की कलम काली स्याही वाली दवात में डुबो रखी थी और हिन्दी-अंग्रेजी के विभिन्न शब्दकोश खोलकर फैला रखे थे। उसे हिन्दी शब्दकोशों में प्रकाशित शब्दों से पहले ईख वाली 'ई' लिखनी थी और अंग्रेजी शब्दों से पहले 'E' for Elephant.
राज्य को डिजिटल बनाने पर आमादा राजा सर्वदमन ने राज्यभर में फैले हिन्दी वर्णमाला के विशेषज्ञ विद्वानों से इमली वाली 'इ' और ईख वाली 'ई' की मात्राशक्ति का भेद पहले ही समझ लिया था। साथ ही उसने हिन्दी-अंग्रेजी के दो-दो प्रूफरीडर भी तैनात कर रखे थे, ताकि वह कहीं हिन्दी शब्द के पहले 'E' for Elephant और अंग्रेजी शब्द से पहले ईख वाली 'ई' न लिख बैठे। राजा सर्वदमन की जैसी शिक्षा-दीक्षा हुई थी, उसकी कलम से ऐसा उलटफेर होता रहता था।
अंग्रेजी शब्दों से पहले 'E' for Elephant लिखने का काम उसने हिन्दी प्रोजेक्ट के बाद करने की सोची। दरअसल अंग्रेजी वाले काम में समय और मेहनत कम लगनी थी, क्योंकि उस जमाने में भी अंग्रेजी की 'E' तो सिर्फ 'E' for Elephant ही होती थी, लेकिन हिन्दी में 'इ' से इमली और 'ई' से ईख के अंतर वाला लफड़ा भारी था।
राजा सर्वदमन से उसके तकनीकी सलाहकार ने करबद्ध निवेदन किया कि महाराज, डिजिटल क्रांति हिन्दी-अंग्रेजी शब्दों के पहले क्रमशः ईख वाली 'ई' और 'E' for Elephant लिखनेभर से नहीं होगी। तकनीक और ज्ञान-विज्ञान को उन्नत करना होगा।
इतना सुनते ही भड़ककर राजा सर्वदमन ने अपने तकनीकी सलाहकार को देश निकाला दे दिया।
राजा सर्वदमन अपने दो कदमों से तीनों लोक नापता रहता था, सो भलीभांति जानता था कि जिन अंग्रेजीभाषी राज्यों में डिजिटल क्रांति हो चुकी थी, उन्होंने भी वह उपलब्धि अपने अंग्रेजी शब्दों के पहले सिर्फ 'E' for Elephant लिखकर ही अर्जित की थी।
उधर तकनीकी सलाहकार देशनिकाले पर रवाना हुआ और इधर राजा सर्वदमन एकाग्र होकर हिन्दी शब्दों से पहले ईख वाली 'ई' लिखने में जुट गया।
आत्मनिर्भर राज्य में डिजिटल क्रांति बस 'ई' भर दूर है।
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जुलाई 20, 2022
(6)
राजा सर्वदमन ने श्वेत चादर बिछे रुई वाले गद्दे पर सेमल भरे मसनद के सहारे अधलेटे, चिंतन की कुछ ऐसी मुद्रा बना रखी थी कि कोई छूकर भी नहीं बता सकता था कि मसनद और राजा में से राजा कौनसा था?
अचानक राजा सर्वदमन के दायें कान के पास एक मच्छर भिनभिनाया। उसने 'मेड इन पिंगपोंग' मोस्क्यूटो बैट से चटाक सी मच्छर को मौत के घाट उतार डाला। मच्छर रक्त चूसक होता है। सो, राजा सर्वदमन भला मच्छर को खुद के साथ वैसा करने की छूट कैसे दे सकता था, जैसा वह खुद प्रजा के साथ करता था।
मच्छर का आखेट करते में मोस्क्यूटो बैट से उसके नाक पर हल्की सी खरोंच भी आई थी, पर दर्द महसूस करने के बजाय वह दर्प से भर उठा था, क्योंकि मोस्क्यूटो बैट इम्पोर्टेड था।
ज्योतिषियों ने राजा सर्वदमन की ग्रहदशा देखकर प्राणलेवा बला टलने पर संतोष की सांस ली थी और महामात्य शांतिरिपु से असंख्य महामृत्युंजय जाप तुरंत शुरू कराने को कहा था। राजा सर्वदमन के स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना के लिए राज्य में स्थान-स्थान पर दिन-रात हवन-पूजन चलने लगे थे।
घटना स्थल पर अनुपस्थिति के कारण से राजकवि को राजा सर्वदमन के वीरोचित कार्य को सजीव छंदबद्ध करने से चूकने का बेहद मलाल रहा था, हालांकि उस यादगार नुकसान की भरपाई राजकवि ने बाद में मच्छरों को धिक्कारने वाले कवित्त रचकर करली थी।
राजा सर्वदमन की उस शानदार उपलब्धि के जश्नस्वरूप बंधुआ न्यूज चैनल ब्रेकिंग न्यूजों से अट गए थे और उनके न्यूज रूम अखाड़ों में बदल गए थे। अगले दिन अखबारों में राजा सर्वदमन की अविस्मरणीय वीरता और अस्त्र-शस्त्र संचालन कौशल को लेकर विशेष सम्पादकीय और लेख लिखे गए थे।
बंधुआ न्यूज चैनलों की बहसों का सार संक्षेप कुछ यूं सा रहा था कि राजमहल में मच्छर घुसाने के लिए भक्तों ने विरोधियों को जिम्मेदार ठहराया था, तो विरोधियों ने भी राजा सर्वदमन पर मोस्क्यूटो बैट बनाने वाली विदेशी कम्पनी से सांठगांठ का आरोप लगाया था। विरोधियों के इस आरोप पर भारी हंगामा हुआ था कि स्वदेशी का हिमायती कहलाने वाले ने विदेशी औजार से स्वदेशी जीव की हत्या कर डाली। बंधुआ न्यूज चैनलों की बहसों में भागीदार झल्लाते रहे थे और एंकर चिल्लाते रहे थे।
भक्तों ने मच्छर को शोषक और राजा सर्वदमन को सर्वहारा बताया था। विरोधी राजा सर्वदमन द्वारा भारी टैक्स वसूली के आंकड़े गिनाते हुए मच्छर के समर्थन में कूद पड़े थे कि जो प्रजा का खून चूसता हो, उसका एक मच्छर द्वारा खून चूसने में क्या गलत है?
राजा सर्वदमन के हाथों मारे गए मच्छर का दर्जनों चिकित्साशास्त्रियों ने बिना देखे ही पोस्टमार्टम कर-कर के स्पष्ट किया था कि वह किस आकार-प्रकार का मच्छर था और उस प्रजाति के मच्छर सिर्फ राजाओं को ही क्यों काटना चाहते हैं?
सुरक्षा विशेषज्ञों ने मांग की थी कि तुरंत राजा सर्वदमन की सुरक्षा व्यवस्था अपग्रेड कर, उसके अंगरक्षकों को हथियारों की जगह मोस्क्यूटो बैट थमाए जाएं।
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के सभी क्रियाकलाप मोस्क्यूटो बैट, मच्छरदानी, मच्छर संहारक स्प्रे, क्रीम, पावडर, अगरबत्ती वगैरह बनाने वाली कम्पनियों द्वारा प्रायोजित रहे थे।
स्वास्थ्य विभाग ने राज्य की हर दीवार पर राजा सर्वदमन के मच्छर मारते के फोटो सहित उसके शौर्य वाले स्लोगन और नारे लिखवा दिए थे, ताकि पढ़-पढ़कर नागरिक गर्वित होते रहें और मच्छर लज्जित।
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जुलाई 22, 2022
(7)
उसका नाम तो कुछ और था, पर वह हर समय अपने राज्य के नागरिकों के भविष्य की चिंता करता रहता था, अतः भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब उसे चिंतामणि पुकारते थे।
चिंतामणि नाम उसे मूर्खों ने व्यंग्य के लहजे में दिया था, जिसके लिए भक्त मूर्खों के आभारी थे। विरोधी चिंतामणि से सिर्फ इसलिए सहानुभूति रखते थे कि वह अपने तर्कों से भक्तों और मूर्खों को आईना दिखाता रहता था। समझदार शायद अतिरिक्त समझदार थे, इसलिए चिंतामणि की हल्की बातों को गम्भीरता से लेते थे और गम्भीर बातों को हल्के में।
चिंतामणि अध्ययनशील और व्यवहारकुशल तो था ही, उसका हास्यबोध भी लाजवाब था।
चिंतामणि भक्तों का विरोधी नहीं था। बस, राजा सर्वदमन के प्रति उनकी भक्ति से असहमति रखता था। चिंतामणि और विरोधियों में यह अंतर था कि भक्तों के जीभें दिखाने पर विरोधी जहां उन्हें अंगूठे दिखाते थे, चिंतामणि हंसने लगता था।
विरोधियों के अंगूठे दिखा दिए जाने पर भक्त अपने जीभें दिखाने को 'प्रोजेक्ट सार्थक हुआ' मानने लगते थे, लेकिन चिंतामणि के हंस देने पर यों तड़तड़ाने लगते थे, मानो किसी ने खौलते तेल में पानी के छींटे मार दिए हों।
मूर्ख भले ही शुद्ध भक्त नहीं थे, लेकिन भक्त शुद्ध मूर्ख भी थे। भक्त और मूर्ख चिंतामणि के बोलने को भौंकना कहते थे।
चिंतामणि भी उनके कहे का बुरा नहीं मानता था और हंसकर कहता था कि हां, वह ऐसा कुत्ता है, जो नागरिक अधिकारों की रखवाली करता है और चोरों पर भौंकता है।
चिंतामणि द्वारा शासन की आलोचना किए जाने को भी भक्त राजा सर्वदमन की ही निंदा समझते थे।
चिंतामणि यदि इतना भर ही कह देता कि जो हो, राजा सर्वदमन है ईमानदार, तो भी भक्त आंखें तरेरने लगते थे कि शर्म नहीं आती राजा सर्वदमन के बारे में झूठ फैलाते हुए।
चिंतामणि की बातों का जवाब भक्त कुतर्कों से देते थे। जैसे चिंतामणि रसोई गैस की बेतहाशा बढ़ी कीमतों पर चिंता प्रकट करता, तो भक्त पलटवार कर पूछते कि क्यों, राजा सर्वदमन के सिंहासनारूढ़ होने से पहले तो घर-घर में रसोई गैस के कुएं हुआ करते थे?
चिंतामणि कहता, "जहां शिक्षण संस्थाओं से अधिक धर्मस्थल हों, उस राज्य के नागरिकों के कतई अच्छे दिन नहीं आ सकते।"
भक्त उसे समझाने लगते, "पिछले जन्म में भजन-पूजन नहीं किया, तो इस जन्म में भोगना पड़ रहा है। यदि इस जन्म में भजन-पूजन नहीं करेंगे, तो अगले जन्म में फिर भोगना पड़ेगा, समझे।"
चिंतामणि ने शिकायत की, "आम नागरिक को हर काम के लिए कई-कई दफ्तरों के कई-कई चक्कर काटने पड़ते हैं। राजा सर्वदमन को अपने अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी चाहिए।"
एक भक्त ने व्यंग्यबाण छोड़ा, "चंद्रमा धरती के चक्कर काटता है। धरती सूरज के चक्कर काटती है। सूरज आकाश गंगा के चक्कर काटता है। इस चक्करबाजी के लिए भी राजा सर्वदमन को ही दोषी ठहरा दो? यदि चक्कर काटना गलत होता, तो राजा सर्वदमन अबतक सौरमण्डल की गति नहीं बंद कर देता?"
भक्तों की पैरवी में एक मूर्ख ने हस्तक्षेप किया, "हर समय राजा सर्वदमन के खिलाफ आंय-बांय बकते रहते हो, कितनी दलाली मिलती है राजा सर्वदमन के दुश्मनों से?"
चिंतामणि सहजता से बोला, "पूरी डेढ़ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मासिक। एक करोड़ विरोधी देते हैं और पचास लाख समझदार।"
मूर्ख झल्लाया, "क्यों मूर्खतापूर्ण बकवास कर रहे हो?"
चिंतामणि ने हंसकर कहा, "भाईसाहब, शुरुआत तो आपने की थी।"
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जुलाई 24, 2022
(8)
राजा सर्वदमन के आत्मनिर्भर राज्य में डिजिटलक्रांति भले ही होने को थी, पर न्यूजक्रान्ति हो चुकी थी।
हर नागरिक इधर से खबर लेता रहता था और उधर को खबर देता रहता था। यदि कोई किसी खबर से चूक जाता था, तो बाकी लोग उसका मजाक उड़ाने लगते थे कि लो, इतनी बड़ी खबर है और इसे खबर ही नहीं है?
खबरें बड़े चाव से सुनी-सुनाई जाती थीं। खबर सुनाने वाला एक ही खबर को सौवीं बार भी यों सुनाता था जैसे पहली बार सुना रहा हो, तो उसी खबर को सौवीं बार सुनने वाला भी ऐसे सुनता था जैसे पहली बार सुन रहा हो।
खबरों को लेकर प्रजा के मन में यह भाव रहता था कि जिंदगी छोटी है और खबरें ज्यादा। अतः खबरें यों बटोरी जाती थीं जैसे आंधी के आम बटोरे जाते हैं।
खबर सुनने-सुनाने की ऐसी हुड़क थी कि दो लोगों के मिलने पर दोनों एक-दूसरे से बजाय कुछ और पूछने के यही पूछते थे कि और सुनाओ क्या खबर है? मजे की बात थी कि वे एक दिन में जितनी बार भी मिलते थे, हर बार यही पूछते थे। हर नागरिक के पास दो ही काम थे, जुगाली की खबरें सुनना और खबरों की जुगाली करना।
राजा सर्वदमन के सुशासन में विवेक-बुद्धि, सत्य-अहिंसा, शिक्षा-स्वास्थ्य, रोजी-रोटी आदि का तो अकाल रहता था, लेकिन खबरों का कभी अकाल नहीं रहता था। दर्शकों से अधिक न्यूज चैनल थे और पाठकों से अधिक अखबार।
राजा सर्वदमन के सिंहासन के पाये से बंधा मीडिया खबरों की दुकान, गोदाम, कारखाना सब था। बंधुआ मीडिया खबरें तलाशता-जुटाता नहीं, गढ़ता था और देता नहीं, फैलाता था।
लोग वर्क फ्रॉम होम टाइप रात-दिन घर में लेटे-बैठे खबरें ही सुनते-पढ़ते रहते थे। कोई घर से निकलता भी था, तो या तो किसी से खबर लेने निकलता था या किसी को खबर देने निकलता था।
नाना प्रकार की खबरें हुआ करती थीं।
पछतावे की खबरें होतीं थी- हाय! इतनी बड़ी घटना हो गई और हमें खबर तक नहीं हुई।
अचम्भे की खबरें होती थीं- ओहो! हमारी खबर और हमें ही खबर नहीं?
गर्व की खबरें होती थीं- खबर छोटी हो या बड़ी, सबसे पहले अपन को ही मालूम चलती है।
धिक्कार की खबरें होती थी- दुनिया जहान की खबरों में डूबे रहते हो और खुद की खबर ही नहीं है।
स्वीकार की खबरें होती थीं- आपने तो तुरंत खबर दे दी थी, लेकिन मैंने ही गौर नहीं किया।
या तो एक व्यक्ति दूसरे को तीसरे के बारे में खबर दे रहा होता था या तीसरा दूसरे से पहले के बारे में खबर ले रहा होता था।
इस चिंता तक की खबरें होती थीं कि देखो, क्या जमाना आ गया? सबकी खबरें रखने वाले अपने से बेखबर रहने लगे हैं।
विशेष खबरें राजा सर्वदमन को लेकर होती थीं अथवा कह सकते हैं कि राजा सर्वदमन को लेकर जो खबरें होती थीं, वे ही विशेष होती थीं।
एक दिवस ज्योंही राजा नहाकर स्नानघर से निकला, त्योंही न्यूज चैनलों ने ताबड़तोड़ ब्रेकिंग न्यूज दागीं। एक न्यूज चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज चलाई- राजा नहाया। दूसरे न्यूज चैनल ने खुशी जाहिर की- राजा आज भी नहाया। तीसरे न्यूज चैनल ने अटकलें लगाईं- राजा क्यों नहाया? चौथे न्यूज चैनल ने नई जानकारी दी- राजा पहली बार नहाया। पांचवें न्यूज चैनल ने आत्मनिर्भरता की पुष्टि की- राजा खुद नहाया। छठे न्यूज चैनल ने रहस्योद्घाटन किया- राजा पानी से नहाया। सातवें न्यूज चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज में गर्मी भरी- राजा गर्म पानी से नहाया। आठवें न्यूज चैनल ने स्थिति और साफ की- राजा साफ पानी से नहाया। नौवें न्यूज चैनल ने गुप्त जानकारी दी, "राजा स्नानघर में नहाया। दसवें न्यूज चैनल ने राहतभरी ब्रेकिंग न्यूज चलाई- राजा आज तो नहाया।
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जुलाई 26, 2022
(9)
सुबह दस बजे के आसपास का समय था। आत्मनिर्भर राज्य के सेवाकर्मी दफ्तरों के लिए घरों से वैसे ही निकाले जा चुके थे, जैसे अशुद्ध पते लिखे लिफाफे डाक के डिब्बों से निकाले जाते हैं।
दिनभर के प्रोग्राम पूछने महामात्य शांतिरिपु राजदरबार में पहुंचा। सिंहासन पर आरूढ़ राजा सर्वदमन अपने दोनों हाथों से खुद पर चंवर डुला रहा था, भले ही हाथों में चंवर नहीं थे।
महामात्य शांतिरिपु ने झुककर प्रणाम किया। राजा सर्वदमन ने खुद के हाथों खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय स्थगित कर पूछा, "मेरा आज का प्रोग्राम नहीं पूछोगे महामात्य शांतिरिपु?"
महामात्य शांतिरिपु बोला, "वही तो पूछने आया हूं महाराज, लेकिन आपका खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय देखकर नहीं पूछा कि हो सकता है आपका आज दिनभर खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय करने का ही प्रोग्राम हो।"
राजा सर्वदमन ने भावुक होते हुए कहा, "वाह, महामात्य शांतिरिपु तुम्हारे उत्तम विचार सुनकर मन भावुक हो गया।...... क्यों न आज भावुक होने का ही प्रोग्राम रखा जाए?"
सिंहासन के पाये से बंधा मीडिया राजा सर्वदमन की जय बोलते हुए चिल्लाया, "आपकी और मेरी टीआरपी के लिहाज से गजब आइडिया है महाराज।"
महामात्य शांतिरिपु ने मीडिया को उतावलेपन के लिए लताड़ा, "महाराज के भावुक होने वाले सीन ठीक से फिल्माना, वरना न सिर्फ विज्ञापन वाला राशन-पानी बंद कर दूंगा, बल्कि कारागार में भी डाल सकता हूं।
स्वच्छता अभियान के शुभारम्भ के अवसर पर महाराज ने फर्श पर पड़े दो तिनके एक ही बार में बीने थे, जबकि तुम्हारे फिल्मांकन से लगा था कि महाराज एक ही तिनका दो बार में बीन रहे हैं। मीडिया को महाराज की हर हरकत का मूल उद्देश्य पहचानना चाहिए। स्वच्छता अभियान का आयोजन महाराज ने किसी जगह-वगह की सफाई के लिए नहीं किया था, अपने विरोधियों के सफाये के लिए किया था।"
बंधुआ मीडिया ने क्षमा मांगते हुए आश्वस्त किया, "भावुकता की शूटिंग को लेकर निश्चिंत रहें महामात्य शांतिरिपु। महाराज की सिंगल आंख से रिसा सिंगल आंसू भी ऐसा फिल्मा दूंगा कि देखने वालों को लगेगा हिमालय के सारे ग्लेशियर एक साथ पिघल रहे हैं।"
सिंहासन के पाये से बंधे मीडिया का सत्य के प्रति भयंकर समर्पण भाव महससू कर, राजा सर्वदमन भावुक हो गया।
बंधुआ मीडिया से घिरा राजा सर्वदमन भावुक होने राजमहल से निकल पड़ा।
घर के बाहरी चौक में तीनेक साल का कुपोषित बच्चा मिट्टी खा रहा था। बच्चे की निर्धन मां उससे मिट्टी थूक देने की अनुनय-विनय कर रही थी। राजा सर्वदमन उस दृश्य को देखकर ज्योंही भावुक हुआ, बंधुआ मीडिया के कैमरामैनों ने खटाक-खटाक सीन क्लिक कर डाला। तत्काल न्यूज चैनलों पर दृश्य सहित खबरें चल पड़ीं 'प्रभु की बाललीला और मिट्टी खाते शिशु-मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन की मां की अभिलाषा देखकर भावुक हुआ राजा सर्वदमन'।
उद्देश्य प्राप्त होते ही राजा सर्वदमन राजमहल की ओर लौटने लगा। रास्ते में झोंपड़ी के द्वार पर उदास बैठी एक लाचार वृद्धा को देख, राजा सर्वदमन ने उसके पैर छूये और आगे बढ़ गया।
कुपोषित बच्चे के मिट्टी खाने वाले दृश्य से मिले माइलेज के हिसाब-किताब के चक्कर में राजा सर्वदमन भावुक होना भूल गया। कोई पचास कदम दूर जा चुकने पर अचानक उसे भावुक न होना याद आया। वह उलटे पांव लौटा। उसने वृद्धा के दुबारा पैर नहीं छूये, सिर्फ भावुक हुआ और राजमहल की ओर चल पड़ा।
न्यूज चैनलों पर दूसरा दृश्य देखने के बाद तो तय करना मुश्किल होगया कि राजा सर्वदमन और उसके भक्तों में से कम भावुक कौन हुआ?
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जुलाई 28, 2022
(10)
महामात्य शांतिरिपु का एक ही काम था राज्य में अशांति बनाए रखना। अशांति के लिए उसने शांति समितियों का पिरामड खड़ा कर रखा था। नाम भले ही उनका शांति समिति हुआ करता था, लेकिन काम उनका नाम के विपरीत था। यदि कोई शांति समिति शांति भंग कराने में लापरवाही बरत जाती थी, तो महामात्य शांतिरिपु उस शांति समिति को ही भंग कर देता था।
शांति समितियां नागरिकों को लड़ाने में व्यस्त रहती थीं, लेकिन यदि कभी लोग स्वविवेक से ही लड़ने-झगड़ने लगते थे, तब भी शांति समितियां शांति से नहीं बैठती थीं, वे आपस में लड़ने-झगड़ने लगती थीं।
महामात्य शांतिरिपु आदमी की शक्ल में शतरंज था। उसका हर बोल 'दांव' होता था और हर कदम 'चाल'।
वह अपने हुनर में इतना पारंगत था कि दो मूक-बधिरों में गाली-गलौच करा सकता था। दो अपंगों में लातें चलवा सकता था। बिना हाथों वाले नागरिक परस्पर घूंसे मार सकते थे। महामात्य शांतिरिपु के आंख के एक इशारे पर दो अंधे न सिर्फ एक-दूसरे को आंखें दिखाने लगते थे, बल्कि एक-दूसरे को आंखें निकालने तक की धमकियां देने लगते थे।
उसने अमात्यपद की शपथग्रहण करते ही राजा सर्वदमन को सुझा दिया था कि महाराज, अशांति ही शांतिपूर्वक शासन की कुंजी है।
"अशांति के लिए क्या विशेष करना होगा, महामात्य शांतिरिपु?", राजा सर्वदमन ने पूछा।
महामात्य शांतिरिपु बोला, "शासन का ताना-बाना इस कौशल से बुना जाए कि लोग विमर्श के बजाय बहस करें। तर्कों पर भावनाएं हावी हों। भय, लालच, ईर्ष्या, अहंकार, झूठ, बेईमानी, प्रतिशोध की आपूर्ति बराबर बनी रहे। नागरिकों को हर समय विभाजित रखा जाए, ताकि वे सवाल आपसे नहीं, आपस में करें।
ऐसे लोगों का बड़ा समूह निर्मित किया जाए जो चंद्रमा को बजाय उपग्रह मानने के, देवता मानें और अपने कुतर्कों से प्रमाणित करते रहें कि चंद्रमा को इसलिए धरती की परिक्रमा करनी पड़ रही है, क्योंकि धरती पर हमारे महापराक्रमी राजा सर्वदमन का एकक्षत्र राज है।"
राजा सर्वदमन और महामात्य शांतिरिपु ने मिलीभगत कर ऐसी नीतियां और कानून बनाए कि हर तरफ अशांति ही अशांति रहने लगी।
अशांति के चमत्कारी लाभों से राजा सर्वदमन जान चुका था कि बाहरी अशांति के लिए भीतरी अशांति जरूरी है। पूर्णतः सामाजिक अशांति तभी सम्भव है जब प्रत्येक परिवार अशांत रहे और पारिवारिक अशांति के लिए व्यक्तिगत अशांति अनिवार्य है।
एक दिन यह जानने के उद्देश्य से महामात्य शांतिरिपु नगरभ्रमण पर निकला कि मेरे होते कहीं शांति तो नहीं है। उसने देखा कि बरगद की छांव में चबूतरे पर बैठे दो व्यक्ति शिक्षा-स्वास्थ्य, महंगाई-बेरोजगारी को लेकर बातें कर रहे थे। महामात्य शांतिरिपु के कान खड़े हुए। वह दोनों को लड़ाने के उद्देश्य से उनके पास गया और पूछा, "क्यों भाई यह मंगलवार किस दिन होता है?"
एक ने बताया, "मंगलवार सोमवार के अगले दिन होता है शायद।"
दूसरे ने उसकी बात काटी, "क्यों गलत जानकारी दे रहे हो। मंगलवार तो बुधवार से एक दिन पहले होता है।"
पहले ने सफाई दी, "गलत जानकारी देने का आरोप क्यों लगा रहे हो? मैंने पहले ही 'शायद' बोल दिया था।"
दूसरे ने बात बढ़ाई, "मैंने नोट किया है, तुमसे जब किसी ने यह भी पूछा है कि क्या तुम दो पाये हो? तब भी तुमने 'शायद' बोला है।"
महामात्य शांतिरिपु देखकर खुश-खुश राजमहल की ओर लौटा कि पहले उन दोनों में तू-तू, मैं-मैं हुई, फिर एक ने बायें पैर का जूता निकाल लिया था और दूसरे ने दायें पैर का।
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जुलाई 30, 2022
(11)
राजा सर्वदमन द्वारा राजधानी के मुख्य चौराहे पर बने पुल का लोकार्पण करते ही नगर के दर्शनीय स्थलों की संख्या एक और बढ़ गई।
राजा सर्वदमन जग घूमता रहता था, सो भलीभांति जानता था कि शहर में सही जगहों पर गलत चीजें बना देने से सिटी स्मार्ट हो जाती है।
पुल उत्तर-दक्षिण बनाना था और पूर्व-पश्चिम बना दिया। लिहाजा जिन नागरिकों को पुल के ऊपर से गुजरना था, वे पुल से बचकर निकलने लगे।
कलेजा चाहिए सही जगह पर गलत पुल का शिलान्यास और उद्घाटन करने के लिए। जो भी पुल को देखता, राजा सर्वदमन की बड़ाई किए बिना नहीं रहता कि वाह महाराज! प्रजा से वसूले कर का क्या अद्भुत सदुपयोग किया है? धन तो खर्च हुआ, पर एक चीज तैयार हो गई।
सही जगह पर गलत पुल देखकर पर्यटक दांतों से जीभें काटने लगे कि हे राम! पंचतत्व से बने पुतलों ने छहतत्वों के उचित मिश्रण से क्या अनुपम कृति गढ़ डाली है। पूरे छह तत्व- सीमेंट, कंक्रीट, लोहा, बजरी, पानी और भ्रष्टाचार।
दरबारी अर्थशास्त्रियों ने राजा सर्वदमन के वित्तीय प्रबंधन की भूरी-भूरी प्रशंसा की कि महाराज ने सही जगह पर गलत पुल सही समय से बनवा दिया, अन्यथा देर करने पर इससे आधे आकार का गलत पुल ही इससे दो गुना राशि खा जाता।
चिंतामणि ने चिंता जाहिर की, "नागरिकों की मेहनत की कमाई से बना पुल नागरिक ही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं?"
भक्त चिंतामणि पर टूट पड़े, "नागरिक उस पुल का इस्तेमाल क्यों करेंगे, जो उनके लिए बना ही नहीं है। हमारे महापराक्रमी राजा सर्वदमन को एक स्मारक बनवाना था और उसने बनवा दिया।"
एक दिन राजा सर्वदमन का ही रथ गलत पुल की वजह से सही जगह जाम में फंस गया, हालांकि भक्तों का दावा था कि उनका राजा सर्वदमन चाहता, तो पूर्व-पश्चिम रखे पुल को पलक झपकते तर्जनी पर उठाकर उत्तर-दक्षिण धर सकता था, लेकिन मजबूरी यह थी कि उसी ने पुल पर जगह-जगह 'हैंडल विद केयर' लिखवा दिया था।
राजा सर्वदमन ने एट द स्पॉट महामात्य शांतिरिपु को बुलाकर सलाह मांगी कि गलत पुल बनवा तो सही जगह दिया, पर अब इसका किया क्या जाए?
महामात्य शांतिरिपु ने राजा सर्वदमन को समझाया कि महाराज सकारात्मक सोचिए। अव्यवस्था को कुव्यवस्था में बदल देना ही डवलपमेंट होता है।
हालांकि राजमहल लौटकर महामात्य शांतिरिपु ने अपील जारी की, "नागरिकों को सही जगह पर बने गलत पुल का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।"
अपील का किसी ने नोटिस ही नहीं लिया।
महामात्य शांतिरिपु ने विज्ञप्ति जारी की, "उक्त पुल का इस्तेमाल करने वाले नागरिकों को उचित ईनाम दिया जाएगा।"
नागरिकों ने ईनाम और मेहनत का अंतर निकाला और विज्ञप्ति को भी महत्व नहीं दिया।
महामात्य शांतिरिपु ने आदेश दिया, "नागरिक कहीं भी जाएं, उक्त पुल का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा।"
आदेश के बावजूद नागरिक उदासीन बने रहे।
आखिर महामात्य शांतिरिपु को अपनी औकात पर आना पड़ा, "नागरिक कहीं जाएं चाहे नहीं जाएं, उक्त पुल का इस्तेमाल तो करना ही पड़ेगा।"
उसकी अंतिम चेतावनी का ऐसा असर हुआ कि तमाम नागरिक सही जगह पर बने गलत पुल का इस्तेमाल वैसे ही करने लगे जैसे बच्चे पार्क में बनी फिसलपट्टी का करते हैं। घूम-घूमकर एक तरफ से चढ़ना और दूसरी तरफ को उतरना।
राजा सर्वदमन के राज में असली विकास था ही ऐसी चीजें बनाना जो काम न आएं, बस दिखें, बल्कि काम न आती हुई दिखें।
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अगस्त 1, 2022
(12)
राजा सर्वदमन के अमात्यमण्डल में महामात्य शांतिरिपु के अलावा भी अनेक अमात्य थे, हालांकि सिद्धांत में हर विभाग का एक अमात्य था, लेकिन व्यवहार में हर एक अमात्य बिना विभाग का सा था।
करने को कुछ था नहीं और व्यस्त दिखना जरूरी था, सो हर अमात्य तीन काम अपनी ओर से करता रहता था- मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना।
अमात्यों की बंधी-बंधाई दिनचर्या थी- शयन त्याग, दैनिक क्रियाओं से निवृत्ति, पूजा-पाठ, अल्पाहार, सजना-धजना, लालबत्ती लगे रथों पर सवार होकर निकलना, जहां-तहां मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना।
एक बार को अमात्य दैनिक क्रियाओं की निवृत्ति, पूजा-पाठ, अल्पाहार वगैरह छोड़ सकते थे, लेकिन सज-धजकर लालबत्ती लगे रथों पर सवार हो, मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना नहीं छोड़ सकते थे।
जब भी किसी दरबारी को अमात्यपद की शपथ लेते सुना जाता, तो उसकी लिखित शपथ में शब्द चाहे कुछ भी होते, ध्वनि यही निकलती कि मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं कि मैं नियमपूर्वक मुआयना करूंगा, नाराज होऊंगा और लताडूंगा।
कोई भी अमात्य मुआयना करने, नाराज होने और लताड़ने में लापरवाही नहीं बरत सकता था, क्योंकि राजा सर्वदमन अमात्यों का भी मुआयना करता रहता था, उन पर नाराज होता रहता था और उनको लताड़ता रहता था।
अपने अमात्यों का मुआयना करते रहना, उन पर नाराज होते रहना और उन्हें लताड़ते रहना राजा सर्वदमन की भी मजबूरी थी, क्योंकि विरोधी उस अमात्य को हटाने की मांग करने लगते थे कि जो न मुआयना करता है, न नाराज होता और न लताड़ता है, वह काहे का अमात्य है?
दरअसल मीडिया में मनोरंजक खबरें होती थीं कि फलां अमात्य ने फलां जगह मुआयना किया, फलां पर नाराज हुआ और फलां को लताड़ा। अतः अमात्य बनाए जाने से पहले हर भावी अमात्य की एक ही इच्छा रहती थी कि किसी दिन वह भी अमात्य बने, ताकि कहीं का मुआयना करे, किसी पर नाराज हो और किसी को लताड़े। मीडिया में मेरी भी मनोरंजक खबरें हों कि मैंने वहां-वहां मुआयना किया, उस-उस पर नाराज हुआ और उस-उस को लताड़ा।
अमात्य तीनों काम क्रमबद्ध करते थे। सबसे पहले मुआयना करते, फिर नाराज होते और अंत में लताड़ते। ऐसा कभी नहीं होता था कि किसी अमात्य ने पहले किसी को लताड़ दिया हो, फिर उस पर नाराज हुआ हो और अंत में मुआयना किया हो।
अपनी दिनचर्या के प्रति निष्ठा का यह हाल था कि सड़क निर्माण अमात्य मुआयना करने, नाराज होने और लताड़ने के काम पर निकला हुआ था। उसने सड़क के बीचों-बीच गड्ढे देखे। एक गड्ढे के पास रथ रुकवाया। रथ में बैठे-बैठे ही गड्ढे का मुआयना किया, गड्ढे पर नाराज हुआ और गड्ढे को लताड़ा। ऐसा उसने एक-एक कर हर गड्ढे के साथ किया।
एक सुबह राजा सर्वदमन अपने सभी अमात्यों को संग लेकर निकला कि चलो, मैं बताता हूं मुआयना कैसे किया जाता है, नाराज कैसे हुआ जाता है और लताड़ा कैसे जाता है?
राजा सर्वदमन सहित सभी अमात्यों के लालबत्ती लगे रथ अचानक एक विद्यालय के मुख्य द्वार पर थमे। मुआयना किया, तो पाया कि विद्यालय में न एक भी विद्यार्थी है और न एक भी अध्यापक। राजा सर्वदमन वहां उपस्थित चौकीदार पर खूब नाराज हुआ और उसे खूब लताड़ा।
चौकीदार ने हाथ जोड़ते हुए अवगत कराया कि महाराज! आज विद्यालय में रविवार का अवकाश है।
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अगस्त 4, 2022
(13)
राजा सर्वदमन के शासन काल में अखबारों में उजाले को पीठ दे, परछाइयां लंबी करने की होड़ा-होड़ी रहती थी। नागरिक मोतियाबिंद का उपचार जानना चाहते, तो अखबार वाले काजल-सुरमे के विज्ञापन छापने लगते थे। इस तुर्रे के साथ कि पाठकों की यही डिमाण्ड है।
पत्रकार कमलपत्र की भांति निर्लिप्त पत्रकारिता करते थे। यानी जिस अखबार में काम करते थे, उसे भी नहीं पढ़ते थे। खबरों को विज्ञापन वैसे ही ढंके रहते थे जैसे जल को जलकुम्भी।
अखबारों में छपने वाले राशिफल इतने विश्वसनीय और सटीक होते थे कि लोग लड़ाई-झगड़ों का मानस भी उस दिन का राशिफल पढ़कर ही बनाते थे।
जनचेतना के मामले में सभी अखबार बहुत सचेत थे। प्रजा को रोज बताते रहते थे कि राजा सर्वदमन के क्या अधिकार हैं और प्रजा के क्या कर्तव्य हैं? राजा सर्वदमन के लिए प्रजा है, ना कि प्रजा के लिए राजा सर्वदमन।
सम्पादक बेबाक और निडर होते थे। अखबार में प्रकाशित लेखों के नीचे कोष्ठक में यह छापना कभी नहीं भूलते थे- ये लेखक के अपने विचार हैं। जैसे लेखक ने अपने लेख में लिखा- सूर्य पूर्व में उदय होता है (ये लेखक के अपने विचार हैं)। राजा सर्वदमन पंचतत्व से बना है (ये लेखक के अपने विचार हैं)।
चटाई पर बैठा चिंतामणि अखबार पढ़ कम, देख अधिक रहा था, क्योंकि राजा सर्वदमन के सुशासन की वजह से अखबार पढ़े कम, देखे अधिक जाते थे।
चाय पीते समय राजा सर्वदमन से कुछेक बिस्कुट के टुकड़े कालीन पर बिखर गए थे। जिन्हें चूहे कुतरने लगे। चिंतामणि ने अखबार में उसी दृश्य की बड़ी सी रंगीन फोटो मय शीर्षक देखी- राजा सर्वदमन के आसपास अठखेलियां करते सिंह शावक।
राजा सर्वदमन ऐसे अखबार को करोड़ों स्वर्णमुद्राओं के विज्ञापन देता था। यह कहते हुए कि सत्य छापने वाले अखबार को प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए।
चिंतामणि अखबार के पन्ने उलट-पलट रहा था कि किसी ने द्वार की सांकल बजाई। उसने उठकर द्वार खोला और देखा कि एक अखबार की गाड़ी और चार लोग खड़े हैं।
"आप हमारा अखबार खरीदते हैं?" दो-तीन स्वर उठे।
"जी, खरीदता हूं", कहते हुए चिंतामणि ने उन्हें उनका अखबार दिखाया।
चारों आगुंतक बड़े खुश हुए। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति उनका छापा अखबार खरीद भी रहा है। उन्होंने चिंतामणि को आंवला हेयर ऑयल की दो शीशियां भेंट करते हुए चार फोटुएं लीं।
"आप हमारा अखबार कबसे खरीद रहे हैं?" उनमें से एक ने पूछा।
चिंतामणि ने बताया, "चालू माह से ही। पहले हम दूसरा अखबार खरीदते थे, क्योंकि उस अखबार वाले ग्राहक को प्लास्टिक की बाल्टी, काँच के प्याले, झाड़ू, टी-सेट, शैम्पू आदि गिफ्ट देते थे। एक दिन मेरी अर्धांगनी ने पूछ लिया कि भैया अटम-सटम ही बांट-बांटकर टरकाते रहोगे या कभी नमक, मिर्च, मसालों का भी नम्बर आएगा ? उस अखबार वाले ने हाथ खड़े कर दिए कि बहिन जी नमक, मिर्च, मसाले कहां से दें? हमें खबरों में डालने के लिए ही पूरे नहीं पड़ते। उन्होंने गिफ्ट नहीं बदला, तो हमने अखबार बदल दिया।"
"और कोई सलाह-सुझाव हमारे अखबार को लेकर?" उन्होंने जाते-जाते पूछा।
चिंतामणि बोला, "भविष्य में हेयर ऑयल ही भेंट देना पड़े, तो कृपया सरदर्द और तनाव से मुक्ति वाला दिया करें, ताकि आपका अखबार खोलने से पहले और पढ़ने के बाद काम आ सके।"
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अगस्त 5, 2022
(14)
राजा सर्वदमन दरबार लगाकर जनसुनवाई किया करता था। नागरिकों के सीधे और छोटे सवालों के टेढ़े और लम्बे जवाब देने को जनसुनवाई कहा जाता था।
चिंतामणि भी कुछेक चिंताओं से राजा सर्वदमन को अवगत कराने राजदरबार में हाजिर हुआ। धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया को सिंहासन के पायों से बंधा देखकर वह हल्का सा मुस्कुरा दिया।
जब कोई राजा अपनी प्रजा के भयंकर कल्याण पर उतारू हो, तो उसके लिए किसी के हल्का सा मुस्कुरा देने के भी अपने खतरे होते हैं, लिहाजा राजा सर्वदमन ने तुरंत रिमोट से धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियों और मीडिया की रस्सियां ढीली कीं। रस्सियां ढीली होते ही धर्म ने आंखें तरेरीं, राष्ट्रवाद ने घूंसा दिखाया, एजेंसियों ने बेड़ियां बजाईं और मीडिया ने विषबाण छोड़े। जहां तक रस्सियों की पहुंच थी वहां तक पहुंचकर सबने एक सुर में चिंतामणि को हड़काया कि राजा सर्वदमन के शासक रहते लेशमात्र भी खी-खी, हें-हें नहीं चलेगी।
जनसुनवाई का शुभारम्भ हुआ।
चिंतामणि ने विषय प्रवेश किया, "जय हो महाराज! आपके कई अभिन्न सखा राजकोष के चूना लगाकर विदेश प्रस्थान कर गए।"
राजा सर्वदमन ने पल्ला झाड़ा, "सीमेंट का आविष्कार नहीं हुआ है, तो बेचारे चूना ही लगाते।"
महामात्य शांतिरिपु उछल पड़ा, "अद्भुत, अतुलनीय। महाराज, ब्रह्माण्ड में आप अकेले ज्ञानी हैं जो उस उत्पाद का भी नाम जानते हैं जिसका अविष्कार ही नहीं हुआ।"
चिंतामणि ने साफ किया, "वह वाला चूना नहीं महामात्य शांतिरिपु, राजकोष का धन लूटकर उड़नछू हो गए।"
राजा सर्वदमन ने पूछा, "राजकोष में धन किसका था?"
चिंतामणि ने बताया, "प्रजा का।"
राजा सर्वदमन ने दो टूक आदेश दिया, "तो प्रजा ही से वसूला जाए। जिनका धन गया है वे ही करें भरपाई। सौ घरों की बस्ती में दस लोग बिजली चोरी करते हैं, तो उन दस चोरों का भार भी नब्बे साहूकारों के बिजली बिलों में जोड़ा जाता है कि नहीं जोड़ा जाता है?
यह लाभ भी तो देखो कि जिन्हें जो ले जाना था, एक ही बार में ले गए, वरना यहां रहते, तो जिंदगीभर लूट-पाट मचाये रखते।
फिर यह आर्थिक समृद्धि क्या कम गर्व की बात है कि जितना दुश्मन पड़ौसी राज्य का वार्षिक बजट होता है, उससे अधिक तो मेरे सखा मेरे राजकोष से अर्धवार्षिक लूट-लाटकर ले जाते हैं।"
चिंतामणि ने हस्तक्षेप करना चाहा, "लेकिन चौकीदार तो.....?"
राजा सर्वदमन ने उसे बीच में टोका, "हां मैं ही हूं चौकीदार, लेकिन चौकीदार चोरी होने पर ही जवाबदेह होता है, लूट-पाट होने पर नहीं, समझे।"
चिंतित चिंतामणि बड़बड़ाया, "नागरिकों का जीना दूभर है। किसी के पास कोई काम नहीं है।"
महामात्य शांतिरिपु ने चिंतामणि को झिड़का, "तू अपने काम से काम रख। महाराज सबको काम दे देंगे, तो उनके खुद के पास क्या काम रह जाएगा? राजा सर्वदमन के राज में कहां काम की कमी है? जनसुनवाई में आना भी तो काम ही है? जब देखो तब काम, काम। काम मांगने के सिवा और कोई काम नहीं है तेरे पास? महाराज के पास एक यही काम थोड़े है कि हर एक को काम देते फिरें?
भक्तों से सीख कि महाराज की जय बोलने से बड़ा कोई काम नहीं है दुनिया में।"
सिंहासन के पायों से बंधे धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया समवेत बोले, "वाह! महामात्य शांतिरिपु यह हुई ना काम की बात।"
चिंतामणि के सवाल उठाने से आगबबूला राजा सर्वदमन ने उसे उम्रकैद की सजा सुना डाली।
चिंतामणि बोला, "क्षमा करें महाराज, आपके राज्य का नागरिक होने के बाद मुझे अलग से उम्रकैद की कहां जरूरत है?"
अपने सुशासन की प्रशंसा सुनकर राजा सर्वदमन ने चिंतामणि को क्षमा कर दिया।
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अगस्त 7, 2022
(15)
जहां भक्तों को राजा सर्वदमन का रंगारंग आभार प्रकट करने की तलब लगी रहती थी, वहीं राजा सर्वदमन भी अपना रंगारंग आभार प्रकट कराने की ताक में रहता था।
थाली-कटोरी, चम्मच-चिमटा बजाते हुए भक्त राजमहल की ओर चले जा रहे थे, जैसे मनौती पूरी होने पर व्यक्ति सम्बंधित देवता के दर पर जाता है।
आत्मनिर्भर राज्य में हल्की बरसात होने से रेत उड़ना बंद हो गई थी और बंधुआ मीडिया ने अज्ञात सूत्रों से ज्ञात खबर फैला दी थी कि वह हल्की बरसात इंद्र को आदेश देकर राजा सर्वदमन ने ही कराई थी। भक्त अपने राजा सर्वदमन के उसी करिश्मे के प्रति रंगारंग आभार प्रकट करने राजमहल को जा रहे थे।
बंधुआ मीडिया का दावा था कि समस्या को उठाने और समाधान कराने के पीछे उसी की मेहनत थी, वरना राजाओं को कहां पता होता है कि दुनिया में हवा और रेत भी होती है।
उसी ने राजा सर्वदमन तक खबर पहुंचाई थी कि महाराज, हवा के साथ रेत उड़ने से रेत के कण भक्तों की आंखों में गिर रहे हैं और वे आपकी प्रचार सामग्री पर छपी आपकी तस्वीरें नहीं देख पा रहे हैं।
प्रचारजीवी के लिए एक पल दृष्टि ओझल हो जाने का मतलब होता है, नशे के आदी को नशे की खुराक का न मिलना।
राजा सर्वदमन चाहता, तो महामात्य शांतिरिपु को कहकर राज्य की हवा बंद करा सकता था या धरती को रेत विहीन करा सकता था, लेकिन उसने इंद्र से हल्की बरसात कराने का विकल्प चुना।
राजा सर्वदमन ने पहले इंद्र को हवन-पूजन से मनाने की कोशिश की। बात नहीं बनी, तो युद्ध के लिए ललकारा। राजा सर्वदमन की ललकार सुनते ही इंद्र लाइन पर आ गया और बोला, "हे महापराक्रमी! बरसात तो हल्की-भारी जैसी चाहो, जब चाहो कर दूं, लेकिन समुद्र के पानी को भाप बनाकर बादल में बदलने का काम तो सूरज का है।"
राजा सर्वदमन के सामने नई आफत आ खड़ी हुई कि अब सूरज से बात कैसे हो? दिन में खुद को समय नहीं मिलता और रात में सूरज नदारद।
खैर, एक दिन राजा सर्वदमन ने अपने दिनभर के कार्यक्रम रद्द कर सूरज से बात की। सूरज ने भी हाथ जोड़ दिए कि महाराज, समुद्र को पानी देने के लिए राजी करलो, तो मैं तो अभी पानी को भाप और भाप को बादल बनाने में जुट जाऊं।
समुद्र से पानी मांगने की बात आते ही राजा सर्वदमन पसीने से पानी-पानी हो गया।
उधर पानी के लिए राजा सर्वदमन तीन दिन तक समुद्र से अनुनय-विनय करता रहा, इधर उड़-उड़कर रेत के कण नेत्रों में पड़ने से भक्त उसकी फोटुएं नहीं देख पा रहे थे।
आखिर राजा सर्वदमन ने समुद्र को समझाया, "मैं कहीं जाने के लिए रास्ता-वास्ता नहीं मांग रहा। भाप-बादल वगैरह बनाने के लिए जरा सा पानी चाहिए, जो बरसकर अंततः लौट भी तुम्हारे ही पास आएगा।"
कैशबैक स्कीमों की तरह घाटे का सौदा न होना जान कर समुद्र सूरज को पानी देने के लिए तैयार हो गया ।
जब सब बाधाएं पार हो गईं, तो राजा सर्वदमन के पराक्रम से भयभीत इंद्र ने पूछा, "महाराज! सिर्फ रेत ही पर छिड़काव करना है या पानी पीने के लिए भी चाहिए?"
राजा सर्वदमन बोला, "बस, रेत ही पर छिड़काव करदो। पीने का पानी तो मेरे राज्य में हर दुकान पर बोतलों में मिल जाता है।"
यों समुद्र ने पानी दिया। सूरज ने समुद्री पानी से भाप और बादल बनाए। इंद्र ने हल्की बरसात से छिड़काव कर रेत को उड़ने से रोका।
इतने परिश्रम के बाद तो भक्तों द्वारा अपने राजा सर्वदमन का रंगारंग आभार बनता भी था।
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अगस्त 9, 2022
(16)
आत्मनिर्भर राज्य के मध्यवर्ग का क्लियर कट कहना था कि सुविधाएं हैं जहां, हम हैं वहां। अतः मध्यवर्गीय नागरिक बिजली होने पर बाहर नहीं दिखते थे और बिजली नहीं होने पर घर में नहीं टिकते थे।
बिजली कटौती की जानकारी के लिए वे नियमित अखबार खरीदते थे। हालांकि कायल टेलीविजन के थे कि अफवाह हो या झूठी खबर टेलीविजन वाले फैलाने में चौबीस घण्टे नहीं लेते।
सूर्योदय हो चुका था। भोली चिड़ियों को पता होता कि उनके चहचहाने से जागकर मनुष्य उधम मचाना शुरू कर देगा, तो शायद वे न चहचहातीं। दूधिये और हॉकर घर-घर दस्तक दे रहे थे। भले ही दूध में दूध उतना ही होता था, जितनी अखबार में खबर।
चिंतामणि बिस्तर छोड़ना चाहता था, लेकिन बिस्तर उसे नहीं छोड़ रहा था। तभी अखबार गिरने की आवाज सुनकर वह उठा, इस हड़बड़ी के साथ कि उससे पहले अखबार परिवार का कोई दूसरा न उठा ले। अखबार के लिए चिंतामणि की हड़बड़ी वाजिब थी। उस दौर में चित्रपट का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखना एडवांस होने की कसौटी थी, तो रोज सबसे पहले अखबार देखना इंटेलेक्चुअल होने की। चित्रपट एक शो भी देर से देखने का मतलब था, बिना नहाए कपड़े बदल लेना तथा एक का भी देखा हुआ अखबार देखने का अर्थ था नहाने के बाद फिर से वही कपड़े पहन लेना।
चिंतामणि ने तकिया दीवार से लगाया और पीठ तकिए से। वह एल आकार में बैठ अखबार खोलकर विज्ञापनों में से समाचार बीनने लगा, जैसे एक-मेक हो चुके राई और सरसों के दाने छांट रहा हो।
रोज की तरह आदि से अंत तक अखबार राजा सर्वदमन की यश गाथाओं से पटा पड़ा था। उसके साहस ही साहस की खबरें थीं कि राजा सर्वदमन ने चूसकर खाने वाला आम काटकर खाया और काटकर खाने वाला आम चूसकर। राजा सर्वदमन ने गाय के साथ सेल्फी ली, तो सम्पादक ने उसकी तस्वीर के साथ दावा छाप दिया कि गाय के साथ सेल्फी लेना ही सच्ची गौ सेवा है।
अचानक चिंतामणि की नजर अपने इलाके में बिजली कटौती वाली खबर पर पड़ी। खबर देखकर उसके पास परिचितों से मिलने-जुलने या घूमने-फिरने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
सुबह अखबार में अपने क्षेत्र में बिजली कटौती की खबर देखकर मध्यवर्गीय लोग अपनी आगे की कार्य योजना बनाते थे। बिजली कटौती होने से उनके पास दो ही रास्ते बचते थे। या तो उन जानकारों के यहां मिलने-जुलने चले जाना जिनके यहां उस दिन बिजली कटौती नहीं होती थी या फिर घूमने-फिरने निकल पड़ना।
मिलने-जुलने, घूमने-फिरने निकले लोगों को देखकर ही समझा जा सकता था कि आज उनके यहां बिजली नहीं है।
बिजली होना न होना इतना मायने रखता था कि यदि किसी के यहां बिजली कटौती होती और वह किसी अन्य को कहता कि आओ आज कहीं मिल-जुल, घूम-फिर आएं, तो सामने वाला मजबूरी बता देता था कि आप ही हो आओ, हमारे यहां तो बिजली है।
भक्त विरोधियों को ताना मारते रहते थे कि बिजली कटौती करते रहने के लिए अहसान मानो राजा सर्वदमन का, अन्यथा तुम कभी का मिलना-जुलना, घूमना-फिरना भूल जाते।
अखबार वालों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि उनके यहां बिजली कटौती होने पर भी वे अखबार छाप लेते थे, ताकि अपने पाठकों को बिजली कटौती की सूचना बराबर देते रहें, क्योंकि अखबार छपते, बिकते और देखे ही इसलिए जाते थे।
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अगस्त 11, 2022
(17)
यों तो राजा सर्वदमन के राज में शिक्षण संस्थान और रोग निदान केंद्र सरकारी तथा गैरसरकारी, दोनों प्रकार के होते थे, लेकिन गैरसरकारी जहां थोड़े-बहुत उपयोगी होते थे, वहीं सरकारी सिर्फ होते थे।
उस वर्ग को छोड़ दें जो शिक्षा और इलाज मिलना भाग्य की बात मानता था, तो बाकी लोगों में महंगी शिक्षा और महंगे इलाज का जबरदस्त क्रेज था।
राजा सर्वदमन स्वयं बहुत बड़ा साक्षर था, अतः चीजों के महंगी होने के फायदे जानता था। उसके अनुसार महंगी शिक्षा और महंगा इलाज ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षा और सर्वश्रेष्ठ इलाज थे। वह अपनी प्रजा के दिल-दिमाग में गहरे बिठा चुका था कि अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षण से नहीं, धन से मिलती है और मरीज का पक्का इलाज दवा से नहीं, बिल से होता है।
प्रजा आज्ञाकारी थी ही, सो शिक्षा और इलाज के लिए गहने, जमीन, मकान सब बेच देती थी, लेकिन राजा सर्वदमन से कभी सवाल नहीं करती थी कि महाराज, भारीभरकम कर चुकाने के बावजूद सस्ती शिक्षा और सस्ता इलाज क्यों नहीं मिलते?
माता-पिता बच्चों के जन्म से पहले ही उनके प्रवेश के लिए ऐसे शिक्षण संस्थान की खोज में जुट जाते थे, जो सर्वाधिक महंगा हो, क्योंकि महंगी पढ़ाई की थर्ड डिविजन सस्ती पढ़ाई की फर्स्ट डिविजन से उत्तम मानी जाती थी।
मरीजों को छुट्टी देते समय रोग निदान केंद्र वाले यदि कम राशि का बिल बना देते थे, तो मरीजों लगता था कि वे पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं। सामान्य बुखार का बिल भी यदि लाख स्वर्ण मुद्राओं का नहीं बनता, तो मरीज की जान को नया बुखार चढ़ जाता था। मरीजों का मनोविज्ञान भांपते रहने से रोग निदान केंद्र वाले इतने दयालु बन चुके थे कि इलाज दवाओं से कम, बिल से अधिक करते थे।
शिक्षण संस्थानों और रोग निदान केंद्रों की क्षमता-योग्यता नहीं, ब्रांडिंग देखी जाती थी। कम खर्च वाले शिक्षण संस्थानों और रोग निदान केंद्रों को यह कहकर खारिज कर दिया जाता था कि जो ग्राहकों से मोटी रकम नहीं ऐंठ सकते, वे क्या तो पढ़ाएंगे और क्या इलाज करेंगे?
रोग निदान केंद्र से घर लौटने के बाद मरीज से मिलने आने वाले यह नहीं पूछते थे कि तबीयत कैसी है, बल्कि यह पूछते थे कि बिल कितने का बना? बिल की राशि जितनी अधिक होती थी, बताते समय मरीज को उतना ही अधिक आराम मिलता था।
किसी नागरिक को पता चलता कि उसके पड़ौसी का बच्चा उसके बच्चे से महंगी पढ़ाई पढ़ रहा है, तो वह तुरंत अपने बच्चे को उस शिक्षण संस्थान से छुड़ाकर पड़ौसी के बच्चे से अधिक महंगे शिक्षण संस्थान में भर्ती कराने निकल पड़ता था। अपने बच्चों को महंगी पढ़ाई पढ़ाने को लेकर नागरिकों में वैसी ही प्रतिस्पर्धा रहती थी, जैसी दीपावली पर अधिक जोरदार धमाके वाले पटाखे चलाने की रहती थी।
महंगी पढ़ाई पढ़ाना इस कदर प्रतिष्ठा की बात थी कि घर आया मेहमान मेजबान से यह नहीं पूछता था कि बच्चे को कौनसी वाली पढ़ाई पढ़ा रहे हो, बल्कि यह पूछता था कि कितने वाली पढ़ाई पढ़ा रहे हो?
पढ़ाई और इलाज अधिकतम महंगा हासिल करने के चक्कर में आत्मनिर्भर राज्य में ऐसा मनोरंजक वातावरण रहता था कि पढ़ने जाने वालों को लगता था वे इलाज के लिए जा रहे हैं और इलाज के लिए जाने वाले समझते थे वे पढ़ने जा रहे हैं।
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अगस्त 13, 2022
(18)
आत्मनिर्भर राज्य में दो-दो शब्द लिखे दो बोर्ड बारहों मास दिन-रात देखे जा सकते थे- शिक्षण संस्थाओं पर एडमिशन ओपन और दुकानों पर डिस्काउंट सेल।
पूर्ण स्वस्थ नागरिक भी एक्सपायरी डेट निकल चुकी दवाइयां सिर्फ इसलिए खरीद लाते थे कि दवा की दुकानों पर डिस्काउंट सेल लिखे बोर्ड टंगे रहते थे।
चालाक अर्थशास्त्रियों ने चुम्बक के गुण बाजार में भर दिए थे और नागरिकों को लोहा बना दिया था।अतः खरीदारी जितनी जरूरत के लिए की जाती थी, उससे कई गुना अधिक बोरियत मिटाने के लिए की जाती थी।
आत्मनिर्भर राज्य की प्रजा हर समय खरीदारी ही के चक्कर में रहती थी और खरीदारी का एक चक्र था। कुछ न कुछ खरीदते रहना, खरीदे हुए से बोर होते रहना और बोरियत से मुक्ति के लिए फिर कुछ न कुछ खरीदते रहना।
बाजार और धर्म की जुगलबंदी हो जाए, तो घोर नास्तिक भी लक्ष्मी छाप सोने-चांदी के सिक्के खरीदने लगते हैं।
बंधुआ मीडिया ने बाजार के हिसाब से पुरानों से इतर नए त्योहार गढ़ डाले थे और हर त्योहार पर खरीदारी के शुभमुहूर्त बताता रहता था। बंधुआ मीडिया ही से खरीदारों को ज्ञात होता था कि भद्रा शनि की बहिन है तथा क्या खरीदने के लिए कौनसा योग और कौनसा चौघड़िया श्रेष्ठ होता है?
खरीदारी के मामले में मुहूर्त के प्रति विश्वास इस हद तक दृढ़ था कि दवा खरीद के लिए भी शुभ-अशुभ देखा जाता था, भले मरीज की हालत कितनी भी नाजुक हो।
चिंतामणि को जुकाम था। वह दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया।
आप मेरे कहे में व्याकरण दोष निकाल सकते हैं कि इतना कहना ही पर्याप्त होता है कि दवा खरीदने गया। यह कहने की क्या जरूरत है कि दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया? दवा खरीदने दवा ही की दुकान पर तो जाया जाता है।
क्षमा करें, इतना सा व्याकरण मैं भी जानता हूं, लेकिन बाजार का व्याकरण भाषाई व्याकरण से अलग होता है। मेरी बात पूरी होने दें, मेरे 'दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया' कहने के पीछे का सारा व्याकरण आप भी समझ जाएंगे।
दवा विक्रेता चिंतामणि का परिचित था और उसका हास्यबोध भी अच्छा था। उसने दवा की पर्ची लेते हुए मजाक की, "धनतेरस के दिन भी बीमार पड़ गए क्या?"
चिंतामणि को अचानक स्मरण हुआ कि उस दिन धनतेरस थी। उसने भी मजाक का जवाब मजाक से दिया, "धनतेरस पर बीमार पड़ने के तीन शुभ-लाभ हैं। एक, आज के दिन दवा खरीदने से धनतेरस पर खरीदारी वाली परम्परा निभ जाएगी। दूसरा, धनतेरस पर जन्मे धन्वंतरि आरोग्य के देवता हैं, सो आज के दिन औषधि खरीद से उनका आभार भी प्रकट हो जाएगा। तीसरा, आज के दिन आप ही की दुकान पर सबसे कम भीड़ है।"
दवा विक्रेता ने मजाक में बढोत्तरी की, "सच कह रहे हो। अन्य दुकानदारों के यहां ग्राहकों की भारी भीड़ देखते हुए पछतावा हो रहा है कि काश! आज अपनी दवा की दुकान के आगे बर्तन लगा लेते, तो हम भी धनतेरस पर ठीकठाक कमाई कर लेते। दस दुकान छोड़कर सिंह साहब हैं दवा की दुकान वाले, दीपावली पर पटाखे बेचते हैं।"
चिंतामणि ने चिंता जाहिर की, "सिंह साहब के पास पटाखे बेचने का लाइसेंस है क्या?"
दवा विक्रेता बोला, "सिंह साहब के पास लाइसेंस ही पटाखे बेचने का है, बिना लाइसेंस के तो वह दवाइयां बेचते हैं।"
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अगस्त 15, 2022
(19)
दोपहर में राजा सर्वदमन ने छक कर पौष्टिक भोजन ग्रहण किया और चमाचम चमकते वॉशबेसिन में हाथ-मुंह धोकर साफ-स्वच्छ गद्दे पर पैर फैलाकर पसर गया।
खिड़कियों से छन-छन कर आते मंद पवन के झोंकों और जायकेदार भोजन के नशे के बावजूद जब उसे नींद नहीं आई, तो उसने मसनद के सहारे अधलेटा होकर पास पड़ा सुबह का अखबार उठा लिया। मुखपृष्ठ पर पहली ही खबर का शीर्षक देखकर उसके कमलमुख से 'बकवास' शब्द निकला और उसने अखबार को बिना खोले ज्यों का त्यों धर दिया। खबर उसके आत्मनिर्भर राज्य के किसी गांव देहात में भूख से पीड़ित बच्चों के बारे में थी।
राजा सर्वदमन ने तुरंत महामात्य शांतिरिपु को तलब किया और शिकायत की, "महामात्य शांतिरिपु, मीडिया के मेरे सिंहासन के पाये से बंधा होने के बावजूद किसी कागजी शेर ने मेरे सुशासन को बदनाम करने की हिमाकत कैसे की?"
महामात्य शांतिरिपु सविनय बोला, "महाराज! अखबार मालिक ऊलजलूल खबरों के सहारे अपने अखबार का सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए ओछे हथकंडे अपनाते रहते हैं। जब आप नित्य नियम से भोजन कर रहे हैं, तब आपके राज्य में भला भूख की समस्या कैसे हो सकती है? आपके स्वादिष्ट भोजन कर चुकने के पश्चात भी यदि कोई भूख-वूख का रोना रोता है, तो यह तो सीधे-सीधे राजद्रोह है।
आश्वस्त रहें महाराज, मैं अभी इस अखबार के मालिक और सम्पादक के पेंच कसता हूं।"
महामात्य शांतिरिपु के सत्य वचनों से गदगद होकर राजा सर्वदमन उसे राज्य के विकास और प्रजा के अच्छे दिनों के बारे में बताने लगा, "जबसे मैंने राजमहल में रहना शुरू किया है, राज्य में किसी के पास आवास की समस्या नहीं है।"
महामात्य शांतिरिपु ने राजमहल की छत की ओर इशारा करते हुए कहा, "देखिए, आपकी कृपा से आज हर नागरिक के सिर पर मजबूत छत है महाराज।"
राजा सर्वदमन बताता गया, "मैं रथ से आवागमन करता हूं, तो मैं यह कैसे स्वीकार करलूं कि मेरे राज्य का कोई नागरिक शौकिया वॉक करने के अलावा कभी पैदल चलता है? राज्य में लोग तभी पैदल चलते-भटकते थे, जब राजपद मिलने से पहले मुझे पैदल चलना-भटकना पड़ता था। आज मेरे पास न धन का अभाव है और साधन का, इसी से सिद्ध है कि मेरे राज्य के हर नागरिक के पास धन भी है और साधन भी।"
महामात्य शांतिरिपु सच का साथ देता रहा अर्थात राजा सर्वदमन की हां में हां मिलाता रहा।
राजा सर्वदमन महामात्य शांतिरिपु को अपना वस्त्रागार दिखाते हुए बोला, "लो, देखो महामात्य शांतिरिपु, मेरे राज्य के प्रत्येक नागरिक के पास कितने आकार-प्रकार के कितने ढेरों-ढेर वस्त्र हैं।
मेरा सामान्य सरदर्द होने पर ही कैसे एक से एक विशेषज्ञ चिकित्सक दौड़े आते हैं। मेरे राज में प्रजा को कितनी शानदार चिकित्सा सुविधा सुलभ है।
सर्दियों में जब मैं राजमहल में हीटर चलवा लेता हूं, तब राज्य से सर्दी सदा के लिए विदा हो जाती है और ऋतुएं केवल पांच रह जाती हैं।"
शिक्षा को लेकर महामात्य शांतिरिपु ने बड़ी शिक्षाप्रद बात कही, "आप सिर्फ साक्षर हैं, फिर भी आपके पास उच्च शिक्षा की डिग्री है महाराज। इसी से साफ है कि राज्य में न साक्षरता की कमी है और न उच्च शिक्षा की डिग्रियों की। न सिर्फ हर साक्षर के पास उच्च शिक्षा की डिग्री है, बल्कि जिसके पास उच्च शिक्षा की डिग्री है वह साक्षर भी है।"
अंत में राजा सर्वदमन ने स्वीकारा, "हां, संसार में भयंकर पीड़ा उस समय जरूर थी जब मेरे पांवों में बिवाइयां फटी हुई थीं।"
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अगस्त 17, 2022
(20)
एक दोपहर राजा सर्वदमन ने अपने राजसी वस्त्र, मुकुट आदि उतारे और मनुष्य रूप धरकर पैदल-पैदल राजधानी में यह जांचने निकला कि डिजिटल क्रांति कहां तक पहुंची?
राजा सर्वदमन बहरूपिया कला में पारंगत था ही। मनुष्य रूप में वह कहीं से राजा नहीं लगा। जैसे राजा के रूप में वह कहीं से मनुष्य नहीं लगता था।
वह अपने राज्य की कानून व्यवस्था देखने कभीकभार कोतवाल का रूप धरकर भी निकलता था। उसकी वर्दी, बातचीत का ढंग, पिनलकोड की समझ, रौब-दाब, अभद्र भाषा सब असली कोतवाल जैसे होते थे। राजा सर्वदमन कोतवाल की ऐसी नकल करता कि असली कोतवाल बगल में खड़ा कर दिया जाता, तो असली कोतवाल नकली लगता।
कहीं अपराध होने की सूचना मिलती, तो घटना स्थल पर देरी से पहुंचता और लेशमात्र भी संवेदनशीलता नहीं दिखाता। लोगों को पक्का विश्वास रहता कि कोतवाल साहब न समय के पाबंद हैं और न संवेदनशील। इसका मतलब है कि कोतवाल साहब हैं तो असली कोतवाल साहब ही।
मनुष्य रूप धरे राजा सर्वदमन ने मनुष्यों पर डिजिटिलाइजेशन का गजब असर देखा। सब लोग ऐसा व्यवहार करते दिखे जैसे उनमें प्रोग्राम फीड हों और कोई उन्हें माउस से संचालित कर रहा हो।
राजधानी के बड़े चौक-चौराहों पर प्रदूषण सूचकांक दर्शाने वाले स्वचालित डिस्प्ले बोर्ड लगे मिले, ताकि नागरिक प्रदूषण घटने पर तुरंत बढ़ाकर मेंटेन करते रहें।
वह दो-चार सरकारी दफ्तरों में घूमा। डिजिटल क्रांति की प्रगति देखकर उसे हार्दिक तसल्ली हुई कि रिश्वत ऑनलाइन भी ली जा रही थी।
उसने देखा कि कई बैंक खाताधारक अपने खातों से जालसाजों द्वारा ऑनलाइन रकम निकालने की शिकायत दर्ज कराने कोतवाली के दरवाजे पर खड़े थे। उसे दुःख नहीं, खुशी हुई कि डिजिटलाइजेशन उत्तरोत्तर सुपरिणाम दे रहा था कि कोई भी कहीं से भी किसी का भी किसी भी बैंक में जमा धन आसानी से निकाल सक रहा था, वरना एक समय था कि लोगों के अपने ही बैंक जाकर अपना ही धन निकालने में पसीने छूट जाते थे।
यह देखकर तो वह झूम ही उठा कि कोतवाल भी पीड़ितों को ऑनलाइन शिकायत करने का आदेश देकर भगा रहा था।
राजा सर्वदमन के पास उच्च शिक्षा की बिना परीक्षा के ली हुई डिग्री थी। उसने बाजार में परीक्षाओं में नकल करने के एक से एक उपकरण देखे, तो उसका मन हुआ कि क्यों न उच्च शिक्षा की एक डिग्री परीक्षा देकर भी ले ली जाए? लेकिन वह यह सोचकर आगे बढ़ गया कि राजा बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती और राजा बनने के बाद हर डिग्री ली ही जा सकती है।
राजा सर्वदमन आवासीय बस्ती में पहुंचा। शाम गहरा चुकी थी। उसे एक घर की रसोई से धुआं उठता दिखा। उसने घर के मालिक को बुलाकर नाराजगी जाहिर की, "डिजिटल युग में भी खाना ऑनलाइन नहीं मंगाते हो?"
गृहस्वामी ने उसे बिना पहचाने कहा, "दाल-चावल ऑनलाइन ऑर्डर किए थे। डिलीवरी मैन ले भी आया था, लेकिन दाल-चावल के एक भी दाने पर महापराक्रमी राजा सर्वदमन की फोटो नहीं दिखी, तो मैंने फूड पैकेट लौटा दिया।"
गृहस्वामी की राजभक्ति से प्रसन्न हो, राजा सर्वदमन ने वहीं खड़े-खड़े राजकोष से उसके बैंक खाता में एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं ऑनलाइन ट्रांसफर कीं और डिजिटल क्रांति पर गर्व करता हुआ राजमहल लौट आया।
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अगस्त 19, 2022