Friday, 19 August 2022

डिजिटल नगरी चौपट राजा


डिजिटल नगरी चौपट राजा
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                                    (1)

    अति प्राचीन काल में आत्मनिर्भर नामक राज्य पर सर्वदमन नामक राजा राज करता था।
   राजा सर्वदमन के सुशासन की दो प्रमुख विशेषताएं थीं। हंसने पर सख्त पाबंदी और उसकी हां में हां न मिलाने का मतलब- सत्य का विरोध।
    राजा सर्वदमन जिस सिंहासन पर बैठता था, वह कोई सिंह की आकृति वाला आसन नहीं था, बल्कि सामान्य कुर्सी ही थी। चूंकि उस सामान्य कुर्सी पर बैठने के बाद सियार को भी सिंह हो जाने जैसी फीलिंग आती थी, अतः उसे सामान्य कुर्सी होने के बावजूद सिंहासन सम्बोधित किया जाता था।
    राजा सर्वदमन का स्वयं का दावा था कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में उसके जैसा अतुलनीय पराक्रमी राजा न भूतकाल में हुआ है और न भविष्य में होगा। राजा सर्वदमन के अतुलनीय पराक्रमी होने का अंदाज उस दृश्य से भी लगाया जा सकता था कि उसके सिंहासन के चारों पायों से धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया हर समय बंधे रहते थे। चारों पायों से बंधे बेचारे वे उतनी ही लम्बाई तक घूम-फिर सकते थे जितनी उनकी रस्सियों की लम्बाई रख छोड़ी गई थी। बंधकों का रिमोट राजा के हाथ में था और राजा का रिमोट कहीं दूर किसी कॉरपोरेट के हाथ में।
   धर्म मिशनभाव से प्रजा को यह गूढ़ रहस्य समझाने में रत रहता था कि भ्रम ही ब्रह्म है। राष्ट्रवाद का दृढ़ मत था कि उसके तेज के आगे सूर्य भी निस्तेज है। एजेंसियां राजा के लिए ढाल का काम करती थीं और राजा के विरोधियों के लिए तलवार का। मीडिया का एकमात्र लक्ष्य था राजा के षड़यंत्रों को कूटनीति और मूर्खताओं को मास्टर स्ट्रोक सिद्ध करते रहना।
     शासन पर मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए राजा सर्वदमन सदैव तरकश में छह घातक तीर रखता था- कॉस्ट्यूम मोह, कैमराकांक्षा, प्रचारपिपासा, अहंकार, आत्ममुग्धता और मिथ्याभाषण।
    रात में राजा देर से सोता था, ताकि देर रात तक कॉस्ट्यूम चेंज करता रहे और सुबह जल्द उठ जाता था, ताकि फटाफट कॉस्ट्यूम चेंज करना शुरू कर सके।
   राजा को कैमरे में कैद होने की इस हद तक लत थी कि किसी दीवार पर 'आप सीसीटीवी कैमरे की नजर में हैं', लिखा पढ़कर जहां जन सामान्य में डर पैदा होता था, वहीं राजा सर्वदमन की बांछें खिल उठती थीं।
   अपने प्रचार के मामले में वह अन्य राज्यों के राजाओं से असंख्य योजन आगे था। अन्य राज्यों के राजा जहां नेकी हो जाने पर मीडिया-सोशलमीडिया पर अनायास डाल-डूल देते थे, राजा सर्वदमन मीडिया-सोशलमीडिया पर डालने ही के लिए नेकियां किया करता था।
   अपने अहंकार की तुष्टि के लिए राजा अपने ही हाथों अपने ऊपर चंवर डुलाने का एक्शन बराबर करता रहता था।
   राजा सर्वदमन की आत्ममुग्धता का कोई पारावार नहीं था। एक दिवस शिकार के लिए गया राजा जंगल में जब पांच मिनट तक अपनी धज नहीं देख पाया, तो उसके प्राण सूखने लगे। जंगल में दर्पण की व्यवस्था थी नहीं और शिकार की प्लानिंग और हथियारों के चयन की हड़बड़ी में सबके मोबाइल भी राजमहल ही में छूट गए थे। वह तो एक हांका लगाने वाला अपनी वाटर बोटल से गड्ढे में पानी भरकर राजा को धज देख लेने का जुगाड़ नहीं करता, तो उस बियाबान में मुख्य शिकारी का खुद शिकार होना तय था।
  आ हा हा हा! राजा के मिथ्याभाषण के तो कहने ही क्या थे? वह राज्य में भूकम्प आने का दावा करता था और पत्ता तक नहीं हिलता था। भूकम्प आने वाला उसका दावा ऑन रिकॉर्ड होने पर भी वह अपने दावे से पलट कर कह डालता था कि देखो, मैंने तो पहले ही दावे के साथ कह दिया था कि मेरे रहते राज्य में पत्ता तक नहीं हिल सकता।
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जुलाई 02, 2022
                                  

                                      (2)

     सही राय देने यानी दोहरे होकर जी, हुजूर कहने के लिए राजा सर्वदमन के मातहत एक भारी भरकम अमात्यमण्डल था। यह अलग बात है कि अमात्यमण्डल में अकेला शांतिरिपु ही अमात्य-महामात्य सबकुछ था, बाकी तो बस मण्डल था।
     महामात्य शांतिरिपु की हैसियत इस बात से लगाई जा सकती थी कि वह राजा सर्वदमन के दोनों हाथ था। दायां भी और बायां भी।
     जैसा कि नाम से स्पष्ट है, महामात्य शांतिरिपु शांति का शत्रु था। महामात्य शांतिरिपु ही ने राजा सर्वदमन को सुशासन का रहस्य बता रखा था कि महाराज, शांतिपूर्वक शासन करने के लिए राज्य में हर घड़ी अशांति बनाए रखना बेहद जरूरी होता है।
     इस हेतु राजा सर्वदमन ने जब राज्य के नागरिकों को लड़ाकर दो भागों में विभाजित करने के हथकण्डे अपनाने का आदेश दिया, तो महामात्य शांतिरिपु ने सुझाया कि महाराज 2जी का जमाना लद गया। अब दुनिया 5जी-6जी की ओर बढ़ रही है। अतः नागरिकों को सिर्फ दो भागों में बांटने से बात नहीं बनेगी। चिरकाल तक राज करने के लिए प्रजा को कई भागों में बांटकर रखना जरूरी होता है, बल्कि मजा तो तब है जब नागरिकों को कई भागों में बांटते रहने के बजाय हर नागरिक कई भागों में बांट दिया जाए।
     गुणों के मामले में राजा सर्वदमन खुद भले ही अधूरा था, पर वह गुणग्राहक पूरा था। उसने शांतिरिपु के गुणों को पहचाना और जो शांतिरिपु अमात्य लायक समझा गया था, इस शानदार सलाह के बाद महामात्य बना दिया गया।
    राजा सर्वदमन राज्य में बराबर अशांति मेंटेन रखने की जिम्मेदारी महामात्य शांतिरिपु को सौंपकर निश्चिंत हो गया। महामात्य शांतिरिपु ने भी अपने पद की जिम्मेदारी और कर्तव्य का हमेशा ध्यान रखा और राज्य में अशांति बनाए रखने को लेकर कभी शिकायत नहीं आने दी। उसने प्रजा को सदैव बेचैन रखा, ताकि राजा चैन से राजा बना रह सके।
   महामात्य शांतिरिपु के सद्प्रयासों से हालात यहां तक अशांत रहते थे कि नागरिक प्रथम तो परस्पर सलाम-नमस्ते ही नहीं करते थे और सलाम-नमस्ते करते भी थे, तो एक-दूसरे को सबक सिखाने के उद्देश्य से करते थे।
    लोग इस कदर गुस्से से भरे रहते थे कि जूते-चप्पल बजाय पहनकर चलने के, तानकर चलते थे।
    सम्पूर्ण राज्य में सिंगल सिटीजन के भी शांत रहने का मतलब था, इंद्र का सिंहासन डोलाने के लिए किसी ऋषि द्वारा तपस्या शुरू कर डालना। अतः किसी नागरिक के क्षणिक शांति रखते ही महामात्य शांतिरिपु के सिपाही उसे अशांतिभंग के अपराध में पकड़ कर कारागार में डाल देते थे।
     बहुधर्मी लोगों को धर्मों के नाम पर लड़ाया जाता था। जहां एक धर्म के लोग होते, वहां जातियों के नाम पर भिड़ाया जाता और एक जाति के लोग होने पर गौत्रों के नाम पर। एक गौत्र वालों में उपगौत्रों की दीवारें खड़ी कर जूतम-पैजार कराई जाती थी।
    प्रजा में लड़ाई-झगड़े की खबर नहीं मिलने पर महामात्य शांतिरिपु तत्काल काम पर लगता था कि मेरे होते यह अघट कैसे घट गई?
   महामात्य शांतिरिपु के क्रियाकलापों से राज्य में अशांति का यह आलम था कि विश्राम की मुद्रा में खड़ा नागरिक भी उलटी गुलेल का लुक देता था।
    महामात्य शांतिरिपु के कारनामों से राजा सर्वदमन भी राज-काज में अशांति का महत्व जान चुका था। यही कारण है कि एक दफा सड़क महकमा सम्भाल रहे शांतिप्रिय अमात्य ने राजा सर्वदमन से निवेदन किया, "महाराज! राज्य में हर तरफ तू-तड़ाक, गाली-गलौच, दंगे-फसाद चल रहे हैं। कोई कुल्ला भी कर रहा होता है, तो लगता है बंदूक अपनी नाल खुद साफ कर रही है। अशांति मानवता के लिए अशुभ होती है, महाराज।"
      राजा सर्वदमन उस पर फट पड़ा, "अपनी सड़कछाप सलाह अपने ही पास रखा करो। जिसे तुम अशांति बता रहे हो, वही तो मेरे सुशासन की टीआरपी है।"
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जुलाई 13, 2022


                               (3)

     बंधुआ न्यूज चैनलों पर घंटों अपना महिमा मण्डन सुनने-देखने के बाद भी जब समय नहीं कटा, तो राजा सर्वदमन नेलकटर लेकर नाखून काटने लगा।
    राजा सर्वदमन अपने नाखून खुद काटने लगा, ताकि राज्य के नाम के अनुरूप प्रजा में आत्मनिर्भर बनने का संदेश जा सके।
    वह जैसे-जैसे अपने नाखून काटता जाता था, उसके ठीक सामने कागज-कलम लिए खड़ा उसका राजकवि वैसे-वैसे दृश्य को छंदबद्ध करता जाता था।
     यों तो नेलकटर राजमहल के आसपास की छोटी-मोटी दुकानों पर भी आसानी से उपलब्ध थे, लेकिन राज्य को फुल्ली डिजिटल बनाने के लक्ष्य से राजा सर्वदमन ने नेलकटर ऑनलाइन खरीदा।
    नेलकटर था तो 'मेड इन पिंगपोंग', पर स्वदेशी के हो-हल्ले को देखते हुए पिंगपोंग राज्य की निर्माता कम्पनी ने उसकी पैकिंग पर 'मेड इन आत्मनिर्भर' लिखवा दिया था। इससे आत्मनिर्भर राज्य की मुद्रा भले ही बाहर चली जाती थी, पर स्वदेशी के प्रति आग्रही नागरिकों का राष्ट्रवाद तुष्ट रहता था।
        ऐसा नहीं था कि नेलकटर जैसी सामान्य वस्तु भी आत्मनिर्भर राज्य के उद्यमी नहीं बना सकते थे, बना सकते थे, लेकिन पिंगपोंग नामक राज्य के राजा से राजा सर्वदमन की प्रगाढ़ मैत्री की वजह से 'मेड इन पिंगपोंग' नेलकटरों का आयात अपरिहार्य कर दिया गया था।
     राजा सर्वदमन ने नाखून काटने को ज्योंही नेलकटर उठाया, राजकवि ने कविता का श्रीगणेश किया- 'रिपुओं के शीश उड़ाने को तलवार उठाई सिंघम ने'। राजा सर्वदमन ने बायें हाथ की अंगुलियों के नाखून काटकर दायें हाथ की अंगुलियों के नाखून काटने के लिए नेलकटर को दायें से बायें हाथ में पकड़ा, तो राजकवि ने अपने राजा की वीरता का कलात्मक वर्णन किया- 'हाथों की अदला-बदली कर तलवार चलाई सिंघम ने'।
    राजा सर्वदमन अपनी एक अंगुली का नाखून काटता और राजकवि से अपनी उस वीरता का काव्यात्मक बखान सुनता, ततपश्चात ही नेलकटर दूसरी अंगुली के नाखून की ओर बढ़ाता। यदि एक नाखून सम्पूर्ण कटने पर भी राजकवि राजा सर्वदमन के उस पराक्रम को काव्य में नहीं बांध पाता, तो राजा सर्वदमन तब तक उस कटे हुए नाखून को ही काटने का अभिनय जारी रखता, जब तक कि राजकवि उस दृश्य को छंदबद्ध नहीं कर देता था।
    हाथों-पैरों की बीसों अंगुलियों के नाखून काटते-काटते राजकवि ने निम्नलिखित मजेदार कविता लिख मारी-
रिपुओं के शीश उड़ाने को  तलवार उठाई सिंघम ने।
हाथों की अदलाबदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
खड़ग एक हाथ दो और दुश्मन की संख्या बीस लाख,
सबकी गर्दन यों  काटी  काटी हों  गाजर  बीस  लाख,
आसन  पर  बैठे-बैठे  ही  तलवार  चलाई  सिंघम  ने।
हाथों की अदला-बदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
पांच  मिनट  में  रण  जीता  हल्की सी लीनी अंगड़ाई,
थकने-वकने की बात दूर शिकन-विकन तक ना आई,
देवों  ने  पुष्प  वृष्टि  की  तलवार  चलाई  सिंघम ने।
हाथों की अदलाबदली कर तलवार चलाई सिंघम ने।।
    राजा सर्वदमन ने सच्ची कविता रचने पर अपने राजकवि को एक नाखून बराबर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं अर्थात बीस लाख स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं।
    राजकवि को इतनी बड़ी भेंट देना बनता भी था, क्योंकि राजा के लिए सच्चा कवि वही होता है जो नेलकटर को तलवार लिखदे, एक नाखून की तुलना एक लाख दुश्मनों से करदे और नाखूनों में खून नहीं होने के बावजूद राजा द्वारा उनके काटे जाने पर अपनी कलम से खून की नदियां बहादे।
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जुलाई 16, 2022

                                   (4)

    महामात्य शांतिरिपु ने अपने रणनीतिक कौशल से आत्मनिर्भर राज्य के नागरिकों को मोटा-मोटी तीन श्रेणियों में बांट रखा था। भक्त, विरोधी और मूर्ख।
    महामात्य शांतिरिपु के तमाम हथकण्डों के बावजूद जो उक्त श्रेणी विभाजन से बच-खुच गए थे, वे समझदार थे। मूर्ख इस सीमा तक मूर्ख होते थे कि वे खुद को समझदार मानते थे और समझदारों को मूर्ख।
     भक्तों का मिशन था अपने आराध्य राजा सर्वदमन से भिन्न मत रखने वालों को ईश्वर विरोधी मानना और उन्हें चिढ़ाने के लिए जीभें दिखाते रहना। विरोधियों का काम था, भक्तों द्वारा जीभें दिखाए जाने पर जवाब में अंगूठे दिखाना। यदि समझदार दोनों पक्षों को समझाते कि बजाय एक-दूसरे को जीभें-अंगूठे दिखाने के हम सबको मिलकर राजा सर्वदमन को नीति विरुद्ध कार्य करने पर मुट्ठियां तानकर दिखानी चाहिएं, तो मूर्ख भक्तों के खेमे में खड़े होकर समझदारों को जीभें दिखाने लगते थे।
    राजा सर्वदमन ने आटे पर पुराना टैक्स बढ़ा दिया और नमक पर नया टैक्स लगा दिया। उसे आशंका हुई कि प्रतिक्रिया में मुट्ठियां तन सकती हैं। उसने महामात्य शांतिरिपु को इशारा किया और शांतिरिपु ने भक्तों को। फिर क्या था, महामात्य शांतिरिपु का इशारा पाते ही भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़े। सैकड़ों चिढ़ाती हुई जीभें अपनी ओर बढ़ती देख, विरोधी भी छतों-बलकोनियों पर से जीभें दिखाने वालों को अंगूठे दिखाने लगे।
    समझदारों ने दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश की, तो ऑनलाइन मचानों पर चढ़कर मूर्खों ने उन्हें जीभें और अंगूठे दोनों दिखाने शुरू कर दिए। 
   दृश्य ऐसा मनोरंजक बन पड़ा कि भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब आटा-नमक का भाव भूल गए।
   यह आत्मनिर्भर राज्य का फुल टाइम खेला था। राजा सर्वदमन अनीति करके महामात्य शांतिरिपु को इशारा करता। महामात्य शांतिरिपु भक्तों को इशारा करता। महामात्य शांतिरिपु का इशारा पाते ही भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़ते। सैकड़ों चिढ़ाती जीभें अपनी ओर बढ़तीं देख, विरोधी छतों-बालकोनियों पर से जीभें दिखाने वालों को अंगूठे दिखाने लगते। समझदार दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करते, तो ऑनलाइन मचानों पर चढ़कर मूर्ख समझदारों को जीभें और अंगूठे दोनों दिखाने लगते।
    दृश्य ऐसा मनोरंजक बन पड़ता कि भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब राजा सर्वदमन की अनीति भूल-भाल जाते।
    एक बार जीभें दिखाकर चिढ़ाने के उद्देश्य से भक्त डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों के यहां पहुंचे। जब बदले में अंगूठे दिखाने वाले विरोधी नहीं दिखे, तो भक्तों को बड़ी निराशा हुई कि आज तो वार खाली चला गया।
   चिढ़ने के लिए शिकार न मिले, तो चिढ़ाने वाला अपने से चिढ़ने लगता है। अतः उस हादसे के बाद से भक्त जीभें दिखाने वाले प्रोजेक्ट पर तभी निकलते थे, जब उन्हें दरबारी सूत्रों से पुख्ता सूचना मिल जाती थी कि चिढ़ने वाले घरों पर ही मौजूद हैं, निकल लो। जीभों का जवाब अंगूठों से देने वाले भी काम-धंधे छोड़-छाड़ कर घरों ही पर रहने लगे थे कि आने दो जीभें दिखाने वालों को।
    चूंकि परस्पर चिढ़ाने के लिए मनुष्य के पास जीभ एक ही होती है, जबकि अंगूठे दो। सो, जीत के अहसास के बावजूद भक्तों के मन में यह कसक रहती थी कि हाय! हम सौ का मुकाबला वे पचास होकर ही कर लेते हैं।
    मजे की बात थी कि महीने में दो-चार बार तो भक्त इस कसक के याद आने पर ही डीजे की धुनों पर नाचते-गाते विरोधियों को जीभें दिखाने निकल पड़ते थे।
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जुलाई 18, 2022
     
                                 (5)

     राजा सर्वदमन का दृढ़मत था कि ई-रिक्शा, ई-बैंकिंग, ई-मेल, ई-सिगरेट, ई-कॉमर्स की तर्ज पर जिस दिन आत्मनिर्भर राज्य की तमाम भाषाओं-बोलियों के तमाम शब्दों से पहले 'ई' लगा दी जाएगी, उसी दिन राज्य में डिजिटल क्रांति हो जाएगी।
    राजा सर्वदमन डिजिटल क्रांति के मजे जानता था। डिजिटल क्रांति के बाद वे लोग भी बसों, ट्रेनों, हवाईजहानों के किराए और टाइम टेबल देखते रह सकते हैं, जिन्हें कभी कहीं नहीं जाना होता। परीक्षाएं ऑनलाइन हो जाने से नकल के पुर्जों पर जाया होने वाला समय और कागज दोनों बचते हैं। डिजिटल क्रांति उपरांत जेबकतरे प्रमोट होकर ठग बन सकते हैं। रियल लाइफ के कष्टों से मुक्ति के लिए वर्चुअल लाइफ रामबाण होती है।
    सूर्योदय का वक्त था। राजा सर्वदमन मुकुट धारण किए सिंहासन पर आरूढ़ था। सूरज उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेर रहा था। राजा सर्वदमन यदि रात में भी मुकुट धारण कर सिंहासन पर आरूढ़ हो जाता, तो उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेरने के लिए सूरज को रात में भी निकलना पड़ता था।
     भक्तों का तो यहां तक दावा था कि एक रात उनका महापराक्रमी राजा सर्वदमन मुकुट धारण कर सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, लेकिन पूरी रात गुजरने पर भी उसके कमलमुख पर स्वर्णिम किरणें बिखेरने सूरज नहीं आया। फिर क्या था, कुपित राजा सर्वदमन ने सुबह उदय होते ही भरे दरबार में बुलाकर सूरज की ऐसी क्लास लगाई कि बेचारा रात में निकलने को सदा के लिए तरस गया। वह तो सूरज ने राजा सर्वदमन से अपने अपराध के लिए साष्टांग क्षमा मांग ली थी, अन्यथा वह उसका हमेशा के लिए दिन में भी निकलना बैन कर देता। 
      राजा सर्वदमन ने सरकण्डे की कलम काली स्याही वाली दवात में डुबो रखी थी और हिन्दी-अंग्रेजी  के विभिन्न शब्दकोश खोलकर फैला रखे थे। उसे हिन्दी शब्दकोशों में प्रकाशित शब्दों से पहले ईख वाली 'ई' लिखनी थी और अंग्रेजी शब्दों से पहले 'E' for Elephant.
    राज्य को डिजिटल बनाने पर आमादा राजा सर्वदमन ने राज्यभर में फैले हिन्दी वर्णमाला के विशेषज्ञ विद्वानों से इमली वाली 'इ' और ईख वाली 'ई' की मात्राशक्ति का भेद पहले ही समझ लिया था। साथ ही उसने हिन्दी-अंग्रेजी के दो-दो प्रूफरीडर भी तैनात कर रखे थे, ताकि वह कहीं हिन्दी शब्द के पहले 'E' for Elephant और अंग्रेजी शब्द से पहले ईख वाली 'ई' न लिख बैठे। राजा सर्वदमन की जैसी शिक्षा-दीक्षा हुई थी, उसकी कलम से ऐसा उलटफेर होता रहता था।
      अंग्रेजी शब्दों से पहले 'E' for Elephant लिखने का काम उसने हिन्दी प्रोजेक्ट के बाद करने की सोची। दरअसल अंग्रेजी वाले काम में समय और मेहनत कम लगनी थी, क्योंकि उस जमाने में भी अंग्रेजी की 'E' तो सिर्फ 'E' for Elephant ही होती थी, लेकिन हिन्दी में 'इ' से इमली और 'ई' से ईख के अंतर वाला लफड़ा भारी था।
      राजा सर्वदमन से उसके तकनीकी सलाहकार ने करबद्ध निवेदन किया कि महाराज, डिजिटल क्रांति हिन्दी-अंग्रेजी शब्दों के पहले क्रमशः ईख वाली 'ई' और 'E' for Elephant लिखनेभर से नहीं होगी। तकनीक और ज्ञान-विज्ञान को उन्नत करना होगा।
     इतना सुनते ही भड़ककर राजा सर्वदमन ने अपने तकनीकी सलाहकार को देश निकाला दे दिया।
   राजा सर्वदमन अपने दो कदमों से तीनों लोक नापता रहता था, सो भलीभांति जानता था कि जिन अंग्रेजीभाषी राज्यों में डिजिटल क्रांति हो चुकी थी, उन्होंने भी वह उपलब्धि अपने अंग्रेजी शब्दों के पहले सिर्फ 'E' for Elephant लिखकर ही अर्जित की थी।
     उधर तकनीकी सलाहकार देशनिकाले पर रवाना हुआ और इधर राजा सर्वदमन एकाग्र होकर हिन्दी शब्दों से पहले ईख वाली 'ई' लिखने में जुट गया।
     आत्मनिर्भर राज्य में डिजिटल क्रांति बस 'ई' भर दूर है।
                              *****
जुलाई 20, 2022

                                   (6)

     राजा सर्वदमन ने श्वेत चादर बिछे रुई वाले गद्दे पर सेमल भरे मसनद के सहारे अधलेटे, चिंतन की कुछ ऐसी मुद्रा बना रखी थी कि कोई छूकर भी नहीं बता सकता था कि मसनद और राजा में से राजा कौनसा था?
     अचानक राजा सर्वदमन के दायें कान के पास एक मच्छर भिनभिनाया। उसने 'मेड इन पिंगपोंग' मोस्क्यूटो बैट से चटाक सी मच्छर को मौत के घाट उतार डाला। मच्छर रक्त चूसक होता है। सो, राजा सर्वदमन भला मच्छर को खुद के साथ वैसा करने की छूट कैसे दे सकता था, जैसा वह खुद प्रजा के साथ करता था।
     मच्छर का आखेट करते में मोस्क्यूटो बैट से उसके नाक पर हल्की सी खरोंच भी आई थी, पर दर्द महसूस करने के बजाय वह दर्प से भर उठा था, क्योंकि मोस्क्यूटो बैट इम्पोर्टेड था।
     ज्योतिषियों ने राजा सर्वदमन की ग्रहदशा देखकर प्राणलेवा बला टलने पर संतोष की सांस ली थी और महामात्य शांतिरिपु से असंख्य महामृत्युंजय जाप तुरंत शुरू कराने को कहा था। राजा सर्वदमन के स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना के लिए राज्य में स्थान-स्थान पर दिन-रात हवन-पूजन चलने लगे थे।
    घटना स्थल पर अनुपस्थिति के कारण से राजकवि को राजा सर्वदमन के वीरोचित कार्य को सजीव छंदबद्ध करने से चूकने का बेहद मलाल रहा था, हालांकि उस यादगार नुकसान की भरपाई राजकवि ने बाद में मच्छरों को धिक्कारने वाले कवित्त रचकर करली थी।
   राजा सर्वदमन की उस शानदार उपलब्धि के जश्नस्वरूप बंधुआ न्यूज चैनल ब्रेकिंग न्यूजों से अट गए थे और उनके न्यूज रूम अखाड़ों में बदल गए थे। अगले दिन अखबारों में राजा सर्वदमन की अविस्मरणीय वीरता और अस्त्र-शस्त्र संचालन कौशल को लेकर विशेष सम्पादकीय और लेख लिखे गए थे।
    बंधुआ न्यूज चैनलों की बहसों का सार संक्षेप कुछ यूं सा रहा था कि राजमहल में मच्छर घुसाने के लिए भक्तों ने विरोधियों को जिम्मेदार ठहराया था, तो विरोधियों ने भी राजा सर्वदमन पर मोस्क्यूटो बैट बनाने वाली विदेशी कम्पनी से सांठगांठ का आरोप लगाया था। विरोधियों के इस आरोप पर भारी हंगामा हुआ था कि स्वदेशी का हिमायती कहलाने वाले ने विदेशी औजार से स्वदेशी जीव की हत्या कर डाली। बंधुआ न्यूज चैनलों की बहसों में भागीदार झल्लाते रहे थे और एंकर चिल्लाते रहे थे।
    भक्तों ने मच्छर को शोषक और राजा सर्वदमन को सर्वहारा बताया था। विरोधी राजा सर्वदमन द्वारा भारी टैक्स वसूली के आंकड़े गिनाते हुए मच्छर के समर्थन में कूद पड़े थे कि जो प्रजा का खून चूसता हो, उसका एक मच्छर द्वारा खून चूसने में क्या गलत है?
    राजा सर्वदमन के हाथों मारे गए मच्छर का दर्जनों चिकित्साशास्त्रियों ने बिना देखे ही पोस्टमार्टम कर-कर के स्पष्ट किया था कि वह किस आकार-प्रकार का मच्छर था और उस प्रजाति के मच्छर सिर्फ राजाओं को ही क्यों काटना चाहते हैं?
     सुरक्षा विशेषज्ञों ने मांग की थी कि तुरंत राजा सर्वदमन की सुरक्षा व्यवस्था अपग्रेड कर, उसके अंगरक्षकों को हथियारों की जगह मोस्क्यूटो बैट थमाए जाएं।
     इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के सभी क्रियाकलाप मोस्क्यूटो बैट, मच्छरदानी, मच्छर संहारक स्प्रे, क्रीम, पावडर, अगरबत्ती वगैरह बनाने वाली कम्पनियों द्वारा प्रायोजित रहे थे।
    स्वास्थ्य विभाग ने राज्य की हर दीवार पर राजा सर्वदमन के मच्छर मारते के फोटो सहित उसके शौर्य वाले स्लोगन और नारे लिखवा दिए थे, ताकि पढ़-पढ़कर नागरिक गर्वित होते रहें और मच्छर लज्जित।
                                *****
जुलाई 22, 2022

                                  (7)

    उसका नाम तो कुछ और था, पर वह हर समय अपने राज्य के नागरिकों के भविष्य की चिंता करता रहता था, अतः भक्त, विरोधी, मूर्ख, समझदार सब उसे चिंतामणि पुकारते थे।
    चिंतामणि नाम उसे मूर्खों ने व्यंग्य के लहजे में दिया था, जिसके लिए भक्त मूर्खों के आभारी थे। विरोधी चिंतामणि से सिर्फ इसलिए सहानुभूति रखते थे कि वह अपने तर्कों से भक्तों और मूर्खों को आईना दिखाता रहता था। समझदार शायद अतिरिक्त समझदार थे, इसलिए चिंतामणि की हल्की बातों को गम्भीरता से लेते थे और गम्भीर बातों को हल्के में।
     चिंतामणि अध्ययनशील और व्यवहारकुशल तो था ही, उसका हास्यबोध भी लाजवाब था।
    चिंतामणि भक्तों का विरोधी नहीं था। बस, राजा सर्वदमन के प्रति उनकी भक्ति से असहमति रखता था। चिंतामणि और विरोधियों में यह अंतर था कि भक्तों के जीभें दिखाने पर विरोधी जहां उन्हें अंगूठे दिखाते थे, चिंतामणि हंसने लगता था।
   विरोधियों के अंगूठे दिखा दिए जाने पर भक्त अपने जीभें दिखाने को 'प्रोजेक्ट सार्थक हुआ' मानने लगते थे, लेकिन चिंतामणि के हंस देने पर यों तड़तड़ाने लगते थे, मानो किसी ने खौलते तेल में पानी के छींटे मार दिए हों।
     मूर्ख भले ही शुद्ध भक्त नहीं थे, लेकिन भक्त शुद्ध मूर्ख भी थे। भक्त और मूर्ख चिंतामणि के बोलने को भौंकना कहते थे।
     चिंतामणि भी उनके कहे का बुरा नहीं मानता था और हंसकर कहता था कि हां, वह ऐसा कुत्ता है, जो नागरिक अधिकारों की रखवाली करता है और चोरों पर भौंकता है।
      चिंतामणि द्वारा शासन की आलोचना किए जाने को भी भक्त राजा सर्वदमन की ही निंदा समझते थे।
     चिंतामणि यदि इतना भर ही कह देता कि जो हो, राजा सर्वदमन है ईमानदार, तो भी भक्त आंखें तरेरने लगते थे कि शर्म नहीं आती राजा सर्वदमन के बारे में झूठ फैलाते हुए।
    चिंतामणि की बातों का जवाब भक्त कुतर्कों से देते थे। जैसे चिंतामणि रसोई गैस की बेतहाशा बढ़ी कीमतों पर चिंता प्रकट करता, तो भक्त पलटवार कर पूछते कि क्यों, राजा सर्वदमन के सिंहासनारूढ़ होने से पहले तो घर-घर में रसोई गैस के कुएं हुआ करते थे?
    चिंतामणि कहता, "जहां शिक्षण संस्थाओं से अधिक धर्मस्थल हों, उस राज्य के नागरिकों के कतई अच्छे दिन नहीं आ सकते।"
    भक्त उसे समझाने लगते, "पिछले जन्म में भजन-पूजन नहीं किया, तो इस जन्म में भोगना पड़ रहा है। यदि इस जन्म में भजन-पूजन नहीं करेंगे, तो अगले जन्म में फिर भोगना पड़ेगा, समझे।"
    चिंतामणि ने शिकायत की, "आम नागरिक को हर काम के लिए कई-कई दफ्तरों के कई-कई चक्कर काटने पड़ते हैं। राजा सर्वदमन को अपने अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी चाहिए।"
     एक भक्त ने व्यंग्यबाण छोड़ा, "चंद्रमा धरती के चक्कर काटता है। धरती सूरज के चक्कर काटती है। सूरज आकाश गंगा के चक्कर काटता है। इस चक्करबाजी के लिए भी राजा सर्वदमन को ही दोषी ठहरा दो? यदि चक्कर काटना गलत होता, तो राजा सर्वदमन अबतक सौरमण्डल की गति नहीं बंद कर देता?"
     भक्तों की पैरवी में एक मूर्ख ने हस्तक्षेप किया, "हर समय राजा सर्वदमन के खिलाफ आंय-बांय बकते रहते हो, कितनी दलाली मिलती है राजा सर्वदमन के दुश्मनों से?"
    चिंतामणि सहजता से बोला, "पूरी डेढ़ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मासिक। एक करोड़ विरोधी देते हैं और पचास लाख समझदार।"
   मूर्ख झल्लाया, "क्यों मूर्खतापूर्ण बकवास कर रहे हो?"
   चिंतामणि ने हंसकर कहा, "भाईसाहब, शुरुआत तो आपने की थी।"
                                *****
जुलाई 24, 2022

                                (8)

    राजा सर्वदमन के आत्मनिर्भर राज्य में डिजिटलक्रांति भले ही होने को थी, पर न्यूजक्रान्ति हो चुकी थी।
    हर नागरिक इधर से खबर लेता रहता था और उधर को खबर देता रहता था। यदि कोई किसी खबर से चूक जाता था, तो बाकी लोग उसका मजाक उड़ाने लगते थे कि लो, इतनी बड़ी खबर है और इसे खबर ही नहीं है?
   खबरें बड़े चाव से सुनी-सुनाई जाती थीं। खबर सुनाने वाला एक ही खबर को सौवीं बार भी यों सुनाता था जैसे पहली बार सुना रहा हो, तो उसी खबर को सौवीं बार सुनने वाला भी ऐसे सुनता था जैसे पहली बार सुन रहा हो।
     खबरों को लेकर प्रजा के मन में यह भाव रहता था कि जिंदगी छोटी है और खबरें ज्यादा। अतः खबरें यों बटोरी जाती थीं जैसे आंधी के आम बटोरे जाते हैं।
   खबर सुनने-सुनाने की ऐसी हुड़क थी कि दो लोगों के मिलने पर दोनों एक-दूसरे से बजाय कुछ और पूछने के यही पूछते थे कि और सुनाओ क्या खबर है? मजे की बात थी कि वे एक दिन में जितनी बार भी मिलते थे, हर बार यही पूछते थे। हर नागरिक के पास दो ही काम थे, जुगाली की खबरें सुनना और खबरों की जुगाली करना।
    राजा सर्वदमन के सुशासन में विवेक-बुद्धि, सत्य-अहिंसा, शिक्षा-स्वास्थ्य, रोजी-रोटी आदि का तो अकाल रहता था, लेकिन खबरों का कभी अकाल नहीं रहता था। दर्शकों से अधिक न्यूज चैनल थे और पाठकों से अधिक अखबार।
     राजा सर्वदमन के सिंहासन के पाये से बंधा मीडिया खबरों की दुकान, गोदाम, कारखाना सब था। बंधुआ मीडिया खबरें तलाशता-जुटाता नहीं, गढ़ता था और देता नहीं, फैलाता था।
    लोग वर्क फ्रॉम होम टाइप रात-दिन घर में लेटे-बैठे खबरें ही सुनते-पढ़ते रहते थे। कोई घर से निकलता भी था, तो या तो किसी से खबर लेने निकलता था या किसी को खबर देने निकलता था।
     नाना प्रकार की खबरें हुआ करती थीं।
     पछतावे की खबरें होतीं थी- हाय! इतनी बड़ी घटना हो गई और हमें खबर तक नहीं हुई।
    अचम्भे की खबरें होती थीं- ओहो! हमारी खबर और हमें ही खबर नहीं?
    गर्व की खबरें होती थीं- खबर छोटी हो या बड़ी, सबसे पहले अपन को ही मालूम चलती है।
   धिक्कार की खबरें होती थी- दुनिया जहान की खबरों में डूबे रहते हो और खुद की खबर ही नहीं है।
   स्वीकार की खबरें होती थीं- आपने तो तुरंत खबर दे दी थी, लेकिन मैंने ही गौर नहीं किया।
   या तो एक व्यक्ति दूसरे को तीसरे के बारे में खबर दे रहा होता था या तीसरा दूसरे से पहले के बारे में खबर ले रहा होता था।
   इस चिंता तक की खबरें होती थीं कि देखो, क्या जमाना आ गया? सबकी खबरें रखने वाले अपने से बेखबर रहने लगे हैं।
   विशेष खबरें राजा सर्वदमन को लेकर होती थीं अथवा कह सकते हैं कि राजा सर्वदमन को लेकर जो खबरें होती थीं, वे ही विशेष होती थीं।
    एक दिवस ज्योंही राजा नहाकर स्नानघर से निकला, त्योंही न्यूज चैनलों ने ताबड़तोड़ ब्रेकिंग न्यूज दागीं। एक न्यूज चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज चलाई- राजा नहाया। दूसरे न्यूज चैनल ने खुशी जाहिर की- राजा आज भी नहाया। तीसरे न्यूज चैनल ने अटकलें लगाईं- राजा क्यों नहाया? चौथे न्यूज चैनल ने नई जानकारी दी- राजा पहली बार नहाया। पांचवें न्यूज चैनल ने आत्मनिर्भरता की पुष्टि की- राजा खुद नहाया। छठे न्यूज चैनल ने रहस्योद्घाटन किया- राजा पानी से नहाया। सातवें न्यूज चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज में गर्मी भरी- राजा गर्म पानी से नहाया। आठवें न्यूज चैनल ने स्थिति और साफ की- राजा साफ पानी से नहाया। नौवें न्यूज चैनल ने गुप्त जानकारी दी, "राजा स्नानघर में नहाया। दसवें न्यूज चैनल ने राहतभरी ब्रेकिंग न्यूज चलाई- राजा आज तो नहाया।
                               *****
जुलाई 26, 2022

                                (9)

     सुबह दस बजे के आसपास का समय था। आत्मनिर्भर राज्य के सेवाकर्मी दफ्तरों के लिए घरों से वैसे ही निकाले जा चुके थे, जैसे अशुद्ध पते लिखे लिफाफे डाक के डिब्बों से निकाले जाते हैं।
   दिनभर के प्रोग्राम पूछने महामात्य शांतिरिपु राजदरबार में पहुंचा। सिंहासन पर आरूढ़ राजा सर्वदमन अपने दोनों हाथों से खुद पर चंवर डुला रहा था, भले ही हाथों में चंवर नहीं थे।
     महामात्य शांतिरिपु ने झुककर प्रणाम किया। राजा सर्वदमन ने खुद के हाथों खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय स्थगित कर पूछा, "मेरा आज का प्रोग्राम नहीं पूछोगे महामात्य शांतिरिपु?"
   महामात्य शांतिरिपु बोला, "वही तो पूछने आया हूं महाराज, लेकिन आपका खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय देखकर नहीं पूछा कि हो सकता है आपका आज दिनभर खुद पर चंवर डुलाने वाला अभिनय करने का ही प्रोग्राम हो।"
      राजा सर्वदमन ने भावुक होते हुए कहा, "वाह, महामात्य शांतिरिपु तुम्हारे उत्तम विचार सुनकर मन भावुक हो गया।...... क्यों न आज भावुक होने का ही प्रोग्राम रखा जाए?"
    सिंहासन के पाये से बंधा मीडिया राजा सर्वदमन की जय बोलते हुए चिल्लाया, "आपकी और मेरी टीआरपी के लिहाज से गजब आइडिया है महाराज।"
    महामात्य शांतिरिपु ने मीडिया को उतावलेपन के लिए लताड़ा, "महाराज के भावुक होने वाले सीन ठीक से फिल्माना, वरना न सिर्फ विज्ञापन वाला राशन-पानी बंद कर दूंगा, बल्कि कारागार में भी डाल सकता हूं।
    स्वच्छता अभियान के शुभारम्भ के अवसर पर महाराज ने फर्श पर पड़े दो तिनके एक ही बार में बीने थे, जबकि तुम्हारे फिल्मांकन से लगा था कि महाराज एक ही तिनका दो बार में बीन रहे हैं। मीडिया को महाराज की हर हरकत का मूल उद्देश्य पहचानना चाहिए। स्वच्छता अभियान का आयोजन महाराज ने किसी जगह-वगह की सफाई के लिए नहीं किया था, अपने विरोधियों के सफाये के लिए किया था।"
     बंधुआ मीडिया ने क्षमा मांगते हुए आश्वस्त किया, "भावुकता की शूटिंग को लेकर निश्चिंत रहें महामात्य शांतिरिपु। महाराज की सिंगल आंख से रिसा सिंगल आंसू भी ऐसा फिल्मा दूंगा कि देखने वालों को लगेगा हिमालय के सारे ग्लेशियर एक साथ पिघल रहे हैं।"
     सिंहासन के पाये से बंधे मीडिया का सत्य के प्रति भयंकर समर्पण भाव महससू कर, राजा सर्वदमन भावुक हो गया।
     बंधुआ मीडिया से घिरा राजा सर्वदमन भावुक होने राजमहल से निकल पड़ा।
    घर के बाहरी चौक में तीनेक साल का कुपोषित बच्चा मिट्टी खा रहा था। बच्चे की निर्धन मां उससे मिट्टी थूक देने की अनुनय-विनय कर रही थी। राजा सर्वदमन उस दृश्य को देखकर ज्योंही भावुक हुआ, बंधुआ मीडिया के कैमरामैनों ने खटाक-खटाक सीन क्लिक कर डाला। तत्काल न्यूज चैनलों पर दृश्य सहित खबरें चल पड़ीं 'प्रभु की बाललीला और मिट्टी खाते शिशु-मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन की मां की अभिलाषा देखकर भावुक हुआ राजा सर्वदमन'।
    उद्देश्य प्राप्त होते ही राजा सर्वदमन राजमहल की ओर लौटने लगा। रास्ते में झोंपड़ी के द्वार पर उदास बैठी एक लाचार वृद्धा को देख, राजा सर्वदमन ने उसके पैर छूये और आगे बढ़ गया।
   कुपोषित बच्चे के मिट्टी खाने वाले दृश्य से मिले माइलेज के हिसाब-किताब के चक्कर में राजा सर्वदमन भावुक होना भूल गया। कोई पचास कदम दूर जा चुकने पर अचानक उसे भावुक न होना याद आया। वह उलटे पांव लौटा। उसने वृद्धा के दुबारा पैर नहीं छूये, सिर्फ भावुक हुआ और राजमहल की ओर चल पड़ा।
     न्यूज चैनलों पर दूसरा दृश्य देखने के बाद तो तय करना मुश्किल होगया कि राजा सर्वदमन और उसके भक्तों में से कम भावुक कौन हुआ?
                                *****
जुलाई 28, 2022
     
                               (10)

      महामात्य शांतिरिपु का एक ही काम था राज्य में अशांति बनाए रखना। अशांति के लिए उसने शांति समितियों का पिरामड खड़ा कर रखा था। नाम भले ही उनका शांति समिति हुआ करता था, लेकिन काम उनका नाम के विपरीत था। यदि कोई शांति समिति शांति भंग कराने में लापरवाही बरत जाती थी, तो महामात्य शांतिरिपु उस शांति समिति को ही भंग कर देता था।
    शांति समितियां नागरिकों को लड़ाने में व्यस्त रहती थीं, लेकिन यदि कभी लोग स्वविवेक से ही लड़ने-झगड़ने लगते थे, तब भी शांति समितियां शांति से नहीं बैठती थीं, वे आपस में लड़ने-झगड़ने लगती थीं।
     महामात्य शांतिरिपु आदमी की शक्ल में शतरंज था। उसका हर बोल 'दांव' होता था और हर कदम 'चाल'।
    वह अपने हुनर में इतना पारंगत था कि दो मूक-बधिरों में गाली-गलौच करा सकता था। दो अपंगों में लातें चलवा सकता था। बिना हाथों वाले नागरिक परस्पर घूंसे मार सकते थे। महामात्य शांतिरिपु के आंख के एक इशारे पर दो अंधे न सिर्फ एक-दूसरे को आंखें दिखाने लगते थे, बल्कि एक-दूसरे को आंखें निकालने तक की धमकियां देने लगते थे।
    उसने अमात्यपद की शपथग्रहण करते ही राजा सर्वदमन को सुझा दिया था कि महाराज, अशांति ही शांतिपूर्वक शासन की कुंजी है।
    "अशांति के लिए क्या विशेष करना होगा, महामात्य शांतिरिपु?", राजा सर्वदमन ने पूछा।
    महामात्य शांतिरिपु बोला, "शासन का ताना-बाना इस कौशल से बुना जाए कि लोग विमर्श के बजाय बहस करें। तर्कों पर भावनाएं हावी हों। भय, लालच, ईर्ष्या, अहंकार, झूठ, बेईमानी, प्रतिशोध की आपूर्ति बराबर बनी रहे। नागरिकों को हर समय विभाजित रखा जाए, ताकि वे सवाल आपसे नहीं, आपस में करें।
    ऐसे लोगों का बड़ा समूह निर्मित किया जाए जो चंद्रमा को बजाय उपग्रह मानने के, देवता मानें और अपने कुतर्कों से प्रमाणित करते रहें कि चंद्रमा को इसलिए धरती की परिक्रमा करनी पड़ रही है, क्योंकि धरती पर हमारे महापराक्रमी राजा सर्वदमन का एकक्षत्र राज है।"
    राजा सर्वदमन और महामात्य शांतिरिपु ने मिलीभगत कर ऐसी नीतियां और कानून बनाए कि हर तरफ अशांति ही अशांति रहने लगी।
   अशांति के चमत्कारी लाभों से राजा सर्वदमन जान चुका था कि बाहरी अशांति के लिए भीतरी अशांति जरूरी है। पूर्णतः सामाजिक अशांति तभी सम्भव है जब प्रत्येक परिवार अशांत रहे और पारिवारिक अशांति के लिए व्यक्तिगत अशांति अनिवार्य है।
    एक दिन यह जानने के उद्देश्य से महामात्य शांतिरिपु नगरभ्रमण पर निकला कि मेरे होते कहीं शांति तो नहीं है। उसने देखा कि बरगद की छांव में चबूतरे पर बैठे दो व्यक्ति शिक्षा-स्वास्थ्य, महंगाई-बेरोजगारी को लेकर बातें कर रहे थे। महामात्य शांतिरिपु के कान खड़े हुए। वह दोनों को लड़ाने के उद्देश्य से उनके पास गया और पूछा, "क्यों भाई यह मंगलवार किस दिन होता है?"
   एक ने बताया, "मंगलवार सोमवार के अगले दिन होता है शायद।"
   दूसरे ने उसकी बात काटी, "क्यों गलत जानकारी दे रहे हो। मंगलवार तो बुधवार से एक दिन पहले होता है।"
    पहले ने सफाई दी, "गलत जानकारी देने का आरोप क्यों लगा रहे हो? मैंने पहले ही 'शायद' बोल दिया था।"
    दूसरे ने बात बढ़ाई, "मैंने नोट किया है, तुमसे जब किसी ने यह भी पूछा है कि क्या तुम दो पाये हो? तब भी तुमने 'शायद' बोला है।"
   महामात्य शांतिरिपु देखकर खुश-खुश राजमहल की ओर लौटा कि पहले उन दोनों में तू-तू, मैं-मैं हुई, फिर एक ने बायें पैर का जूता निकाल लिया था और दूसरे ने दायें पैर का।
                                 *****
जुलाई 30, 2022

                                  (11)

      राजा सर्वदमन द्वारा राजधानी के मुख्य चौराहे पर बने पुल का लोकार्पण करते ही नगर के दर्शनीय स्थलों की संख्या एक और बढ़ गई।
     राजा सर्वदमन जग घूमता रहता था, सो भलीभांति जानता था कि शहर में सही जगहों पर गलत चीजें बना देने से सिटी स्मार्ट हो जाती है।
    पुल उत्तर-दक्षिण बनाना था और पूर्व-पश्चिम बना दिया। लिहाजा जिन नागरिकों को पुल के ऊपर से गुजरना था, वे पुल से बचकर निकलने लगे।
   कलेजा चाहिए सही जगह पर गलत पुल का शिलान्यास और उद्घाटन करने के लिए। जो भी पुल को देखता, राजा सर्वदमन की बड़ाई किए बिना नहीं रहता कि वाह महाराज! प्रजा से वसूले कर का क्या अद्भुत सदुपयोग किया है? धन तो खर्च हुआ, पर एक चीज तैयार हो गई।
    सही जगह पर गलत पुल देखकर पर्यटक दांतों से जीभें काटने लगे कि हे राम! पंचतत्व से बने पुतलों ने छहतत्वों के उचित मिश्रण से क्या अनुपम कृति गढ़ डाली है। पूरे छह तत्व- सीमेंट, कंक्रीट, लोहा, बजरी, पानी और भ्रष्टाचार।
     दरबारी अर्थशास्त्रियों ने राजा सर्वदमन के वित्तीय प्रबंधन की भूरी-भूरी प्रशंसा की कि महाराज ने सही जगह पर गलत पुल सही समय से बनवा दिया, अन्यथा देर करने पर इससे आधे आकार का गलत पुल ही इससे दो गुना राशि खा जाता।
    चिंतामणि ने चिंता जाहिर की, "नागरिकों की मेहनत की कमाई से बना पुल नागरिक ही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं?"
   भक्त चिंतामणि पर टूट पड़े, "नागरिक उस पुल का इस्तेमाल क्यों करेंगे, जो उनके लिए बना ही नहीं है। हमारे महापराक्रमी राजा सर्वदमन को एक स्मारक बनवाना था और उसने बनवा दिया।"
     एक दिन राजा सर्वदमन का ही रथ गलत पुल की वजह से सही जगह जाम में फंस गया, हालांकि भक्तों का दावा था कि उनका राजा सर्वदमन चाहता, तो पूर्व-पश्चिम रखे पुल को पलक झपकते तर्जनी पर उठाकर उत्तर-दक्षिण धर सकता था, लेकिन मजबूरी यह थी कि उसी ने पुल पर जगह-जगह 'हैंडल विद केयर' लिखवा दिया था।
   राजा सर्वदमन ने एट द स्पॉट महामात्य शांतिरिपु को बुलाकर सलाह मांगी कि गलत पुल बनवा तो सही जगह दिया, पर अब इसका किया क्या जाए?
     महामात्य शांतिरिपु ने राजा सर्वदमन को समझाया कि महाराज सकारात्मक सोचिए। अव्यवस्था को कुव्यवस्था में बदल देना ही डवलपमेंट होता है।
   हालांकि राजमहल लौटकर महामात्य शांतिरिपु ने अपील जारी की, "नागरिकों को सही जगह पर बने गलत पुल का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।"
   अपील का किसी ने नोटिस ही नहीं लिया।
   महामात्य शांतिरिपु ने विज्ञप्ति जारी की, "उक्त पुल का इस्तेमाल करने वाले नागरिकों को उचित ईनाम दिया जाएगा।"
   नागरिकों ने ईनाम और मेहनत का अंतर निकाला और विज्ञप्ति को भी महत्व नहीं दिया।
    महामात्य शांतिरिपु ने आदेश दिया, "नागरिक कहीं भी जाएं, उक्त पुल का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा।"
   आदेश के बावजूद नागरिक उदासीन बने रहे।
   आखिर महामात्य शांतिरिपु को अपनी औकात पर आना पड़ा, "नागरिक कहीं जाएं चाहे नहीं जाएं, उक्त पुल का इस्तेमाल तो करना ही पड़ेगा।"
   उसकी अंतिम चेतावनी का ऐसा असर हुआ कि तमाम नागरिक सही जगह पर बने गलत पुल का इस्तेमाल वैसे ही करने लगे जैसे बच्चे पार्क में बनी फिसलपट्टी का करते हैं। घूम-घूमकर एक तरफ से चढ़ना और दूसरी तरफ को उतरना।
      राजा सर्वदमन के राज में असली विकास था ही ऐसी चीजें बनाना जो काम न आएं, बस दिखें, बल्कि काम न आती हुई दिखें।
                               *****
अगस्त 1, 2022

                                (12)

     राजा सर्वदमन के अमात्यमण्डल में महामात्य शांतिरिपु के अलावा भी अनेक अमात्य थे, हालांकि सिद्धांत में हर विभाग का एक अमात्य था, लेकिन व्यवहार में हर एक अमात्य बिना विभाग का सा था।
    करने को कुछ था नहीं और व्यस्त दिखना जरूरी था, सो हर अमात्य तीन काम अपनी ओर से करता रहता था- मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना।
   अमात्यों की बंधी-बंधाई दिनचर्या थी- शयन त्याग, दैनिक क्रियाओं से निवृत्ति, पूजा-पाठ, अल्पाहार, सजना-धजना, लालबत्ती लगे रथों पर सवार होकर निकलना, जहां-तहां मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना।
    एक बार को अमात्य दैनिक क्रियाओं की निवृत्ति, पूजा-पाठ, अल्पाहार वगैरह छोड़ सकते थे, लेकिन सज-धजकर लालबत्ती लगे रथों पर सवार हो, मुआयना करना, नाराज होना और लताड़ना नहीं छोड़ सकते थे।
    जब भी किसी दरबारी को अमात्यपद की शपथ लेते सुना जाता, तो उसकी लिखित शपथ में शब्द चाहे कुछ भी होते, ध्वनि यही निकलती कि मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं कि मैं नियमपूर्वक मुआयना करूंगा, नाराज होऊंगा और लताडूंगा।
   कोई भी अमात्य मुआयना करने, नाराज होने और लताड़ने में लापरवाही नहीं बरत सकता था, क्योंकि राजा सर्वदमन अमात्यों का भी मुआयना करता रहता था, उन पर नाराज होता रहता था और उनको लताड़ता रहता था।
   अपने अमात्यों का मुआयना करते रहना, उन पर नाराज होते रहना और उन्हें लताड़ते रहना राजा सर्वदमन की भी मजबूरी थी, क्योंकि विरोधी उस अमात्य को हटाने की मांग करने लगते थे कि जो न मुआयना करता है, न नाराज होता और न लताड़ता है, वह काहे का अमात्य है? 
     दरअसल मीडिया में मनोरंजक खबरें होती थीं कि फलां अमात्य ने फलां जगह मुआयना किया, फलां पर नाराज हुआ और फलां को लताड़ा। अतः अमात्य बनाए जाने से पहले हर भावी अमात्य की एक ही इच्छा रहती थी कि किसी दिन वह भी अमात्य बने, ताकि कहीं का मुआयना करे, किसी पर नाराज हो और किसी को लताड़े। मीडिया में मेरी भी मनोरंजक खबरें हों कि मैंने वहां-वहां मुआयना किया, उस-उस पर नाराज हुआ और उस-उस को लताड़ा।
   अमात्य तीनों काम क्रमबद्ध करते थे। सबसे पहले मुआयना करते, फिर नाराज होते और अंत में लताड़ते। ऐसा कभी नहीं होता था कि किसी अमात्य ने पहले किसी को लताड़ दिया हो, फिर उस पर नाराज हुआ हो और अंत में मुआयना किया हो।
    अपनी दिनचर्या के प्रति निष्ठा का यह हाल था कि सड़क निर्माण अमात्य मुआयना करने, नाराज होने और लताड़ने के काम पर निकला हुआ था। उसने सड़क के बीचों-बीच गड्ढे देखे। एक गड्ढे के पास रथ रुकवाया। रथ में बैठे-बैठे ही गड्ढे का मुआयना किया, गड्ढे पर नाराज हुआ और गड्ढे को लताड़ा। ऐसा उसने एक-एक कर हर गड्ढे के साथ किया।
     एक सुबह राजा सर्वदमन अपने सभी अमात्यों को संग लेकर निकला कि चलो, मैं बताता हूं मुआयना कैसे किया जाता है, नाराज कैसे हुआ जाता है और लताड़ा कैसे जाता है?
     राजा सर्वदमन सहित सभी अमात्यों के लालबत्ती लगे रथ अचानक एक विद्यालय के मुख्य द्वार पर थमे। मुआयना किया, तो पाया कि विद्यालय में न एक भी विद्यार्थी है और न एक भी अध्यापक। राजा सर्वदमन वहां उपस्थित चौकीदार पर खूब नाराज हुआ और उसे खूब लताड़ा।
     चौकीदार ने हाथ जोड़ते हुए अवगत कराया कि महाराज! आज विद्यालय में रविवार का अवकाश है।
                                 *****
अगस्त 4, 2022

                                (13)

     राजा सर्वदमन के शासन काल में अखबारों में उजाले को पीठ दे, परछाइयां लंबी करने की होड़ा-होड़ी रहती थी। नागरिक मोतियाबिंद का उपचार जानना चाहते, तो अखबार वाले काजल-सुरमे के विज्ञापन छापने लगते थे। इस तुर्रे के साथ कि पाठकों की यही डिमाण्ड है।
    पत्रकार कमलपत्र की भांति निर्लिप्त पत्रकारिता करते थे। यानी जिस अखबार में काम करते थे, उसे भी नहीं पढ़ते थे। खबरों को विज्ञापन वैसे ही ढंके रहते थे जैसे जल को जलकुम्भी।
     अखबारों में छपने वाले राशिफल इतने विश्वसनीय और सटीक होते थे कि लोग लड़ाई-झगड़ों का मानस भी उस दिन का राशिफल पढ़कर ही बनाते थे।
    जनचेतना के मामले में सभी अखबार बहुत सचेत थे। प्रजा को रोज बताते रहते थे कि राजा सर्वदमन के क्या अधिकार हैं और प्रजा के क्या कर्तव्य हैं? राजा सर्वदमन के लिए प्रजा है, ना कि प्रजा के लिए राजा सर्वदमन।
     सम्पादक बेबाक और निडर होते थे। अखबार में प्रकाशित लेखों के नीचे कोष्ठक में यह छापना कभी नहीं भूलते थे- ये लेखक के अपने विचार हैं। जैसे लेखक ने अपने लेख में लिखा- सूर्य पूर्व में उदय होता है (ये लेखक के अपने विचार हैं)। राजा सर्वदमन पंचतत्व से बना है (ये लेखक के अपने विचार हैं)।
     चटाई पर बैठा चिंतामणि अखबार पढ़ कम, देख अधिक रहा था, क्योंकि राजा सर्वदमन के सुशासन की वजह से अखबार पढ़े कम, देखे अधिक जाते थे।
     चाय पीते समय राजा सर्वदमन से कुछेक बिस्कुट के टुकड़े कालीन पर बिखर गए थे। जिन्हें चूहे कुतरने लगे। चिंतामणि ने अखबार में उसी दृश्य की बड़ी सी रंगीन फोटो मय शीर्षक देखी- राजा सर्वदमन के आसपास अठखेलियां करते सिंह शावक।
    राजा सर्वदमन ऐसे अखबार को करोड़ों स्वर्णमुद्राओं के विज्ञापन देता था। यह कहते हुए कि सत्य छापने वाले अखबार को प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए।
    चिंतामणि अखबार के पन्ने उलट-पलट रहा था कि किसी ने द्वार की सांकल बजाई। उसने उठकर द्वार खोला और देखा कि एक अखबार की गाड़ी और चार लोग खड़े हैं।
    "आप हमारा अखबार खरीदते हैं?" दो-तीन स्वर उठे।
    "जी, खरीदता हूं", कहते हुए चिंतामणि ने उन्हें उनका अखबार दिखाया।
     चारों आगुंतक बड़े खुश हुए। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति उनका छापा अखबार खरीद भी रहा है। उन्होंने चिंतामणि को आंवला हेयर ऑयल की दो शीशियां भेंट करते हुए चार फोटुएं लीं।
   "आप हमारा अखबार कबसे खरीद रहे हैं?" उनमें से एक ने पूछा।
    चिंतामणि ने बताया, "चालू माह से ही। पहले हम दूसरा अखबार खरीदते थे, क्योंकि उस अखबार वाले ग्राहक को प्लास्टिक की बाल्टी, काँच के प्याले, झाड़ू, टी-सेट, शैम्पू आदि गिफ्ट देते थे। एक दिन मेरी अर्धांगनी ने पूछ लिया कि भैया अटम-सटम ही बांट-बांटकर टरकाते रहोगे या कभी नमक, मिर्च, मसालों का भी नम्बर आएगा ? उस अखबार वाले ने हाथ खड़े कर दिए कि बहिन जी नमक, मिर्च, मसाले कहां से दें? हमें खबरों में डालने के लिए ही पूरे नहीं पड़ते। उन्होंने गिफ्ट नहीं बदला, तो हमने अखबार बदल दिया।"
     "और कोई सलाह-सुझाव हमारे अखबार को लेकर?" उन्होंने जाते-जाते पूछा।
     चिंतामणि बोला, "भविष्य में हेयर ऑयल ही भेंट देना पड़े, तो कृपया सरदर्द और तनाव से मुक्ति वाला दिया करें, ताकि आपका अखबार खोलने से पहले और पढ़ने के बाद काम आ सके।"
                                 *****
अगस्त 5, 2022

                                (14)

    राजा सर्वदमन दरबार लगाकर जनसुनवाई किया करता था। नागरिकों के सीधे और छोटे सवालों के टेढ़े और लम्बे जवाब देने को जनसुनवाई कहा जाता था।
     चिंतामणि भी कुछेक चिंताओं से राजा सर्वदमन को अवगत कराने राजदरबार में हाजिर हुआ। धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया को सिंहासन के पायों से बंधा देखकर वह हल्का सा मुस्कुरा दिया।
     जब कोई राजा अपनी प्रजा के भयंकर कल्याण पर उतारू हो, तो उसके लिए किसी के हल्का सा मुस्कुरा देने के भी अपने खतरे होते हैं, लिहाजा राजा सर्वदमन ने तुरंत रिमोट से धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियों और मीडिया की रस्सियां ढीली कीं। रस्सियां ढीली होते ही धर्म ने आंखें तरेरीं, राष्ट्रवाद ने घूंसा दिखाया, एजेंसियों ने बेड़ियां बजाईं और मीडिया ने विषबाण छोड़े। जहां तक रस्सियों की पहुंच थी वहां तक पहुंचकर सबने एक सुर में चिंतामणि को हड़काया कि राजा सर्वदमन के शासक रहते लेशमात्र भी खी-खी, हें-हें नहीं चलेगी।
    जनसुनवाई का शुभारम्भ हुआ।
    चिंतामणि ने विषय प्रवेश किया, "जय हो महाराज! आपके कई अभिन्न सखा राजकोष के चूना लगाकर विदेश प्रस्थान कर गए।"
   राजा सर्वदमन ने पल्ला झाड़ा, "सीमेंट का आविष्कार नहीं हुआ है, तो बेचारे चूना ही लगाते।"
   महामात्य शांतिरिपु उछल पड़ा, "अद्भुत, अतुलनीय। महाराज, ब्रह्माण्ड में आप अकेले ज्ञानी हैं जो उस उत्पाद का भी नाम जानते हैं जिसका अविष्कार ही नहीं हुआ।"
    चिंतामणि ने साफ किया, "वह वाला चूना नहीं महामात्य शांतिरिपु, राजकोष का धन लूटकर उड़नछू हो गए।"
     राजा सर्वदमन ने पूछा, "राजकोष में धन किसका था?"
   चिंतामणि ने बताया, "प्रजा का।"
   राजा सर्वदमन ने दो टूक आदेश दिया, "तो प्रजा ही से वसूला जाए। जिनका धन गया है वे ही करें भरपाई। सौ घरों की बस्ती में दस लोग बिजली चोरी करते हैं, तो उन दस चोरों का भार भी नब्बे साहूकारों के बिजली बिलों में जोड़ा जाता है कि नहीं जोड़ा जाता है?
    यह लाभ भी तो देखो कि जिन्हें जो ले जाना था, एक ही बार में ले गए, वरना यहां रहते, तो जिंदगीभर लूट-पाट मचाये रखते।
    फिर यह आर्थिक समृद्धि क्या कम गर्व की बात है कि जितना दुश्मन पड़ौसी राज्य का वार्षिक बजट होता है, उससे अधिक तो मेरे सखा मेरे राजकोष से अर्धवार्षिक लूट-लाटकर ले जाते हैं।"
    चिंतामणि ने हस्तक्षेप करना चाहा, "लेकिन चौकीदार तो.....?"
     राजा सर्वदमन ने उसे बीच में टोका, "हां मैं ही हूं चौकीदार, लेकिन चौकीदार चोरी होने पर ही जवाबदेह होता है, लूट-पाट होने पर नहीं, समझे।"
     चिंतित चिंतामणि बड़बड़ाया, "नागरिकों का जीना दूभर है। किसी के पास कोई काम नहीं है।"
    महामात्य शांतिरिपु ने चिंतामणि को झिड़का, "तू अपने काम से काम रख। महाराज सबको काम दे देंगे, तो उनके खुद के पास क्या काम रह जाएगा? राजा सर्वदमन के राज में कहां काम की कमी है? जनसुनवाई में आना भी तो काम ही है? जब देखो तब काम, काम। काम मांगने के सिवा और कोई काम नहीं है तेरे पास? महाराज के पास एक यही काम थोड़े है कि हर एक को काम देते फिरें?
    भक्तों से सीख कि महाराज की जय बोलने से बड़ा कोई काम नहीं है दुनिया में।"
    सिंहासन के पायों से बंधे धर्म, राष्ट्रवाद, एजेंसियां और मीडिया समवेत बोले, "वाह! महामात्य शांतिरिपु यह हुई ना काम की बात।"
    चिंतामणि के सवाल उठाने से आगबबूला राजा सर्वदमन ने उसे उम्रकैद की सजा सुना डाली।
   चिंतामणि बोला, "क्षमा करें महाराज, आपके राज्य का नागरिक होने के बाद मुझे अलग से उम्रकैद की कहां जरूरत है?"
    अपने सुशासन की प्रशंसा सुनकर राजा सर्वदमन ने चिंतामणि को क्षमा कर दिया।
                             *****
अगस्त 7, 2022
    
                              (15)

     जहां भक्तों को राजा सर्वदमन का रंगारंग आभार प्रकट करने की तलब लगी रहती थी, वहीं राजा सर्वदमन भी अपना रंगारंग आभार प्रकट कराने की ताक में रहता था।
     थाली-कटोरी, चम्मच-चिमटा बजाते हुए भक्त राजमहल की ओर चले जा रहे थे, जैसे मनौती पूरी होने पर व्यक्ति सम्बंधित देवता के दर पर जाता है।
    आत्मनिर्भर राज्य में हल्की बरसात होने से रेत उड़ना बंद हो गई थी और बंधुआ मीडिया ने अज्ञात सूत्रों से ज्ञात खबर फैला दी थी कि वह हल्की बरसात इंद्र को आदेश देकर राजा सर्वदमन ने ही कराई थी। भक्त अपने राजा सर्वदमन के उसी करिश्मे के प्रति रंगारंग आभार प्रकट करने राजमहल को जा रहे थे।
    बंधुआ मीडिया का दावा था कि समस्या को उठाने और समाधान कराने के पीछे उसी की मेहनत थी, वरना राजाओं को कहां पता होता है कि दुनिया में हवा और रेत भी होती है।
    उसी ने राजा सर्वदमन तक खबर पहुंचाई थी कि महाराज, हवा के साथ रेत उड़ने से रेत के कण भक्तों की आंखों में गिर रहे हैं और वे आपकी प्रचार सामग्री पर छपी आपकी तस्वीरें नहीं देख पा रहे हैं।
     प्रचारजीवी के लिए एक पल दृष्टि ओझल हो जाने का मतलब होता है, नशे के आदी को नशे की खुराक का न मिलना।
    राजा सर्वदमन चाहता, तो महामात्य शांतिरिपु को कहकर राज्य की हवा बंद करा सकता था या धरती को रेत विहीन करा सकता था, लेकिन उसने इंद्र से हल्की बरसात कराने का विकल्प चुना।
    राजा सर्वदमन ने पहले इंद्र को हवन-पूजन से मनाने की कोशिश की। बात नहीं बनी, तो युद्ध के लिए ललकारा। राजा सर्वदमन की ललकार सुनते ही इंद्र लाइन पर आ गया और बोला, "हे महापराक्रमी! बरसात तो हल्की-भारी जैसी चाहो, जब चाहो कर दूं, लेकिन समुद्र के पानी को भाप बनाकर बादल में बदलने का काम तो सूरज का है।"
    राजा सर्वदमन के सामने नई आफत आ खड़ी हुई कि अब सूरज से बात कैसे हो? दिन में खुद को समय नहीं मिलता और रात में सूरज नदारद।
    खैर, एक दिन राजा सर्वदमन ने अपने दिनभर के कार्यक्रम रद्द कर सूरज से बात की। सूरज ने भी हाथ जोड़ दिए कि महाराज, समुद्र को पानी देने के लिए राजी करलो, तो मैं तो अभी पानी को भाप और भाप को बादल बनाने में जुट जाऊं।
    समुद्र से पानी मांगने की बात आते ही राजा सर्वदमन पसीने से पानी-पानी हो गया।
   उधर पानी के लिए राजा सर्वदमन तीन दिन तक समुद्र से अनुनय-विनय करता रहा, इधर उड़-उड़कर रेत के कण नेत्रों में पड़ने से भक्त उसकी फोटुएं नहीं देख पा रहे थे।
   आखिर राजा सर्वदमन ने समुद्र को समझाया, "मैं कहीं जाने के लिए रास्ता-वास्ता नहीं मांग रहा। भाप-बादल वगैरह बनाने के लिए जरा सा पानी चाहिए, जो बरसकर अंततः लौट भी तुम्हारे ही पास आएगा।"
  कैशबैक स्कीमों की तरह घाटे का सौदा न होना जान कर समुद्र सूरज को पानी देने के लिए तैयार हो गया । 
    जब सब बाधाएं पार हो गईं, तो राजा सर्वदमन के पराक्रम से भयभीत इंद्र ने पूछा, "महाराज! सिर्फ रेत ही पर छिड़काव करना है या पानी पीने के लिए भी चाहिए?"
     राजा सर्वदमन बोला, "बस, रेत ही पर छिड़काव करदो। पीने का पानी तो मेरे राज्य में हर दुकान पर बोतलों में मिल जाता है।"
   यों समुद्र ने पानी दिया। सूरज ने समुद्री पानी से भाप और बादल बनाए। इंद्र ने हल्की बरसात से छिड़काव कर रेत को उड़ने से रोका।
  इतने परिश्रम के बाद तो भक्तों द्वारा अपने राजा सर्वदमन का रंगारंग आभार बनता भी था।
                            *****
अगस्त 9, 2022
     
                             (16)

     आत्मनिर्भर राज्य के मध्यवर्ग का क्लियर कट कहना था कि सुविधाएं हैं जहां, हम हैं वहां। अतः मध्यवर्गीय नागरिक बिजली होने पर बाहर नहीं दिखते थे और बिजली नहीं होने पर घर में नहीं टिकते थे।
    बिजली कटौती की जानकारी के लिए वे नियमित अखबार खरीदते थे। हालांकि कायल टेलीविजन के थे कि अफवाह हो या झूठी खबर टेलीविजन वाले फैलाने में चौबीस घण्टे नहीं लेते।
    सूर्योदय हो चुका था। भोली चिड़ियों को पता होता कि उनके चहचहाने से जागकर मनुष्य उधम मचाना शुरू कर देगा, तो शायद वे न चहचहातीं। दूधिये और हॉकर घर-घर दस्तक दे रहे थे। भले ही दूध में दूध उतना ही होता था, जितनी अखबार में खबर।
    चिंतामणि बिस्तर छोड़ना चाहता था, लेकिन बिस्तर उसे नहीं छोड़ रहा था। तभी अखबार गिरने की आवाज सुनकर वह उठा, इस हड़बड़ी के साथ कि उससे पहले अखबार परिवार का कोई दूसरा न उठा ले। अखबार के लिए चिंतामणि की हड़बड़ी वाजिब थी। उस दौर में चित्रपट का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखना एडवांस होने की कसौटी थी, तो रोज सबसे पहले अखबार देखना इंटेलेक्चुअल होने की। चित्रपट एक शो भी देर से देखने का मतलब था, बिना नहाए कपड़े बदल लेना तथा एक का भी देखा हुआ अखबार देखने का अर्थ था नहाने के बाद फिर से वही कपड़े पहन लेना।
    चिंतामणि ने तकिया दीवार से लगाया और पीठ तकिए से। वह एल आकार में बैठ अखबार खोलकर विज्ञापनों में से समाचार बीनने लगा, जैसे एक-मेक हो चुके राई और सरसों के दाने छांट रहा हो।
     रोज की तरह आदि से अंत तक अखबार राजा सर्वदमन की यश गाथाओं से पटा पड़ा था। उसके साहस ही साहस की खबरें थीं कि राजा सर्वदमन ने चूसकर खाने वाला आम काटकर खाया और काटकर खाने वाला आम चूसकर। राजा सर्वदमन ने गाय के साथ सेल्फी ली, तो सम्पादक ने उसकी तस्वीर के साथ दावा छाप दिया कि गाय के साथ सेल्फी लेना ही सच्ची गौ सेवा है।
     अचानक चिंतामणि की नजर अपने इलाके में बिजली कटौती वाली खबर पर पड़ी। खबर देखकर उसके पास परिचितों से मिलने-जुलने या घूमने-फिरने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
    सुबह अखबार में अपने क्षेत्र में बिजली कटौती की खबर देखकर मध्यवर्गीय लोग अपनी आगे की कार्य योजना बनाते थे। बिजली कटौती होने से उनके पास दो ही रास्ते बचते थे। या तो उन जानकारों के यहां मिलने-जुलने चले जाना जिनके यहां उस दिन बिजली कटौती नहीं होती थी या फिर घूमने-फिरने निकल पड़ना।
    मिलने-जुलने, घूमने-फिरने निकले लोगों को देखकर ही समझा जा सकता था कि आज उनके यहां बिजली नहीं है।
     बिजली होना न होना इतना मायने रखता था कि यदि किसी के यहां बिजली कटौती होती और वह किसी अन्य को कहता कि आओ आज कहीं मिल-जुल, घूम-फिर आएं, तो सामने वाला मजबूरी बता देता था कि आप ही हो आओ, हमारे यहां तो बिजली है।
    भक्त विरोधियों को ताना मारते रहते थे कि बिजली कटौती करते रहने के लिए अहसान मानो राजा सर्वदमन का, अन्यथा तुम कभी का मिलना-जुलना, घूमना-फिरना भूल जाते।
    अखबार वालों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि उनके यहां बिजली कटौती होने पर भी वे अखबार छाप लेते थे, ताकि अपने पाठकों को बिजली कटौती की सूचना बराबर देते रहें, क्योंकि अखबार छपते, बिकते और देखे ही इसलिए जाते थे।
                           *****
अगस्त 11, 2022

                               (17)

     यों तो राजा सर्वदमन के राज में शिक्षण संस्थान और रोग निदान केंद्र सरकारी तथा गैरसरकारी, दोनों प्रकार के होते थे, लेकिन गैरसरकारी जहां थोड़े-बहुत उपयोगी होते थे, वहीं सरकारी सिर्फ होते थे।
    उस वर्ग को छोड़ दें जो शिक्षा और इलाज मिलना भाग्य की बात मानता था, तो बाकी लोगों में महंगी शिक्षा और महंगे इलाज का जबरदस्त क्रेज था।
    राजा सर्वदमन स्वयं बहुत बड़ा साक्षर था, अतः चीजों के महंगी होने के फायदे जानता था। उसके अनुसार महंगी शिक्षा और महंगा इलाज ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षा और सर्वश्रेष्ठ इलाज थे। वह अपनी प्रजा के दिल-दिमाग में गहरे बिठा चुका था कि अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षण से नहीं, धन से मिलती है और मरीज का पक्का इलाज दवा से नहीं, बिल से होता है।
    प्रजा आज्ञाकारी थी ही, सो शिक्षा और इलाज के लिए गहने, जमीन, मकान सब बेच देती थी, लेकिन राजा सर्वदमन से कभी सवाल नहीं करती थी कि महाराज, भारीभरकम कर चुकाने के बावजूद सस्ती शिक्षा और सस्ता इलाज क्यों नहीं मिलते?
   माता-पिता बच्चों के जन्म से पहले ही उनके प्रवेश के लिए ऐसे शिक्षण संस्थान की खोज में जुट जाते थे, जो सर्वाधिक महंगा हो, क्योंकि महंगी पढ़ाई की थर्ड डिविजन सस्ती पढ़ाई की फर्स्ट डिविजन से उत्तम मानी जाती थी।
     मरीजों को छुट्टी देते समय रोग निदान केंद्र वाले यदि कम राशि का बिल बना देते थे, तो मरीजों लगता था कि वे पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं। सामान्य बुखार का बिल भी यदि लाख स्वर्ण मुद्राओं का नहीं बनता, तो मरीज की जान को नया बुखार चढ़ जाता था। मरीजों का मनोविज्ञान भांपते रहने से रोग निदान केंद्र वाले इतने दयालु बन चुके थे कि इलाज दवाओं से कम, बिल से अधिक करते थे।
    शिक्षण संस्थानों और रोग निदान केंद्रों की क्षमता-योग्यता नहीं, ब्रांडिंग देखी जाती थी। कम खर्च वाले शिक्षण संस्थानों और रोग निदान केंद्रों को यह कहकर खारिज कर दिया जाता था कि जो ग्राहकों से मोटी रकम नहीं ऐंठ सकते, वे क्या तो पढ़ाएंगे और क्या इलाज करेंगे?
    रोग निदान केंद्र से घर लौटने के बाद मरीज से मिलने आने वाले यह नहीं पूछते थे कि तबीयत कैसी है, बल्कि यह पूछते थे कि बिल कितने का बना? बिल की राशि जितनी अधिक होती थी, बताते समय मरीज को उतना ही अधिक आराम मिलता था।
   किसी नागरिक को पता चलता कि उसके पड़ौसी का बच्चा उसके बच्चे से महंगी पढ़ाई पढ़ रहा है, तो वह तुरंत अपने बच्चे को उस शिक्षण संस्थान से छुड़ाकर पड़ौसी के बच्चे से अधिक महंगे शिक्षण संस्थान में भर्ती कराने निकल पड़ता था। अपने बच्चों को महंगी पढ़ाई पढ़ाने को लेकर नागरिकों में वैसी ही प्रतिस्पर्धा रहती थी, जैसी दीपावली पर अधिक जोरदार धमाके वाले पटाखे चलाने की रहती थी।
    महंगी पढ़ाई पढ़ाना इस कदर प्रतिष्ठा की बात थी कि घर आया मेहमान मेजबान से यह नहीं पूछता था कि बच्चे को कौनसी वाली पढ़ाई पढ़ा रहे हो, बल्कि यह पूछता था कि कितने वाली पढ़ाई पढ़ा रहे हो?
    पढ़ाई और इलाज अधिकतम महंगा हासिल करने के चक्कर में आत्मनिर्भर राज्य में ऐसा मनोरंजक वातावरण रहता था कि पढ़ने जाने वालों को लगता था वे इलाज के लिए जा रहे हैं और इलाज के लिए जाने वाले समझते थे वे पढ़ने जा रहे हैं।
                               *****
अगस्त 13, 2022
    
                               (18)

    आत्मनिर्भर राज्य में दो-दो शब्द लिखे दो बोर्ड बारहों मास दिन-रात देखे जा सकते थे- शिक्षण संस्थाओं पर एडमिशन ओपन और दुकानों पर डिस्काउंट सेल।
   पूर्ण स्वस्थ नागरिक भी एक्सपायरी डेट निकल चुकी दवाइयां सिर्फ इसलिए खरीद लाते थे कि दवा की दुकानों पर डिस्काउंट सेल लिखे बोर्ड टंगे रहते थे।
    चालाक अर्थशास्त्रियों ने चुम्बक के गुण बाजार में भर दिए थे और नागरिकों को लोहा बना दिया था।अतः खरीदारी जितनी जरूरत के लिए की जाती थी, उससे कई गुना अधिक बोरियत मिटाने के लिए की जाती थी।
    आत्मनिर्भर राज्य की प्रजा हर समय खरीदारी ही के चक्कर में रहती थी और खरीदारी का एक चक्र था। कुछ न कुछ खरीदते रहना, खरीदे हुए से बोर होते रहना और बोरियत से मुक्ति के लिए फिर कुछ न कुछ खरीदते रहना।
    बाजार और धर्म की जुगलबंदी हो जाए, तो घोर नास्तिक भी लक्ष्मी छाप सोने-चांदी के सिक्के खरीदने लगते हैं।
    बंधुआ मीडिया ने बाजार के हिसाब से पुरानों से इतर नए त्योहार गढ़ डाले थे और हर त्योहार पर खरीदारी के शुभमुहूर्त बताता रहता था। बंधुआ मीडिया ही से खरीदारों को ज्ञात होता था कि भद्रा शनि की बहिन है तथा क्या खरीदने के लिए कौनसा योग और कौनसा चौघड़िया श्रेष्ठ होता है?
    खरीदारी के मामले में मुहूर्त के प्रति विश्वास इस हद तक दृढ़ था कि दवा खरीद के लिए भी शुभ-अशुभ देखा जाता था, भले मरीज की हालत कितनी भी नाजुक हो।
   चिंतामणि को जुकाम था। वह दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया।
   आप मेरे कहे में व्याकरण दोष निकाल सकते हैं कि इतना कहना ही पर्याप्त होता है कि दवा खरीदने गया। यह कहने की क्या जरूरत है कि दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया? दवा खरीदने दवा ही की दुकान पर तो जाया जाता है।
    क्षमा करें, इतना सा व्याकरण मैं भी जानता हूं, लेकिन बाजार का व्याकरण भाषाई व्याकरण से अलग होता है। मेरी बात पूरी होने दें, मेरे 'दवा खरीदने दवा की दुकान पर गया' कहने के पीछे का सारा व्याकरण आप भी समझ जाएंगे।
   दवा विक्रेता चिंतामणि का परिचित था और उसका हास्यबोध भी अच्छा था। उसने दवा की पर्ची लेते हुए मजाक की, "धनतेरस के दिन भी बीमार पड़ गए क्या?"
   चिंतामणि को अचानक स्मरण हुआ कि उस दिन धनतेरस थी। उसने भी मजाक का जवाब मजाक से दिया, "धनतेरस पर बीमार पड़ने के तीन शुभ-लाभ हैं। एक, आज के दिन दवा खरीदने से धनतेरस पर खरीदारी वाली परम्परा निभ जाएगी। दूसरा, धनतेरस पर जन्मे धन्वंतरि आरोग्य के देवता हैं, सो आज के दिन औषधि खरीद से उनका आभार भी प्रकट हो जाएगा। तीसरा, आज के दिन आप ही की दुकान पर सबसे कम भीड़ है।"
     दवा विक्रेता ने मजाक में बढोत्तरी की, "सच कह रहे हो। अन्य दुकानदारों के यहां ग्राहकों की भारी भीड़ देखते हुए पछतावा हो रहा है कि काश! आज अपनी दवा की दुकान के आगे बर्तन लगा लेते, तो हम भी धनतेरस पर ठीकठाक कमाई कर लेते। दस दुकान छोड़कर सिंह साहब हैं दवा की दुकान वाले, दीपावली पर पटाखे बेचते हैं।"
   चिंतामणि ने चिंता जाहिर की, "सिंह साहब के पास पटाखे बेचने का लाइसेंस है क्या?"
    दवा विक्रेता बोला, "सिंह साहब के पास लाइसेंस ही पटाखे बेचने का है, बिना लाइसेंस के तो वह दवाइयां बेचते हैं।"
                              *****
अगस्त 15, 2022

                                (19)

     दोपहर में राजा सर्वदमन ने छक कर पौष्टिक भोजन ग्रहण किया और चमाचम चमकते वॉशबेसिन में हाथ-मुंह धोकर साफ-स्वच्छ गद्दे पर पैर फैलाकर पसर गया।
     खिड़कियों से छन-छन कर आते मंद पवन के झोंकों और जायकेदार भोजन के नशे के बावजूद जब उसे नींद नहीं आई, तो उसने मसनद के सहारे अधलेटा होकर पास पड़ा सुबह का अखबार उठा लिया। मुखपृष्ठ पर पहली ही खबर का शीर्षक देखकर उसके कमलमुख से 'बकवास' शब्द निकला और उसने अखबार को बिना खोले ज्यों का त्यों धर दिया। खबर उसके आत्मनिर्भर राज्य के किसी गांव देहात में भूख से पीड़ित बच्चों के बारे में थी।
    राजा सर्वदमन ने तुरंत महामात्य शांतिरिपु को तलब किया और शिकायत की, "महामात्य शांतिरिपु, मीडिया के मेरे सिंहासन के पाये से बंधा होने के बावजूद किसी कागजी शेर ने मेरे सुशासन को बदनाम करने की हिमाकत कैसे की?" 
   महामात्य शांतिरिपु सविनय बोला, "महाराज! अखबार मालिक ऊलजलूल खबरों के सहारे अपने अखबार का सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए ओछे हथकंडे अपनाते रहते हैं। जब आप नित्य नियम से भोजन कर रहे हैं, तब आपके राज्य में भला भूख की समस्या कैसे हो सकती है? आपके स्वादिष्ट भोजन कर चुकने के पश्चात भी यदि कोई भूख-वूख का रोना रोता है, तो यह तो सीधे-सीधे राजद्रोह है।
    आश्वस्त रहें महाराज, मैं अभी इस अखबार के मालिक और सम्पादक के पेंच कसता हूं।"
     महामात्य शांतिरिपु के सत्य वचनों से गदगद होकर राजा सर्वदमन उसे राज्य के विकास और प्रजा के अच्छे दिनों के बारे में बताने लगा, "जबसे मैंने राजमहल में रहना शुरू किया है, राज्य में किसी के पास आवास की समस्या नहीं है।"
    महामात्य शांतिरिपु ने राजमहल की छत की ओर इशारा करते हुए कहा, "देखिए, आपकी कृपा से आज हर नागरिक के सिर पर मजबूत छत है महाराज।"
   राजा सर्वदमन बताता गया, "मैं रथ से आवागमन करता हूं, तो मैं यह कैसे स्वीकार करलूं कि मेरे राज्य का कोई नागरिक शौकिया वॉक करने के अलावा कभी पैदल चलता है? राज्य में लोग तभी पैदल चलते-भटकते थे, जब राजपद मिलने से पहले मुझे पैदल चलना-भटकना पड़ता था। आज मेरे पास न धन का अभाव है और साधन का, इसी से सिद्ध है कि मेरे राज्य के हर नागरिक के पास धन भी है और साधन भी।"
   महामात्य शांतिरिपु सच का साथ देता रहा अर्थात राजा सर्वदमन की हां में हां मिलाता रहा।
    राजा सर्वदमन महामात्य शांतिरिपु को अपना वस्त्रागार दिखाते हुए बोला, "लो, देखो महामात्य शांतिरिपु, मेरे राज्य के प्रत्येक नागरिक के पास कितने आकार-प्रकार के कितने ढेरों-ढेर वस्त्र हैं।
    मेरा सामान्य सरदर्द होने पर ही कैसे एक से एक विशेषज्ञ चिकित्सक दौड़े आते हैं। मेरे राज में प्रजा को कितनी शानदार चिकित्सा सुविधा सुलभ है।
    सर्दियों में जब मैं राजमहल में हीटर चलवा लेता हूं, तब राज्य से सर्दी सदा के लिए विदा हो जाती है और  ऋतुएं केवल पांच रह जाती हैं।"
   शिक्षा को लेकर महामात्य शांतिरिपु ने बड़ी शिक्षाप्रद बात कही, "आप सिर्फ साक्षर हैं, फिर भी आपके पास उच्च शिक्षा की डिग्री है महाराज। इसी से साफ है कि राज्य में न साक्षरता की कमी है और न उच्च शिक्षा की डिग्रियों की। न सिर्फ हर साक्षर के पास उच्च शिक्षा की डिग्री है, बल्कि जिसके पास उच्च शिक्षा की डिग्री है वह साक्षर भी है।"
    अंत में राजा सर्वदमन ने स्वीकारा, "हां, संसार में भयंकर पीड़ा उस समय जरूर थी जब मेरे पांवों में बिवाइयां फटी हुई थीं।"
                              *****
अगस्त 17, 2022

                               (20)

   एक दोपहर राजा सर्वदमन ने अपने राजसी वस्त्र, मुकुट आदि उतारे और मनुष्य रूप धरकर पैदल-पैदल राजधानी में यह जांचने निकला कि डिजिटल क्रांति कहां तक पहुंची?
    राजा सर्वदमन बहरूपिया कला में पारंगत था ही। मनुष्य रूप में वह कहीं से राजा नहीं लगा। जैसे राजा के रूप में वह कहीं से मनुष्य नहीं लगता था।
    वह अपने राज्य की कानून व्यवस्था देखने कभीकभार कोतवाल का रूप धरकर भी निकलता था। उसकी वर्दी, बातचीत का ढंग, पिनलकोड की समझ, रौब-दाब, अभद्र भाषा सब असली कोतवाल जैसे होते थे। राजा सर्वदमन कोतवाल की ऐसी नकल करता कि असली कोतवाल बगल में खड़ा कर दिया जाता, तो असली कोतवाल नकली लगता।
     कहीं अपराध होने की सूचना मिलती, तो घटना स्थल पर देरी से पहुंचता और लेशमात्र भी संवेदनशीलता नहीं दिखाता। लोगों को पक्का विश्वास रहता कि कोतवाल साहब न समय के पाबंद हैं और न संवेदनशील। इसका मतलब है कि कोतवाल साहब हैं तो असली कोतवाल साहब ही।
   मनुष्य रूप धरे राजा सर्वदमन ने मनुष्यों पर डिजिटिलाइजेशन का गजब असर देखा। सब लोग ऐसा व्यवहार करते दिखे जैसे उनमें प्रोग्राम फीड हों और कोई उन्हें माउस से संचालित कर रहा हो।
    राजधानी के बड़े चौक-चौराहों पर प्रदूषण सूचकांक दर्शाने वाले स्वचालित डिस्प्ले बोर्ड लगे मिले, ताकि नागरिक प्रदूषण घटने पर तुरंत बढ़ाकर मेंटेन करते रहें।
     वह दो-चार सरकारी दफ्तरों में घूमा। डिजिटल क्रांति की प्रगति देखकर उसे हार्दिक तसल्ली हुई कि रिश्वत ऑनलाइन भी ली जा रही थी।
   उसने देखा कि कई बैंक खाताधारक अपने खातों से जालसाजों द्वारा ऑनलाइन रकम निकालने की शिकायत दर्ज कराने कोतवाली के दरवाजे पर खड़े थे। उसे दुःख नहीं, खुशी हुई कि डिजिटलाइजेशन उत्तरोत्तर सुपरिणाम दे रहा था कि कोई भी कहीं से भी किसी का भी किसी भी बैंक में जमा धन आसानी से निकाल सक रहा था, वरना एक समय था कि लोगों के अपने ही बैंक जाकर अपना ही धन निकालने में पसीने छूट जाते थे।
   यह देखकर तो वह झूम ही उठा कि कोतवाल भी पीड़ितों को ऑनलाइन शिकायत करने का आदेश देकर भगा रहा था।
   राजा सर्वदमन के पास उच्च शिक्षा की बिना परीक्षा के ली हुई डिग्री थी। उसने बाजार में परीक्षाओं में नकल करने के एक से एक उपकरण देखे, तो उसका मन हुआ कि क्यों न उच्च शिक्षा की एक डिग्री परीक्षा देकर भी ले ली जाए? लेकिन वह यह सोचकर आगे बढ़ गया कि राजा बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती और राजा बनने के बाद हर डिग्री ली ही जा सकती है।
   राजा सर्वदमन आवासीय बस्ती में पहुंचा। शाम गहरा चुकी थी। उसे एक घर की रसोई से धुआं उठता दिखा। उसने घर के मालिक को बुलाकर नाराजगी जाहिर की, "डिजिटल युग में भी खाना ऑनलाइन नहीं मंगाते हो?"
   गृहस्वामी ने उसे बिना पहचाने कहा, "दाल-चावल ऑनलाइन ऑर्डर किए थे। डिलीवरी मैन ले भी आया था, लेकिन दाल-चावल के एक भी दाने पर महापराक्रमी राजा सर्वदमन की फोटो नहीं दिखी, तो मैंने फूड पैकेट लौटा दिया।"
    गृहस्वामी की राजभक्ति से प्रसन्न हो, राजा सर्वदमन ने वहीं खड़े-खड़े राजकोष से उसके बैंक खाता में एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं ऑनलाइन ट्रांसफर कीं और डिजिटल क्रांति पर गर्व करता हुआ राजमहल लौट आया।
                            *****
अगस्त 19, 2022

Friday, 11 February 2022

तमाशेबाज राजा

तमाशेबाज राजा
(हास्य-व्यंग्य नाटक)

©सम्पत सरल
sampatsaral@yahoo.com

समर्पित उन्हें-
जो वास्तविक जीवन में भी
अभिनय करते हैं।

पात्र
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राजा: उम्र 60-65 वर्ष (आत्ममुग्ध, अहंकारी। प्रचार, सेल्फी, फोटो, कपड़ों आदि का जबरदस्त शौकीन)
मंत्री: उम्र 45-50 वर्ष
कोतवाल: उम्र 25-35 वर्ष
बांके: उम्र 35-40 वर्ष
काका: उम्र 60-65 वर्ष (गांधीवादी स्वभाव-पहनावा, मोबाइल फोन नहीं रखता)
सौदागर: उम्र 40-45 वर्ष (कॉरपोरेटी धज)
सौदागर की पत्नी: उम्र 35-40 वर्ष
कंसल्ट गुरु: उम्र 40-45 वर्ष (पाश्चात्य व्यक्तित्व)
ब्रीफकेस बाबा: उम्र 40-45 वर्ष (हर समय ब्रीफकेस लिए)
रिशेप्सनिस्ट (महिला): उम्र 25-35 वर्ष
पति: उम्र 40-45वर्ष
पत्नी: उम्र 35-40 वर्ष
पत्रकार (पुरूष 1, 2, 3): उम्र 25-35 वर्ष
पत्रकार (महिला): उम्र 25-35 वर्ष
भक्त (1, 2, 3, 4): उम्र 25-35 वर्ष
एंकर (सुधीर): उम्र 25-35 वर्ष
रिपोर्टर (अधीर): उम्र 25-35 वर्ष
विघ्नसंतोषी 'विघ्न': उम्र 35-40 वर्ष (कवि, वीर रस)
चिरप्रेमी 'घनचक्कर': उम्र 35-40 वर्ष (कवि, श्रृंगार रस)
मोतीलाल: उम्र 40-45 वर्ष
मांगीलाल: उम्र 40-45 वर्ष
इंटेलैक्चुअल: उम्र 55-60 वर्ष

मंच का पर्दा गिरा है। नेपथ्य से घोषणा होती है-
"इस नाटक के सभी पात्र, घटनाएं, उनके नाम आदि काल्पनिक हैं। इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस नाटक की कहानी किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन से प्रेरित नहीं है। यदि किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता पाई जाती है, तो यह मात्र संयोग होगा।"

दृश्य-एक
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(छुट्टी का दिन। अपराह्न चार बजे का समय। पति ड्राइंगरूम में चटाई पर पद्मासन की मुद्रा में बैठा मोबाइल फोन पर योगासनों के वीडियो देख रहा है। पत्नी चाय लेकर आती है।)
पत्नी- योगासनों के वीडियो देखते समय ए.सी. चला लिया करो, वरना पसीने में नहा जाओगे।
(पति हंसकर चाय पीने लगता है। पत्नी पति के पेट की तरफ इशारा करके)
और सुनो तोंद घटानी है, तो कल से पार्क के चक्कर स्कूटर के बजाय कार से काटना शुरु करो।
पति- (पुनः हंसकर) गोलू कहां है? उसे ट्यूशन नहीं जाना क्या?
पत्नी- (सोने की मुद्रा बनाकर) कुम्भकर्ण की विरासत का संरक्षण कर रहा है।
पति- अरे! उठा उसे और जल्द तैयार करके ट्यूशन भेज, वरना अनपढ़ के लिए पॉलिटिक्स के अलावा कहीं स्कोप नहीं है।
पत्नी- (व्यंग्य से) क्यों बाबा-वाबा बन सकता है, डेरा-आश्रम खोल सकता है, कथा-प्रवचन कर सकता है।
पति- वह तो और मुश्किल है। बाबा-वाबा बनने, डेरा-आश्रम खोलने, कथा-प्रवचन करने के लिए सिर्फ अनपढ़ होना ही काफी नहीं है, अज्ञानी होना भी जरूरी है।
पत्नी- बेटा बाप पर गया है। एक दिन यह उपलब्धि भी हासिल कर लेगा।
(दोनों हंसते हैं।)
पति- वैसे गोलू का जी.के. कमाल है। परसों मैंने पूछा कि महर्षि पतंजलि के बारे में क्या जानते हो, तो बेटे ने तुरन्त उत्तर दिया कि महर्षि पतंजलि बहुत बड़ी स्वदेशी कम्पनी के ऑनर हैं, जो विभिन्न प्रकार के कंज्यूमर प्रोडक्ट बनाती है।
पत्नी- पिता ज्ञानी, बेटा महाज्ञानी। (रुक कर) 'ज्ञानी' शब्द से पहले 'अ' साइलेंट है समझे। (रुक कर) बुद्धू बक्से का कनेक्शन कटवा दो, वरना परीक्षा में यह भी लिख आएगा कि रामायण महर्षि रामानन्द सागर ने लिखी थी।
पति- चल छोड़ आज गोलू की ट्यूशन-व्यूशन। शाम को नाटक देखने चलते हैं।
पत्नी- घर में ही बाप-बेटा क्या कम नाटक करते हो कि थिएटर में देखने चलें? (मजाकिया लहजे में) खाना घर नहीं बनाना पड़े, तो नाटक थिएटर में भी देख लेंगे। वैसे नाम क्या है नाटक का?
पति- तमाशेबाज राजा?
पत्नी- (घोर आश्चर्य से) कोई राजा तमाशेबाज भी हो सकता है?
पति- बहुत ऊंचे दर्जे का। छंटा हुआ तमाशेबाज।
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दृश्य-- दो
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(संध्या का समय। पृष्ठ भाग में राजदरबार का दृश्य। मंच के मध्य में नाटक के सभी पात्र समूह में गीत गाते हैं। राजा गीत के भावार्थ के अनुसार तरह-तरह की अदाएं दिखाता है।)

गीत
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राजा गजब तमाशेबाज।
जब देखो तब नया तमाशा, तनिक न आवै लाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

जो भी जाता लेकर आशा,
टरका  देता  दिखा तमाशा,
ठगने की अपनी शैली है, अपना ही अंदाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

भूख प्यास विपदा बेकारी,
खूब दिखाता खेल  मदारी,
लोग बजाएं ताली सुन-सुन, डमरू की आवाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

आग लगे तो बैठ अटारी,
बंशी की धुन छेड़े प्यारी,
गर कोई दर्पण दिखलाए, तो होता नाराज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

सौदागर    चमचे    दरबारी,
मिलजुल मौज उड़ाते भारी,
महिमा अपरम्पार तुम्हारी, झूठों के सरताज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।
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दृश्य- तीन
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(प्रातः दस बजे का समय। राजमहल के मुख्य द्वार पर कोतवाल तैनात है। मंत्री का आगमन। कोतवाल सैल्यूट ठोकता है। मंत्री सैल्यूट की अनदेखी करता हुआ भीतर प्रवेश करता है। राजदरबार में राजा का सिंहासन खाली है। मंत्री घड़ी देखता हुआ बेचैनी से राजा की प्रतीक्षा करता हुआ इधर से उधर जाता-आता है। थोड़ी देर बाद हाथों में चाय की केतली उलटी पकड़े, दो खाली कप लिए राजा का राजदरबार में आगमन। राजा चाय की केतली जिसकी टोंटी अपनी तरफ है और खाली कप सेन्टर टेबल पर रखता है। कोतवाल 'चाय पर चर्चा' लिखा हुआ बोर्ड रख जाता है।)
मंत्री- (झुक कर) महाराजाधिराज की जय हो।
राजा- मात्र एक जय नहीं मंत्रीजी, जय-जयकार सुनना चाहता हूं। दिग-दिगन्त में जय-जयकार। मैं जीते जी और जल्द से जल्द अमर होना चाहता हूं मंत्रीजी। मैंने राजपद तक पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष किया है। बचपन में मैंने चाय बेची है और भरी जवानी में गृहस्थी त्यागी है।
मंत्री- आप धन्य हैं महाराज। आपका संघर्ष और त्याग प्रजा के लिए बेहद प्रेरणादायक है। (सलाह देते हुए) महाराज! यह आत्मप्रचार का युग है, सो अपनी गरीबी और बलिदान को अपने वक्तव्यों में अवश्य भुनाया करें।
राजा- (सेल्फी लेकर) मैं अपनी गरीबी और बलिदान को वक्त-जरूरत भुनाता रहा हूं और भविष्य में भी भुनाने से पीछे नहीं हटूंगा। मुझे पालने में ही आत्मज्ञान हो गया था कि एक दिन राजा बनकर सबका विकास सिर्फ मैं ही कर सकूंगा। मेरा न कोई विकल्प है और न ही होगा। क्यों मंत्रीजी?
(राजा सेल्फी लेता है।)
मंत्री- आपका विकल्प? असम्भव। कतई असम्भव। सूर्य पश्चिम में उदय हो सकता है, हिमालय गर्त में समा सकता है, समुद्र मीठा हो सकता है, ग्लेशियर अग्निपिंडों में बदल सकते हैं, ज्वालामुखी बर्फ उगल सकते हैं, और तो और श्वानों की पूंछें भी सीधी हो सकती हैं, लेकिन न आपका विकल्प था, न है और न कभी होगा ही महाराज।
(राजा सेल्फी लेता है। मंत्री चाय की केतली की तरफ हाथ बढ़ाता है।)
राजा- (मंत्री को रोकते हुए) ना ना ना ना। इन्हें हाथ न लगाएं मंत्रीजी। कोई मेरी चाय की केतली और कपों को छूये, तो मुझे लगता है, वह मेरा राजमुकुट छीन रहा है।
मंत्री- (कपों में चाय डालते वक्त केतली की टोंटी उलटी तरफ देख, सीधी कराते हुए) महाराज चाय किसी भी उम्र में बेची जाए, केतली यूं नहीं, यूं पकड़ी जाती है। (समझाते हुए) चाय की केतली सीधी नहीं पकड़ोगे, तो बचपन में चाय बेचने वाला झूठ पकड़ा जाएगा।
राजा- (दांतों से जीभ काट, केतली सीधी कर, कपों में चाय डाल, एक कप मंत्री की ओर बढ़ाते हुए) मैं जीते जी और जल्द से जल्द अमर होना चाहता हूं मंत्रीजी।
(राजा खाली केतली एक बार उलटी रखता है। फिर दांतों से जीभ काट, केतली सीधी करता है।)
मंत्री- (चाय का कप थाम, केतली सीधी रखना सिखाते हुए) इसके समस्या के स्थाई समाधान के लिए दिन में पांच-सात बार केतली सीधी रख-रख कर अभ्यास कर लिया करें। अभ्यास करते रहने से जड़मति सुजान हो जाता है।
राजा- मैं जीते जी और जल्द से जल्द अमर होना चाहता हूं।
मंत्री- (चाय पीते हुए) चाय पियें। मन भारी न करें महाराज। आप में जीते जी और जल्द से जल्द अमर होने का गुण जन्मजात है, जिसे और भी तराशा जा सकता है।
(राजा सेल्फी लेता है। मंत्री उठकर राजसिंहासन के ठीक सामने धरा हुआ एक अन्य बोर्ड पढ़ता है।)
"गृहक्लेश रहना, प्रेमविवाह, लक्ष्मी रुकावट, बनते-बनते किसी काम का न बन पाना, पति-पत्नी में अनबन, बीमारी में दवा का न लगना, प्यार में चोट खाए, किसी के करे-कराए का बहम होना, सौतन व दुश्मन से छुटकारा, दुश्मन की सौतन को अपना बनाना, शादी-प्यार में अड़चन, बेटा-बेटी की परेशानी, गड़े धन में नाकामयाबी, संतान का न होना"
नोट- मेरे किए हुए को काटने वाले को ईनाम।
खुला चैलेंज- जिसे होगा ज्ञान / वही करेगा समाधान
विशेष- मेरी कोई अन्य ब्रांच नहीं है।
(मंत्री प्रश्नसूचक दृष्टि से राजा की ओर देखता है।)
राजा- मंत्रीजी इस बोर्ड पर लिखी हुई प्रजा की इन मूलभूत समस्याओं का समाधान ही मेरे जीवन का ध्येय है। यह बोर्ड नहीं, एक महान राजा का संकल्पपत्र है। इसे मैंने यहां इसलिए रखवा रखा है, ताकि जब-जब भी सिंहासन पर बैठूं, यह मेरी दृष्टि के सामने रहे और मैं प्रजा के उद्धार से विमुख न होऊं।
(राजा बोर्ड के बराबर में खड़ा होकर सेल्फी लेता है।)
मंत्री- यह संकल्पपत्र किस विद्वान की रचना है? लेख और समस्याएं दोनों मारक हैं महाराज।
राजा- (आत्ममुग्ध होते हुए)  एक दिन मैं भेष बदलकर ई-रिक्शा चलाता हुआ, राजधानी-भ्रमण पर था। अचानक मैंने देखा लम्बी दाढ़ी वाला एक अधेड़ फकीर, यही बोर्ड रखे, अपार भीड़ को उनकी इन्हीं समस्याओं का निदान बता रहा था। मैंने वह सब देखा, तो पहले मुझे आश्चर्य हुआ, फिर क्रोध आ गया। मेरे होते मेरे राज्य में ऐसा लोक कल्याणकारी प्रॉजेक्ट कोई अन्य कैसे चला सकता है? मैंने कूदकर बोर्ड उठाया और ई-रिक्शा में रखा। उस फकीर को भी सदा के लिए वहीं से कारागार भिजवाया।
मंत्री- उस फकीर ने या उसके किसी क्लाइंट ने आपका विरोध नहीं किया महाराज?
राजा- नहीं, किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। दरअसल मेरे ई-रिक्शा से कूदने की स्टाइल से ही सब समझ गए कि मैं ही राजा हूं।
(राजा सेल्फी लेता है।)
मंत्री- उसका बोर्ड उठा लेने के बाद भी आपने उसे कारागार में डलवाना क्यों जरूरी समझा?
राजा- वरना वह दूसरा बोर्ड बना डालता और मेरे इस दावे में सेंध लग सकती थी कि 'मेरी कोई अन्य ब्रांच नहीं है'। (रुक कर) मैं जीते जी जल्द अमर होना चाहता हूं मंत्रीजी।
मंत्री- असम्भव नहीं है, बस इसके लिए...
राजा- बस इसके लिए क्या मंत्री जी?
मंत्री- हर समय चौंकाने और छा जाने वाले निरर्थक क्रियाकलाप जरूरी हैं। सार्थक काम करके अमर होना तो मरणोपरांत ही सम्भव है महाराज।
राजा- तो इसके लिए करना क्या पड़ेगा?
मंत्री- विशुद्ध तमाशेबाजी।
राजा- मुझसे पूर्व के शासक जीते जी अमरता हासिल नहीं कर पाए। ऐसा क्यों हुआ होगा?
मंत्री- आपके पूर्ववर्तियों ने तमाशेबाजी नहीं की होगी।
राजा- (उछलकर) बस-बस, मास्टर-की हाथ लग गई मंत्रीजी। राजा का सिंहासन पर डटे रहकर जीते जी और जल्द से जल्द अमर होने का एक ही नुस्खा है- तमाशेबाजी करते रहना। (सेल्फी लेकर) मैं अगले जन्म में भी आप ही को अपना मंत्री रखूंगा मंत्रीजी।
मंत्री- (एक आंख दबाकर) आपने तो शुरू भी करदी महाराज।
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दृश्य-चार
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(सुबह दस बजे का समय। राजा सिंहासन पर बैठा है। द्वार पर कोतवाल तैनात है। मंत्री का आगमन। कोतवाल द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर। मंत्री ने गार्ड ऑफ ऑनर की अनदेखी की और भीतर प्रवेश किया।)
राजा- आओ मंत्रीजी, आओ। राज्य में सब अमन-चैन?
मंत्री- सब अमन-चैन। हर नागरिक सामर्थ्य से अधिक कर दे रहा है और जरूरत से कम सांस ले रहा है, महाराज।
(राजा खुश होकर सेल्फी लेता है।)
राजा- नागरिक पहले कर दे रहे हैं या सांस ले रहे हैं, मंत्री जी?
मंत्री- पहले कर दे रहे हैं, उसके बाद ही सांस ले रहे हैं।
राजा- कोई कम कर देकर अधिक सांस तो नहीं ले रहा है?
मंत्री- आपके राजा होते इतनी पोल थोड़े ही है महाराज। फिर भी कभी कोई बिना कर चुकाए आपके राज्य की जरा सी भी ऑक्सीजन खींचने का प्रयास करे, तो (कोतवाल की तरफ संकेत करके) आपका एस.ए. किस लिए है?
राजा (चौंक कर)- एस.ए.?
मंत्री- सिक्योरिटी एडवाइजर। छोटे सेवक को बड़े पदनाम से संबोधित करदो, तो वह कभी इंक्रीमेंट और प्रमोशन की डिमांड नहीं करता महाराज।
राजा- आप जैसा अर्थशास्त्र तो कौटिल्य के पास भी नहीं था मंत्रीजी। (रुक कर) आज का क्या सिड्यूल है?
मंत्री- एक विशिष्ट प्रतिभा आपसे भेंट करने आ रही है।
(राजा कपड़े ठीक कर, सेल्फी लेता है। एक स्मार्ट सा व्यक्ति नंगे पांव, दोनों जूते गले में लटकाए द्वार पर आता है। कोतवाल उसे पहचानकर उसके साथ सेल्फी लेता है और मंत्री को फोन करता है।)
कोतवाल- अंदर भिजवादूं साहब?
मंत्री- कौन है? विजिटिंग कार्ड देखा उसका?
कोतवाल- विजिटिंग कार्ड देखने की जरूरत नहीं है मंत्री जी। हरकतों से ही साफ है कि बन्दा बहुत बड़ा सेलिब्रेटी है।
(सेलिब्रेटी का भीतर प्रवेश। बिना बोले-चाले, जाते से ही राजा के साथ दो-चार सेल्फियां लेकर प्रस्थान। बाहर निकलने पर कोतवाल उसके साथ पुनः सेल्फी लेता है।)
(राजा हतप्रभ होकर मंत्री से आंखों से उस व्यक्ति का परिचय पूछता है।)
मंत्री- सेलिब्रेटी था महाराज। बहुत बड़ा सेलिब्रेटी। बहुत ही बड़ा सेलिब्रेटी।
राजा- नंगे पैर और जूते गले में?
मंत्री- सेलिब्रेटी जिस प्रोडक्ट का विज्ञापन करते हैं, उसका इस्तेमाल नहीं करते। आप भी तो भाषणों में सत्य की महिमा बखानते हैं, लेकिन खुद कहां बोलते है, महाराज?
(राजा गर्व के साथ सेल्फी लेता है।)
राजा- इसने तो मेरे हाथ की चाय भी नहीं चखी?
मंत्री- सेलिब्रेटी बिना पेमेंट लिए किसी की चाय-वाय नहीं पीते। इसकी महानता समझो कि मिलने आ गया, वरना सेलिब्रेटी तो भेंट करने की भी भेंट लेते हैं।
राजा- लेकिन उसे कुछ क्षण तो रुकना चाहिए था?
मंत्री- उसे ये सेल्फियां अविलम्ब अपने सोशलमीडिया प्लेटफार्मों पर डालनी हैं। सोशलमीडिया पर ऐसे लोगों के करोड़ों पिछलग्गू होते हैं?
राजा- पिछलग्गू माने?
मंत्री- पिछलग्गू माने हिन्दी में जिन्हें फॉलोअर्स कहते हैं। सूचनाक्रांति के भीषण दौर में फॉलोअर्स की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोशलमीडिया पर जिसके करोड़ों फॉलोअर्स हो जाएं, (एक आंख दबाकर) फिर उसे राजा बनने के लिए एक आंख अलग से नहीं फुड़वानी पड़ती।
             ********

दृश्य-पांच
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(सुबह दस बजे का समय। बाजार में चहलपहल है। सब अपने-अपने मोबाइलों में नजरें गड़ाए एक-दूसरे से बचते-टकराते आ-जा रहे हैं। मंच के एक कोने में सौदागर अपने लैपटॉप में काम में व्यस्त है। गली के नुक्कड़ पर नई पान की दुकान उद्घाटन के इंतजार में है। दुकान पर मोटे अक्षरों में लिखा है- बांके पान पैलेस। वैधानिक चेतावनी का बोर्ड भी लगा है- तम्बाकू, जर्दा, पानमसाला खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बाहर एक बेंच है जिसके पाये छोटे-बड़े होने से डगमग करती है। एक व्यक्ति आता है। खुद ही माला पहनता है और सेल्फी लेता है। जेब से कैंची निकालता है। सेल्फी लेते हुए दुकान का फीता काटता है। कैंची जेब मे रखता है। दुकान में जाता है। जेब से कैंची निकालकर पान का डंठल काटकर पान पर चूना-कत्था लगाता है। पहला पान भी खुद ही खाता है। यह देखकर दर्शक हंसते-ठहाके लगाते हैं।)
काका- (घूमता-घामता सा आकर दुकान के काउण्टर के आगे खड़ा होते हुए) बड़े तमाशेबाज हो बांके।
बांके- (हंसकर) तमाशेबाज राजा की प्रजा भी तमाशबीन और तमाशेबाज ही होती है।
(बांके काउंटर एक तरफ रेडियो रखता है और दूसरी तरफ 'उधार प्रेम की कैंची है' वाला गत्ते का बोर्ड। मोटे अक्षरों में विशेष सूचना भी लिखी है कि हमारे यहां फोन भी रिचार्ज किए जाते हैं। बांके गुनगुनाता हुआ पान लगा रहा है। पान, इलायची, लोंग, मोबाइल रिचार्ज आदि के इक्का-दुक्का ग्राहक खरीदारी, पूछताछ के लिए आ-जा रहे हैं।)
बांके (गुनगुनाता है)-
राजा गजब तमाशेबाज।
जब देखो तब नया तमाशा, तनिक न आवै लाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।
जो भी जाता लेकर आशा,
टरका देता दिखा तमाशा,
ठगने की अपनी शैली है, अपना ही अंदाज।
राजा गजब तमाशेबाज।।
(काका पान की दुकान खोलने को लेकर आश्चर्य और इशारे से प्रश्न करता है।)
बांके- इनोवेशन। स्टार्टअप। न्यू स्टार्टअप।
काका- (बांके का दिया लोंग खाते हुए) पान की बजाय चाय बेचते, तो ज्यादा नहीं कमाते?
बांके- हम चाय बेचेंगे, तो फिर राजा क्या बेचेगा?
काका- प्रजा भी पता नहीं किस तमाशेबाज को गद्दी पर बिठा देती है?
बांके- काका गद्दी पर प्रजा नहीं बिठाती, (कोने में कुर्सी पर बैठ, मेज पर रखे लैपटॉप पर काम करते व्यक्ति की तरफ इशारा करके) वो सौदागर देख रहे हो ना, (काका उधर देखता है) जिस खिलौने में चाभी भरता है, वही चलता है। अब साम्राज्यवादी समुद्री मार्ग या खैबर का दर्रा पार करके नहीं आते। वॉलस्ट्रीट, सिलिकॉन वैली और बीजिंग से आते हैं, ऑनलाइन। उनके लिए जीपीएस का काम वे लोग करते हैं, जो वर्षों पहले माता सीता का पता लगाने की कहकर लंका गए थे और पट्ठों ने सोने की चमक देखी, तो वहीं की नागरिकता ले ली।
काका- (रेडियो की तरफ इशारा करके) टीवी, मोबाइल फोन के जमाने में रेडियो?
बांके- तमाशेबाज राजा रेडियो पर कभी-कभी 'मूड की बात' करता है ना।
काका- मूढ़ की बात?
बांके- मूढ़ की बात नहीं, मूड की बात। हालांकि सही वही है, जो तुम कह रहे हो।
(काका पान खाकर लौटने को होता है कि दो युवा ईयरफोन लगाए, मोबाइलों में आंखें गड़ाए आमने-सामने टकरा गए।)
बांके- (उधर देखकर) डिजिटली रहना था, (शराबी का अभिनय कर) डिजिटल्ली रहने लगे हैं। (रुक कर) मोबाइल फोन का आविष्कार सूरदास के जमाने में हो गया होता, तो वह विकल्पहीनता समझाने के लिए जहाज के पंछी वाला उदाहरण नहीं देता।
(एक व्यक्ति पान लेकर पैसा देना भूल जाता है। उसे बांके 'उधार प्रेम की कैंची है' वाला बोर्ड दिखाता है। वह भूल सुधारकर पैसा देता है।)
(उसके जाते ही कोतवाल दुकान पर पहुंचता है।)
कोतवाल- चूना लगा रहे हो बांके?
बांके- आपकी तरह थोड़े ही लगा रहे हैं साहब।
(कोतवाल हंसकर पान मांगता है। पान मुंह में डालकर पैसों के लिए भी इशारा करता है।)
बांके- (हंसकर)आज तो पहला दिन है।
कोतवाल- (धीरे से पचास के नोट के लिए इशारा करते हुए) इसीलिए तो हम भी चाहते हैं कि पहले ही दिन बोहनी भी की जाए।
बांके- (मिन्नत करते हुए) कल कर दूंगा।
(कोतवाल काउण्टर पर रखा 'उधार प्रेम की कैंची है' लिखा बोर्ड घुमाकर बांके के सामने करता है। बांके बेमन से गल्ले से निकाल कर चुपके से पचास का नोट देता है।)
कोतवाल- (धीमी आवाज में मना करता है) जब से इकॉनमी कैशलेस हुई है, हमें भी फॉरमेट चेंज करने मो मजबूर होना पड़ा है। फोन नम्बर नोट करो और पचास रुपए का रिचार्ज कर दो। (चलते-चलते) नम्बर सेव करलो बांके, आगे भी काम आएंगे।
                    ********
   

दृश्य-छह
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(सुबह दस बजे के आसपास का समय। राजमहल में मंत्री अपने मोबाइल फोन में कुछ देख रहा है और राजा कपड़े अदल-बदल कर सेल्फी ले रहा है। बाहर मंच के एक कोने में मेज पर रखा लैपटॉप खोले कुर्सी पर सौदागर बैठा है। राजा के चार भक्त अलग-अलग दिशाओं से मंच पर आते हैं। चारों आक्रामक मुद्रा में। प्रत्येक के हाथ में मोबाइल फोन है और सबके कानों में ईयरप्लग लगा है। सबके पास गेरुआ गमछा है जिसे किसी ने सिर पर बांध रखा है, तो किसी ने गले में लपेट रखा है। बांके अपनी दुकान के अन्दर और काका बाहर की ओर खड़ा बांके का दिया लोंग खा रहा है।)
चारों भक्त समवेत- हम प्रातः स्मरणीय, मनुष्य रूप में ईश्वर के अवतार, धर्म रक्षक, राष्ट्र उद्धारक, राजा के सायबर योद्धा हैं। हमारे संगठन का नाम आईटी सेल है। हमारे मोबाइल फोन ही हमारे अस्त्र-शस्त्र हैं। हमारा हर एक का मोबाइल फोन डबल सिम से लैस है। एक सिम से हम धर्म की रक्षा करते हैं और दूसरी से राष्ट्र की। हम पलभर में झूठ को सत्य में बदल सकते हैं और सत्य को झूठ में। ज्ञान को अज्ञान सिद्ध कर सकते हैं और अज्ञान को ज्ञान। राष्ट्र का प्रमाणिक इतिहास वह नहीं है जो इतिहासकारों ने लिखा है, सच्चा इतिहास वह है जो हमने सुना है। आईटी सेल में भर्ती के लिए राजा के मोबाइल फोन नम्बरों पर मिसकॉल मारें और सायबर योद्धा बनकर धर्म और राष्ट्र की रक्षा में सहभागी बनें।
भक्त 1- मेरे राजा ही की कृपा से सूर्योदय होता है।
भक्त 2- मेरे राजा ही के कोप से सूर्यास्त होता है।
भक्त 3- मेरे राजा ही के घुमाने से धरती घूमती है।
भक्त 4- मेरे राजा ही के संकेत पर दिन-रात होते हैं।
भक्त 1- मेरे राजा ही की आज्ञा से ऋतुएं बदलती हैं।
भक्त 2- मेरा राजा सिंह की पूंछ मरोड़ सकता है।
भक्त 3- मेरा राजा दांतों से सरिया मोड़ सकता है।
भक्त 4- मेरा राजा है, तो ही सबके अच्छे दिन हैं।
भक्त 1- हमारे हाथ राजा की आरती उतारने के लिए हैं।
भक्त 2- हमारे पैर राजा की परिक्रमा करने के लिए हैं।
भक्त 3- हमें जिव्हा केवल राजा की जय-जयकार करने के लिए मिली है।
भक्त 4- हमारी आंखें राजा के दर्शन मात्र करने के लिए हैं।
चारों (समवेत)- जो हास-परिहास करेगा, वह दण्ड का भागी होगा। वह तर्जनी तोड़ दी जाएगी, जो राजा की ओर उठेगी।
(गुस्से से भरे हुए चारों सिर भिड़ा कर बैठ जाते हैं और अपने-अपने मोबाइल फोन में डूब जाते हैं।)
काका (चारों का व्यवहार देख कर)- बड़े अंधभक्त हैं।
बांके- काका, भक्त के साथ अलग से अंध लगाने की जरूरत नहीं होती।
काका- बाप रे क्या गुस्सा है?
बांके- इनके सामने कभी भूले से भी हंस मत देना। हंसी देखते ही ये यूं तड़तड़ाते हैं जैसे गर्म तेल में पानी के छींटे मार दिए हों। कोई खुद पर हंसे तो भी इन्हें लगता है कि वह राजा पर हंस रहा है।
(अचानक एक भक्त तड़फड़ाता है और बेहोश होकर पसर जाता है। एक भक्त उसकी नब्ज टटोलता है। दूसरा भक्त उसके सीने से कान लगा कर धड़कन जांचता है। तीसरा भक्त उसे जूता सुंघाता है। घबराहट का माहौल है।)
काका (घबराहट के साथ)- बांके जल्द एम्बुलेंस को फोन करो।
बांके (हंसते हुए)- कुछ नहीं हुआ है काका इसको। इसके इंटरनेट की डाटा लिमिट खत्म हो गई है। अभी फोन रिचार्ज करते ही इसके प्राण भी रिचार्ज हो जाएंगे।
(एक भक्त उसका मोबाइल फोन देखता है। अपने मोबाइल फोन से उसका इंटरनेट डाटा रिचार्ज करता है। अस्वस्थ हुआ भक्त जैसे जी उठता है।)
बांके (काका से)- देख लिया? जी गया ना? (मोबाइल फोन दिखाते हुए) भक्तों की जान इसी तोते में बसती है।
काका- ये कोई काम क्यों नहीं करते?
बांके- कर तो रहे हैं काम। राजा इन भक्तों को होमवर्क देता रहता है, ये भक्त राजा के विरोधियों को होमवर्क देते रहते हैं। भक्त और विरोधी जितने बिजी, उतना ही राजा इजी। (काका उठकर जाने को होता है, हंसकर उसे आगाह करते हुए) इनसे बचकर ही रहना (दूर जाते काका को) और सुन, काकी को बोलना कि थोड़ा दान-पुण्य करती रहा करे, क्योंकि कभी इन भक्तों से पाला पड़ गया ना, तो दिया-लिया ही आड़े आएगा।
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दृश्य-सात
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(शाम का समय। एक सूटेड-बूटेड युवक मंच के कोने में कुर्सी पर बैठ, मेज पर रखे अपने लैपटॉप पर काम कर रहे सौदागर से मिलता है और फिर राजा से भेंट करने पहुंचता है। कोतवाल बांके के पास पान की दुकान पर खड़ा गपशप कर रहा है। महल के द्वार पर खड़े सूटेड-बूटेड युवक को देखकर कोतवाल दौड़ता है।)
कोतवाल- (युवक से) कहिए?
कंसल्ट गुरु (महल के मुख्य द्वार पर तैनात कोतवाल को अपने गले में लटका आई कार्ड दिखाते हुए)- महाराज से मिलना है। मंत्री जी से कहो कि कंसल्ट गुरु आए हैं।
कोतवाल (उसे ऊपर से नीचे तक देखता है और मंत्री को फोन मिलाता है)- मंत्री जी, कोई इंसल्ट गुरु आया है।
(फोन पर मंत्री के हंसने की आवाज)
कंसल्ट गुरु- इंसल्ट गुरु नहीं, कंसल्ट गुरु।
कोतवाल- (मंत्री से) मंत्री जी, इंसल्ट गुरु बता रहे हैं कि उनका नाम इंसल्ट गुरु नहीं, कंसल्ट गुरु है।
(उधर से आदेश मिलते ही, कंसल्ट गुरु को सलाम करके ) जाइए सर।
(कंसल्ट गुरु के अंदर पहुंचते ही राजा गर्मजोशी से गले मिलता है। मंत्री दोनों की फोटो खींचता है। तीनों बैठते हैं।)
राजा (कंसल्ट गुरु से अधीरतापूर्वक)- मैं जीते-जी अमर होना चाहता हूं। मैं जल्द से जल्द जीते-जी अमर होना चाहता हूं। (तीन कपों में केतली से चाय भरते हुए) मेरा संघर्ष और त्याग का इतिहास है। मैंने बचपन में चाय बेची है और भरी जवानी में गृहस्थी त्यागी है।
कंसल्ट गुरु- महाराज, अमर होने का भी मजा तभी है जब जीते जी हुआ जाए और जल्द से जल्द ही हुआ जाए।
    देखिए महाराज, ग्लोबल मार्किट धर्म का हो, राजनीति का हो या प्रोडक्ट का, सीधा सा सिद्धांत है कि जो दिखता है वह बिकता है और जो बिकता है वही टिकता है।
राजा- मैं आत्मा-परमात्मा, धर्म-राष्ट्र सब बेच सकता हूं कंसल्ट गुरु। बस, मुझे जीते जी अमर होना है और जल्द से जल्द अमर होना है।
कंसल्ट गुरु- इसके लिए कुछ विशेष नहीं करना महाराज। बस, प्रजा को वक्त-जरूरत कोई न कोई तमाशा दिखाते रहना है।
मंत्री- तमाशा? तमाशा तो महाराज एक से बढ़कर एक दिखाते हैं, दिखा सकते हैं। तमाशेबाजी में तो संसार भर में कोई सानी नहीं है इनका। (रुक कर) पर, जब भी तमाशा करते हैं, हल्की सी झिझक और संकोच महसूस होता है महाराज को।
कंसल्ट गुरु (समझाते हुए)- महाराज..... नाचना ही शुरू कर दिया, तो फिर घूंघट किस बात का? झिझक और संकोच से मुक्ति के लिए तीन बातें दिमाग में स्थाई फीड करलें। पहली बात, आपका जन्म नहीं हुआ, आपने अवतार लिया है। दूसरी, आप जो करेंगे, वह तमाशेबाजी नहीं, आपकी लीलाएं होंगीं और तीसरी पते की बात, आप उनके राजा हैं जो शिक्षा-स्वास्थ्य, महंगाई-बेरोजगारी के मारे नहीं, बोरियत के मारे हैं।
राजा (मंत्री से हैंडशेक करता है और उछलकर कंसल्ट गुरु के गले से लिपटता है। एक सरिया उठाकर)- कहें, तो दांतो से अभी मोड़ दूं इसे?
कंसल्ट गुरु- दांतों से सरिया मोड़ने वाला आइटम युद्ध में दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए रिजर्व रखना चाहिए महाराज। आज आप कुर्ता उतारकर पायजामे के नाड़े से रथ खींचने वाला खेल दिखा सकते हैं।
मंत्री (आशंका प्रकट करता है)- कंसल्ट गुरु, पायजामे का नाड़ा दगा दे गया, तो महाराज निर्वस्त्र नहीं हो जाएंगे?
कंसल्ट गुरु (रहस्य बताते हुए)- इससे तो प्रदर्शन और खिल जाएगा मंत्री जी। (रुक कर) फिर राजा की निर्वस्त्रता जस्टीफाई करने का काम सौदागर का नमक खाने वाला मीडिया करेगा, भले ही उसे खुद निर्वस्त्र होना पड़े।
(राजा सेल्फी लेता है।)
राजा- ऐसी महान टिप्स के बदले सौदागर की क्या सेवा करनी पड़ेगी?
कंसल्ट गुरु- सेवा-वेवा कुछ नहीं महाराज? सौदागर को कोई कल-कारखाना, पोर्ट-एयरपोर्ट, खदान-वदान, जमीन-वमीन जैसी तुच्छ भेंट-वेंट वार-त्यौहार देते रहना है बस।
राजा (घबराते हुए)- लेकिन निठल्ले हुए लोगों ने शोर-शराबा किया तो?
कंसल्ट गुरु- प्रजा के शोर-शराबे में भी आप चैन की बंशी बजाते रहेंगे। सौदागर के पास इस रोग के निदान के लिए भी रामबाण औषधि है। वैसे तो आपने निठल्लों को बराबर बिजी कर ही रखा है, लेकिन सौदागर की सौदागरी और तमाशेबाज की तमाशागिरी का संगम हो जाएगा, तो मिनिमम इनपुट से मैक्सिमम आउटपुट मिलेगा।
मंत्री- इस संगम का गणित तो समझाओ जरा।
कंसल्ट गुरु (समझाते हुए)- समझिए, हर व्यक्ति का किसी न किसी बैंक में जीरो बैलेंस वाला खाता खुलवा देंगे। सौदागर राजकोष में समय-समय पर पर्याप्त राशि दान देता रहेगा। आप हर नागरिक के बैंक खाता में एक निश्चित राशि सम्मान निधि कह कर नियमित जमा कराते रहेंगे। सौदागर की बहुत बड़ी इंटरनेट कम्पनी है ही। अपनी सम्मान निधि बोरियत का मारा हर नागरिक अपनी बोरियत मिटाने और आपकी जय-जयकार करने के लिए इंटरनेट डाटा पर लुटाता रहेगा। सौदागर की रकम सौदागर के पास लौट जाएगी और आपकी ब्रांडिंग मुफ्त। यह समय इज्जत का नहीं ब्रान्ड इमेज का है।
राजा- ब्रान्ड इमेज?
कंसल्ट गुरु- ब्रान्ड इमेज मानी प्रॉडक्ट की छवि। जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि और  जहां न पहुंचे कवि, वहां पहुंचे छवि।
   (अत्यधिक आल्हादित राजा कंसल्ट गुरु और मंत्री के साथ ग्रुप सेल्फी लेता है। राजा और मंत्री कंसल्ट गुरु को विदा करने दरवाजे तक जाते हैं।)
राजा (कंसल्ट गुरु से धीमी आवाज में)- कोई देख-सुन रहा हो, तो सौदागर को मेरा नमस्कार कहना और देख-सुन नहीं रहा हो, तो सादर चरणस्पर्श।
    (कंसल्ट गुरु थम्सअप करके मुस्कुराते हुए चला जाता है।)
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दृश्य-आठ
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(दोपहर बाद का समय। बांके पान की दुकान में है। बाजार में दो-एक लोग आ-जा रहे हैं। चारों भक्त एक-दूसरे को पीठ दिए कभी सिर जोड़े, अपने-अपने मोबाइल फोनों में खोये हैं। काका घर से बांके पान पैलेस की तरफ जा रहा है।)
काका (एक दिन अचानक अस्वस्थ हो चुके भक्त से)- उस दिन तुम्हारी तबीयत बिगड़ गई थी, अब तो सब खैरियत है?
भक्त (तुरन्त उठ कर काका का कॉलर पकड़ता है)- स्वास्थ्य को तबीयत और कुशलक्षेम को खैरियत बोलता है बुड्ढे?
काका (घबराकर)- भाई, माफी चाहता हूं।
भक्त 2 (काका की गांधी टोपी उछालते हुए) क्षमा को माफी कहता है? मांग क्षमा। क्षमा मांग।
काका (हाथ जोड़कर)- क्षमा, क्षमा। क्षमा करो भाई क्षमा। ऐसी गलती भविष्य में कदापि नहीं होगी।
भक्त 3- भविष्य और कदापि तो ठीक, किन्तु त्रुटि को गलती बोल गया? कान पकड़ कर बोल पांच बार त्रुटि, त्रुटि।
(पास खड़ा कोतवाल सब कुछ देख कर भी मौन खड़ा रहता है। काका कान पकड़ कर पांच बार 'त्रुटि' बोलने को होता है कि काका के साथ भक्तों का दुर्व्यवहार देख कर बांके छुड़ाने दौड़ता है। बांके काका को छुड़ा कर, चारों भक्तों को एक ओर ले जाकर धीरे से कुछ समझाता है। चारों भक्त पलटकर कान पकड़ते हुए काका के चरणों में गिर जाते हैं। काका अपनी टोपी झाड़ कर सिर पर धरता है। बांके काका को लेकर अपनी दुकान पर आता है। आज बांके की दुकान पर बेंच की जगह स्टूल है जिसके पाये डगमग करते हैं।)
काका (चेहरे पर अपमान के भाव)- आज बेंच की जगह स्टूल?
बांके- क्यों, राजा हर समय कपड़े बदल सकता है, स्वांग बदल सकता है, तो हम कभीकभार बैठकी भी नहीं बदल सकते?
(काका स्टूल पर बैठने लगता है।)
बांके (काका को पानी का ग्लास देते हुए)- काका सम्भल कर बैठना जरा। स्टूल राजा के सिंहासन की तरह नहीं, शासन की तरह है और सिंहासन इस स्टूल की तरह नहीं हो जाए, इसीलिए बेचारे को तमाशेबाजी करनी पड़ती है, (भक्तों की ओर इशारा करते हुए) सायबर योद्धा पालने पड़ते हैं। (काका पानी पीता है और बांके बात जारी रखता है) काका, आज मैं समय पर नहीं पहुंचता, तो ये सायबर योद्धा तुम्हारी सारी इज्जत की प्रतिष्ठा कर डालते।
काका- दुःख की बात है कि सब कुछ देखकर भी पास खड़ा कोतवाल अनजान बना रहा?
बांके- भला कोतवाल उन्हें काटने-भौंकने से क्यों रोकेगा जिनकी सांकल राजा ने खोल रखी हो?
काका- लेकिन बांके तुमने ऐसा क्या जादू किया कि मेरी टोपी उछालने वाले मेरे चरणों में लौटने लगे?
बांके- मैंने बस इतना कहा कि राजा बचपन में जिस चाय की दुकान पर काम करता था, वह इस काका ही की थी। (हंसकर) झूठ पर अकेले राजा ही का कॉपीराइट थोड़े है।
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दृश्य-नौ
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(दोपहर का समय। राजा संन्यासी वेश में ध्यान लगाने गुफा की ओर जाता है। एक कोने में बैठा ब्रीफकेस बाबा मोबाइल फोन देख रहा है। बांके और काका पान की दुकान पर हैं। काका बांके से लिया लोंग चबा रहा है।)
कोतवाल- (रास्ते से लोगों को हटाते हुए) चलो हटो। हटो चलो। ऐ, तुझे ध्यान नहीं क्या? राजा का आज गुफा में ध्यान लगाने का प्रोग्राम है। (राजा को घड़ी दिखाते हुए) समय का ध्यान रखें महाराज, ध्यान का समय हुआ जा रहा है।
मंत्री- (कोतवाल से) राजा को सब ध्यान है। तू अपनी ड्यूटी पर ध्यान दे।
(राजा का गुफा में प्रवेश। गुफा में राजा चार पत्रकारों के कैमरों से घिरा ध्यान की मुद्रा बनाता है। मंत्री और कोतवाल गुफा के द्वार पर खड़े हो जाते हैं। एक कैमरा महिला हैंडल कर रही है। राजा का ध्यान बार-बार उधर जाता है।)
पत्रकार 1 (राजा का ध्यान बार-बार महिला कैमरामैन की ओर जाता देख)- महाराज थोड़ा सा ध्यान इधर भी।
(राजा और महिला कैमरामैन दोनों झेंपते हैं। महिला कैमरामैन राजा से अंगुलियों से तीन गिनने का इशारा कर ध्यान शुरू करने को कहती है।)
(राजा ध्यान प्रारम्भ करता है।)
काका (बांके के पास रखे रेडियो की तरफ इशारा कर)- बांके फटाफट रेडियो चालू कर। गुफा से राजा के ध्यान का सीधा प्रसारण देखते हैं।
बांके- देखने की बात रेडियो पर नहीं आती काका। (अपना मोबाइल फोन खोलते हुए) इस पर देख।
(काका तिरछा खड़ा होकर बांके के मोबाइल फोन में राजा के गुफा से ध्यान का सीधा प्रसारण देखने लगता है।)
ब्रीफकेस बाबा (अपने मोबाइल फोन पर राजा का ध्यान देखते हुए ध्यान की कमेंट्री करता है)- राजा के ध्यान का लाइव टेलीकास्ट देख रहे देवियों और सज्जनों, बात राजा के गुफा में ध्यान लगाने की है, सो ध्यान से सुनो।
    ध्यान के चार रूप होते हैं। ध्यान लगाना, ध्यान रखना, ध्यान खींचना और ध्यान भटकाना। हमारा राजा संसार का पहला ध्यानी है जो ध्यान के ये चारों रूप एक साथ साध रहा है।
     राजा गुफा में समारोहपूर्वक ध्यान लगा रहा है, कैमरों का बराबर ध्यान रख रहा है, खूबसूरती से दर्शकों का ध्यान खींच रहा है और सफलतापूर्वक प्रजा का मूल मुद्दों से ध्यान भटका रहा है।
    ध्यान देने की बात यह भी है कि आखिर ध्यान वाला आइडिया राजा को दिया किसने?
    तो देवियों और सज्जनों, एक दिन राजा ने अपने विशेषज्ञ सलाहकारों से, जिनकी अध्यक्षता मैं कर रहा था, सलाह मांगी कि प्रजा की बोरियत दूर करने और उसका मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किन विषयों पर ध्यान दिया जाए?
     जैसे ही ध्यान भटकाने वाली बात उठी, सबके एक ही बात ध्यान में आई कि क्यों न ध्यान ही लगाया जाए?
     ध्यान लगाने वाला सब्जेक्ट फाइनल होने के बाद हम सबको इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ा कि राजा आखिर ध्यान लगाए कहां? तब मैंने ध्यान दिलाया कि राजा को अविलम्ब किसी गुफा में ध्यान लगाना चाहिए और ध्यान का लाइव टेलीकास्ट भी कराना चाहिए, ताकि हर एक का ध्यान सिर्फ राजा के ध्यान ही की तरफ रहे। जिन्होंने जिन्दगी में न कभी कोई गुफा देखी और न कभी मामूली से मामूली बात का ध्यान ही रखा, वे भी गुफा में ध्यान का महत्व जानते-समझते हैं। हमारे यहां यदि कोई ध्यान लगाने गुफा में एक बार घुस गया, तो समझो एक ही गुफा में बैठे-बैठे करोड़ों साल ध्यान लगा सकता है। मैं खुद ऐसे ध्यान लगा चुका हूं और ध्यान देने की बात यह है कि मुझे खुद ध्यान नहीं है कि मैं कितनी गुफाओं में, कितने ध्यान कितनी बार लगा चुका हूं। वैसे भी एक बार ध्यान लगाने के बाद, लग चुके ध्यान का क्यों ध्यान रखना? लगाए जा चुके ध्यान का बार-बार ध्यान करने से बाकी कामों से और ध्यान भटकता है। गुफा में ध्यान लगाने का यही तो फायदा है कि बाद में न ध्यान ध्यान में आता है और न गुफा।
    तो कुल मिलाकर ध्यान देने की बात यह है कि बस, यों चुटकियों में बन गया राजा के बनावटी ध्यान का दिखावटी प्रोग्राम।
   गुफा में घुस कर ध्यान लगाना कोई मामूली काम नहीं है। कॉस्ट्यूम से लेकर कैमरों और कैमरे वालों तक का बारीकी से ध्यान रखना पड़ता है, बल्कि कैमरों पर तो लगातार एकटक ध्यान रखना पड़ता है।
     ध्यान की वह अवस्था सबसे कठिन होती है, जब खुद ध्यान लगाते हुए कैमरे वालों पर भी कड़ाई से ध्यान रखना पड़े। जरा सा ध्यानभंग ध्यान की पूरी ईवेंट को ध्यान की पटरी से उतार देता है कि खुद तो ध्यान लगा कर बैठे हैं और कैमरे वालों का ध्यान कहीं ओर है।
(राजा ध्यान का समापन करता है।)
बांके- काका इसे कहते हैं असली ध्यान। राजा और कैमरे वाले कितने ध्यान से एक दूसरे का ध्यान रख रहे थे?
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दृश्य-दस
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(संध्या धुंधलका। सौदागर ब्रीफकेस बाबा के आश्रम जाता है। प्रणाम-आशीर्वाद के बाद सौदागर ब्रीफकेस बाबा को एक ब्रीफकेस भेंट करता है। बदले में ब्रीफकेस बाबा सौदागर को आश्रम का पटका भेंट करता है।)
सौदागर (एक आंख दबाकर)- राजा से ध्यान खूब लगवाया बाबा।
ब्रीफकेस बाबा (ब्रीफकेस उठाकर हंसते हुए)- आप भी तो पूरा ध्यान रखते हो भगवन।
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दृश्य-ग्यारह
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(सूर्योदय का समय। ब्रीफकेस बाबा का आश्रम। आश्रम के रिशेप्सन पर सुन्दर युवती बैठी है। चार चेले बाबा की प्रतीक्षा में आसन के सम्मुख चटाई पर बैठे हैं।
      कंसल्ट गुरु आता है। रिशेप्सन वाली युवती बाबा को फोन कर बताती है। बाबा का आदेश पाकर कंसल्ट गुरु को साथ लेकर भीतर जाती है। कंसल्ट गुरु बाबा को प्रणाम करता है। ब्रीफकेस बाबा उसके कान में कुछ कहता है। युवती कंसल्ट गुरु को बाहर तक छोड़ने आती है और पुनः रिशेप्सन पर बैठ जाती है। कंसल्ट गुरु तुरन्त राजमहल जाता है। द्वार पर खड़ा कोतवाल सलाम बजाता है और बिना पूछताछ अन्दर जाने देता है। राजा अकेला है और कपड़े अदल-बदल कर सेल्फियां ले रहा है, देख रहा है और सोशलमीडिया पर अपलोड कर रहा है। कंसल्ट गुरु जाकर राजा के कान में कुछ कहता है और बाहर निकल आता है। कोतवाल उसे फिर सलाम करता है।
     ब्रीफकेस बाबा ब्रीफकेस लिए आता है। ब्रीफकेस पास रखकर आसन ग्रहण करता है और चेलों को ज्ञान देना शुरू करता है। युवती के कंसल्ट गुरु के साथ भीतर-बाहर जाने-आने को लेकर चेलों में कौतुहल सा है।)

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ब्रीफकेस बाबा (नेत्र बन्द करके)- बताओ, चेलों दिन है कि रात?
चारों चेले (समवेत)- बाबा घोर अंधेरी रात है।
ब्रीफकेस बाबा (आंखें खोलकर चौंकते हुए)- सूर्य क्षितिज से चार हाथ ऊपर उठ चुका। दसों दिशाओं में उजाला है। ऐसे में घोर अंधेरी रात?
चारों चेले (समवेत)- बाबा जब आपने प्रश्न किया था, तब आपके दोनों नेत्र मुंदे थे।

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ब्रीफकेस बाबा (हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हुए)- दीर्घायु हों, यशस्वी हों। ऐसी ही गुरु भक्ति बनी रही, तो तुम्हारे भी न सिर्फ अपने-अपने विशाल आश्रम होंगे, बल्कि हर आश्रम की कई-कई ब्रांचें होंगी। (रिशेप्सन पर बैठी युवती की ओर देखकर) ज्ञान पिपासुओं का तांता लगा रहेगा।
(चारों चेले बाबा के चरणों में नतमस्तक होते हैं।)
ब्रीफकेस बाबा- घर त्यागने और बाना धारण कर लेने से ही कोई संन्यासी नहीं बन जाता। भाव-भाषा सब गूढ़ बनाए रखने पड़ते हैं। संन्यास के इलाके में कम समय में लम्बी छलांग के लिए अढ़ाई को साढ़े दो बोलना जरूरी होता है। समझे?
(चारों चेले चौंकते हैं।)
ब्रीफकेस बाबा- बताओ एक और आधे का योग कितना होता है?
चेला 1 (झट उठकर फटाक से)- बाबा डेढ़।
ब्रीफकेस बाबा (मुंह बिगाड़ कर चिढ़ाते हुए)- डेढ़।
(वह आंखों से दूसरे चेले को बताने का संकेत करता है)
चेला 2 (आराम से उठता है। काफी देर तक अंगुलियों पर गणना करके)- बाबा, साढ़े एक।
ब्रीफकेस बाबा (खुश होकर पहले चेले को उलाहना देते हुए)- देखे, पहुंचा हुआ संन्यासी बनने के लक्षण। एक और आधे को बिना गिने डेढ़ कहने वाला गणित का अध्यापक तो बन सकता है, पहुंचा हुआ संन्यासी नहीं।
चेला 1- बाबा संन्यासी और पहुंचे हुए संन्यासी में क्या भेद होता है?
ब्रीफकेस बाबा- भेद बहुत गहरा है। (ब्रीफकेस उठाकर) पहुंचा हुआ संन्यासी कमण्डल नहीं, ब्रीफकेस रखता है। (पास रखा रेडियो ऑन करते हुए)  दस बजकर साठ मिनट होने को हैं, तुम सब भी सुनो, अभी राजा प्रजा से मूड की बात कहेगा।
चेला 3 (उलझनपूर्वक)- बाबा ग्यारह बजे को दस बजकर साठ मिनट कहना अटपटा नहीं लगता?
ब्रीफकेस बाबा (झल्लाते हुए)- मूर्ख, कितनी बार समझाऊं? श्रम से मुक्ति ही मोक्ष है। अतः मन, वचन, कर्म का अटपटापन ही श्रम से मुक्त कर, आश्रम का मार्ग प्रशस्त करता है।
(चारों चेले रेडियो की तरफ कान लगाते है।)
(बांके पान पैलेस पर पान, लोंग, इलायची, मोबाइल फोन रिचार्ज आदि के इक्का-दुक्का ग्राहक आ-जा रहे हैं। बांके और काका रेडियो पर राजा की मूड की बात सुनने को तैयार हैं। सौदागर अपने लैपटॉप पर काम में व्यस्त है।)
बांके (काका को जेब से नजर का चश्मा निकालते देख)- काका, चश्मा कानों पर टंगता जरूर है, लेकिन सुनने के लिए चश्मे की जरूरत नहीं होती।
(काका झेंपता है। राजमहल में राजा रेडियो पर मूड की बात कहने की तैयारी के लिए तरह-तरह के कपड़े छांटता-बदलता है। मंत्री तेज-तेज कदमों से राजा के पास आता है।)
मंत्री (घड़ी दिखाकर देरी का इशारा करते हुए)- महाराज, प्रजा को मूड की बात कहने का समय होने जा रहा है।
(राजा कपड़े अदल-बदल में ही लगा है। मंत्री फिर घड़ी दिखाता हुए) महाराज, रेडियो पर तो बिना कपड़ों के भी परफॉर्म किया जा सकता है।
(दोनों जबरदस्ती हंसना रोकते हैं।)
पर्दे के पीछे से राजा मूड की बात शुरू करता है-
भाइयों और बहिनों,
    आज मैं मेहनत के अवगुणों और कसरत के गुणों पर आपसे अपने मूड की बात शेयर कर रहा हूं।
    धर्म और राष्ट्र के उत्थान के लिए मेहनत नहीं, कसरत आवश्यक है।
    प्राचीन काल में हमारे पूर्वज केवल कसरत किया करते थे, इसीलिए राष्ट्र विश्वगुरु था, सोने की चिड़िया था। ज्योंही वे कसरत त्याग कर मेहनत करने लगे, दरिद्रता में डूबते चले गए। काश! वे मेहनत के चक्करों में न पड़कर कसरत ही करने में लगे रहते, तो आज राष्ट्र की यह दुर्दशा न होती।
    मैं तो कसरत का महत्व बचपन में ही समझ गया था। जैसे ही घर वाले मेहनत करने को कहते थे, मैं तुरन्त कसरत करने लग जाता था। बाद में तो खैर घर वाले ही मुझे मेहनत करने को नहीं कहते थे। यह सोचकर कि मेहनत करने की कहेंगे, तो अभी कसरत करने लग जाएगा।
    कभी मेहनत और कसरत करने वालों पर नजर डालोगे, तो खुद समझ जाओगे कि मेहनत करने के क्या दुष्परिणाम हैं और कसरत करने के क्या मजे हैं।
     दिनभर मेहनत करने से बेहतर है, दिनभर में कभी भी बस, घण्टे-आध घण्टे कसरत करली जाए। चौरासी लाख योनियों में भटकने बाद मनुष्य देह मिलती है। अतः मेहनत करने में मनुष्य जीवन न गंवाएं। कसरत ही किया करें, मेहनत तो औरों से भी करवाई जा सकती है।
     कसरत करने वालों को देखा है कभी मेहनत करते?
   कसरत के लाभ इससे समझे जा सकते हैं कि राज्य में दो प्रतिशत कसरत करने वालों के पास अठानवे प्रतिशत पूंजी है और अठानवे प्रतिशत मेहनत करने वालों के पास सिर्फ दो प्रतिशत।
    भाइयों और बहिनों, मेहनत छोड़कर, कसरत शुरू करो। बड़े-बड़े संन्यासियों को देखो। कसरत के दम पर करोड़ों में खेल रहे हैं। सेवन स्टार आश्रमों के मालिक हैं। सोचो, यदि ये कसरत नहीं करते, तो ये भी यहां-वहां मेहनत करते फिरते। मेहनत करते फिरते कि नहीं करते फिरते?
    कसरती बदन का रौब पड़ता है, मेहनती बदन सदैव दया का पात्र बना रहता है।
    कसरत करने वाला साठ साल का होकर भी तीस का लगता है, जबकि मेहनत करने वाला तीस साल का होकर भी साठ का।
    मेहनत रोटी कमाने के लिए की जाती है और कसरत रोटी पचाने के लिए। अब तुम कहोगे कि कमाएंगे ही नहीं तो पचाएंगे क्या? तो भाइयों और बहिनों, ऐसे कुतर्कों के कारण ही तो कसरती लोग मेहनती लोगों की तुलना गधे से करते हैं। तुम भी स्वीकारते रहते ही हो कि दिन-रात गधे की तरह मेहनत करते हैं तब जाकर दो जून की रोटी कमा पाते हैं।
    मेहनती लेखक की कितनी किताबें बिकती हैं, जबकि कसरती लेखक की हर किताब बेस्टसेलर होती है।
अतः भाइयों और बहिनों, आज से ही कसरत को हाय कहो और मेहनत को हाय-हाय।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
ब्रीफकेस बाबा- भई वाह! मूड फ्रेश कर दिया राजा की मूड की बात ने तो।
(खुश होकर चारों चेले भी कसरत करने लगते हैं। रिशेप्सन बैठी युवती बाबा का ब्रीफकेस उठाकर अन्दर ले जाती है। बाबा भी उसके आगे-आगे भीतर चला जाता है। बांके ताली पीटता है और काका माथा।)
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दृश्य-बारह
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(समय रात नौ बजे का। टीवी न्यूज चैनल पर प्राइम टाइम। राजमहल में राजा रिमोट थामे टीवी पर बहस देख रहा है। मंत्री भी पास बैठा न्यूज चैनल देख रहा है। द्वार पर कोतवाल तैनात है।)
मंत्री- (राजा रिमोट से सेल्फी लेता है, तो मंत्री पास रखा राजा का मोबाइल फोन पकड़ाते हुए)- महाराज सेल्फी उससे नहीं, इससे। (राजा से रिमोट मांगते हुए) महाराज, हर न्यूज चैनल पर आप ही आप छाये हैं, लाइए रिमोट रख दीजिए।
राजा (मंत्री का हाथ झटकते हुए)- मंत्री जी, रिमोट टीवी का हो या शासन का, मेरे ही मुट्ठी में रहना चाहिए।
(न्यूज चैनल पर कार्यक्रम शुरू होता है। राजा अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होता है और आलोचना पर गुस्सा।)
एंकर- जो देख रहे हैं उन्हें प्रणाम और जो नहीं देख रहे हैं उन्हें अंतिम प्रणाम। जैसा कि आप सब जानते हैं, पल-पल सेल्फी ट्वीट करने वाले राजा की दो दिन से कोई तस्वीर सामने नहीं आई है। कुछ लोग इसे चिंता की बात मान रहे हैं और कुछ लोग खुशी की। हाल में प्रजा ने राजा के कमलमुख से मूड की बात सुनी है। कैमराजीवी राजा ने मूड की बात कहने के लिए रेडियो ही क्यों चुना? इससे भी अफवाहों को बल मिला है। हमारे न्यूज चैनल के खोजी सूत्रों के हवाले से खबर है कि राजा ने मूछें बढ़ानी शुरू कर रखी हैं और वांछित आकार ले लेने तक राजा प्रजा को मुंह नहीं दिखाना चाहता है।
     राजा को मूछें बढ़ाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? मूछें दस बजकर दस मिनट की शैली में रखी जाएंगी या आठ बजकर बीस मिनट की शैली में? राजा की मूछों से किस को क्या नफा-नुकसान होगा? राजा के लिए मूछें रखना विलासिता है या जरूरत? आज इस बहस में हम इन्हीं गुत्थियों को सुलझाने की कोशिश करेंगे।
    मेरे साथ हैं राजा के कट्टर भक्त मोतीलाल जी, राजा के घोर विरोधी मांगीलाल जी और प्रसिद्ध सामाजिक, राजनीतिक विश्लेषक इंटलैक्चुअल जी।
एंकर- तो सबसे पहला सवाल मोतीलाल जी आपसे ही। किसी को नहीं मालूम कि राजा मूछें बढ़ा रहा है या नहीं बढ़ा रहा है, लेकिन यदि बढ़ा ही रहा है, तो इस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है?
मोतीलाल- देखिए, सबसे पहले तो इस नए धमाके के लिए राजा को बधाई और शुभकामनाएं। पिछले दिनों पड़ौसी दुश्मन राज्य के राजा की एक मूछ वाली फोटो सोशलमीडिया पर वायरल देख कर अपने यहां भी मांग जोर पकड़ रही थी कि अपने राजा को भी यथाशीघ्र अपनी मूछें बढ़ानी शुरू कर देनी चाहिए। कल को पड़ौसी राजा की सेना अचानक आक्रमण कर बैठे, तो आप भी अनुभवी हैं, मूछें अचानक नहीं बढ़ाई जा सकतीं।
एंकर (बात काटते हुए)- लेकिन हथियारों का विकल्प क्या मूछें...?
मोतीलाल (ऊंची आवाज में)- मुझे नहीं मालूम मूछें हथियारों का विकल्प होती हैं कि नहीं होती हैं, लेकिन युद्ध जब फेस टू फेस हो, तो मूछों का कोई विकल्प नहीं होता है। वैसे भी मूछें नाक को रेखांकित करती हैं। आपके तो खुद के नाक है, सो आप भी जानते हैं कि नाक प्रतिष्ठा का प्रतीक होती है और इतिहास में ऐसे असंख्य उदाहरण मिल जाएंगे जब राजा ने नाक की लड़ाई में गर्दन पूरी कटा ली, लेकिन मूछ आधी भी नहीं कटने दी।
एंकर (मूछों पर बल लगाने का अभिनय करते हुए)- मांगीलाल जी, क्लीनसेव रहने वाले राजा के मूछें रखने को आप कैसे देखते हैं? क्या यह पड़ौसी दुश्मन राजा को कड़ा संदेश है या सेविंग का सामान बनाने वाली कंपनियों को उनकी औकात दिखाना अथवा कोई तीसरा ही रहस्य यानी चाणक्य नीति वगैरह लगती है इसमें आपको?
मांगीलाल (मजाक उड़ाते हुए)- मैं इसमें कोई चाणक्य-वाणक्य नीति नहीं मानता, क्योंकि चाणक्य नीति में मूछें नहीं चोटी बढ़ाई जाती है और उसके भी गांठ लगाना जरूरी होता है। राजा की ताकत उसके मुकुट और सिंहासन से आंकी जाती है। किसी एक भी कलैंडर में सिंगल देवता के मुखमंडल पर देखी है मोतीलाल ने या आपने मूछें कभी? हां, असुर सारे मूछों वाले हुए हैं। माना पड़ौसी राजा के अचानक आक्रमण कर बैठने पर मूछें न तो अचानक उगाई जा सकतीं हैं और न अचानक बढ़ाई जा सकती हैं, अचानक मूछें उगा पाना या बढ़ा पाना पहले भी असम्भव था और भविष्य में भी सम्भव नहीं है, लेकिन चोरी-छिपे मूछें बढ़ाने का क्या तुक है? मूछें तो चेहरा दिखाने पर भी वैसे ही बढ़ती हैं जैसे चेहरा छिपाने पर। सोते में भी उतनी ही बढ़ती हैं, जितनी जागते में.....
मोतीलाल (टोकते हुए)- राजा के एकांतवास को संदेह की नजरों से न देखा जाए। मूछें कोई गमले में लगा पौधा नहीं होतीं कि धूप की मोहताज हों।
मांगीलाल (अधूरी बात पूरी करते हुए)- पहले ही राजा की सुरक्षा में करोड़ों का खर्च आ रहा है। मूछों की निगरानी और रख-रखाव का बोझ और पड़ेगा प्रजा पर। अब आप ही बताइए कि एक गरीब राज्य की प्रजा क्या अपने राजा की मूछें अफॉर्ड कर सकती है?
(मोतीलाल मूछों पर ताव लगाता है। मांगीलाल चिढ़ता है।)
मोतीलाल- तुम कौन होते हो राजा से हिसाब-किताब मांगने वाले?
मांगी लाल- प्रजा को जानने का हक है कि राजा ने अचानक मूछें बढ़ाने का निर्णय क्यों लिया? किसके बहकावे में आकर खर्चीला कदम उठाया गया? कोई बाहरी-भीतरी दबाव तो नहीं है मूछें बढ़वाने के पीछे?
मोतीलाल (गुस्से से बात काटते हुए)- किसकी हिम्मत है मेरे राजा पर दबाव डालकर मूछें बढ़वा सके?
एंकर (दोनों में बीच-बचाव करते हुए)- शांत रहिए-शांत रहिए। चलो, इंटेलैक्चुअल जी से पूछते हैं कि वे इस अत्यधिक ज्वलनशील मुद्दे पर क्या राय रखते हैं?
एंकर- आप बताइए इंटेलैक्चुअल जी कि राजा पर कोई दबाव वगैरह तो नहीं लग रहा मूछें बढ़ाने के पीछे आपको?
इंटेलैक्चुअल जी (गंभीरता पूर्वक)- देखिए, मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस बताता है कि दबाव में मूछें कटवाई तो जा सकती हैं, लेकिन बढ़वाई नहीं जा सकतीं। वैसे भी राजा सौदागर के अलावा कभी किसी के सामने नहीं झुकता है। हां, राजा पर सौदागर के द्वारा कोई नया तमाशा दिखाने का दबाव हो, तो अलग बात है। मेरी निजी राय है कि यदि राजा मूछें बढ़ा रहा है, तो उसे एक साथ बड़ा टॉस्क लेने के बजाय पहले एक तरफ की आधी मूछ बढ़ानी चाहिए, प्रजा से पॉजिटिव रेस्पॉन्स मिले, तो दूसरी तरफ की भी बढ़ाई जा सकती है।
एंकर (तीनों को रोकते हुए)- फिलहाल वक्त है एक ब्रेक का। चर्चा अभी जारी है। कहीं जाइए नहीं।
(ब्रीफकेस बाबा अपना ब्रीफकेस लिए टीवी स्क्रीन के आगे आता है और कई प्रकार के प्रोडक्ट दिखाता है।)
एंकर- पुनः चर्चा में आपका स्वागत है। (सोचकर) लेकिन मोतीलाल जी सेल्फी ट्वीट करने में क्या दिक्कत हो सकती है राजा को?
मोतीलाल- सेल्फी ट्वीट करना न करना राजा का निजी अधिकार है। राजा के दो दिन न दिखने से ही विरोधियों के पेट में मरोड़ उठने लगे गए। अरे, यह तो वह धरती है जहां एक साधु ही करोड़ों साल एक गुफा में ध्यान की मुद्रा बनाकर बैठा रह सकता है।
मांगीलाल (ताना मारते हुए)- मूछें तो छोड़िए, जो हर घड़ी कैमराजीवी हो, उसका अलग से सेल्फी प्रेम ही गरीब प्रजा के धन और समय की बर्बादी है।
इंटेलैक्चुअल जी- मुझे तो राजा के घनघोर सेल्फी प्रेम का एक ही उद्देश्य समझ में आता है कि चेहरा हमेशा सेल्फी लेने वाले ही का बड़ा आता है।
मांगीलाल (झल्लाकर)- और प्रजा का मारे महंगाई के यह हाल है कि लोग सेल्फी भी ग्रुप में लेने को मजबूर हैं।
एंकर (टेबल पर मुक्का मार कर)- होश में रहो मांगीलाल। जानता नहीं, किसी न्यूज चैनल पर आकर यों सरेआम महंगाई-बेरोजगारी, शिक्षा-स्वास्थ्य की बात करना राजद्रोह है। मैंने लगातार वॉच किया है, तुम राजा के दुश्मनों से मिले हो। तुम्हारी बातों में राजा के तख्तापलट के मंसूबे छिपे हैं। तुम हर समय राजा के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हो। राजा की मूछें कल को सवा नौ भी बजाएंगीं, तो तुम पौने तीन कहोगे।
इंटेलैक्चुअल जी (बीच-बचाव करते हुए)- राजा के सोशलमीडिया प्लेटफार्मों पर सेल्फी पोस्ट न करने या साक्षात दिखाई न देने को बेवजह तूल नहीं देना चाहिए। हो सकता है राजा किसी नए तमाशे की रिहर्सल में व्यस्त हो?
एंकर (गुस्से में)- ए इंटेलैक्चुअल, राजा की प्रतिभा को कमतर न आंका कर। राजा कभी किसी रिहर्सल-विहर्सल में अपना कीमती समय नष्ट नहीं करता। देखा नहीं, जब भी किया है हर तमाशा अचानक किया है। भविष्य में इस कार्यक्रम में आओ, तो संभलकर बोलाना।
एंकर (चर्चा समेटते हुए)- खैर....। राजा के मूछें बढ़ाने की शंकाओं को लेकर सब कुछ स्पष्ट हो ही गया है। मैं राजा से करबद्द प्रार्थना करता हूं कि तुरन्त अपनी एक ताजा सेल्फी अपने किसी सोशलमीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके मांगीलाल जैसे दुश्मनों की पोस्टों को तबाह करे। आइए एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं।
( मोतीलाल एंकर से हाथ मिलाकर मांगीलाल के सामने मूछों पर ताव देता है। पुनः ब्रीफकेस बाबा अपना ब्रीफकेस लिए टीवी स्क्रीन के आगे आता है और विभिन्न प्रॉडक्ट दिखाता है।)
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दृश्य-तेरह
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(दोपहर का समय। लाठी से झाड़ू बांधे बेचैन सा राजा कभी खड़ा होता है कभी बैठता है। विभिन्न मुद्राएं बना-बना कर सेल्फियां लेता है। उसके हाथ में लाठी नीचे तथा झाड़ू ऊपर की तरफ है। मंत्री साथ है। थोड़ा सा साफसुथरा कचरा बिखरा है। कोतवाल कचरे की कड़ी पहरेदारी कर रहा है। सब मीडिया कर्मियों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।)
कोतवाल- (कचरे की तरफ काका को आता देख) दीदों में कचरा भरा है क्या, जो कचरा नहीं दिख रहा है?
मंत्री (घड़ी देख कर)- लीला शुरू करें महाराज।
राजा- प्रेस वालों को तो आने दो मंत्री जी। जो प्रचार के दरिया में न फेंकी जाए, उस नेकी का क्या मतलब है?
मंत्री (पत्रकार को फोन लगा कर)- लगता है, सफाई अभियान की कवरेज भूल गए हो?
पत्रकार 1 (फोन पर)- लेकिन मुझे तो सूचना ही नहीं है सफाई अभियान की।
मंत्री- क्यों? तीन दिन से तो पूरे पेज का विज्ञापन दे रहे हैं तुम्हारे अखबार को।
पत्रकार 1- पर्सनली फोन कर दिया करो ना मंत्री जी, मैं अपना अखबार नहीं पढ़ता हूं। (जरा रुक कर) अब ऐसा करो, ईवेंट का फोटो आप अपने मोबाइल फोन से खींच कर मुझे भेजदो, खबर मैं बना लूंगा। हम लोग तो उन घटनाओं पर भी चकाचक खबर बना डालते हैं जो घटती ही नहीं हैं।
मंत्री- नहीं-नहीं, मीडिया कवरेज जरूरी है। यह कोरा साफ-सफाई का मामला नहीं है, शो में अभियान भी जुड़ा हुआ है। दिन-रात जगह साफ करके साफ-सुथरा कचरा बिछाया है राजा ने। मीडिया कवरेज में एक आंच की भी कसर रह गई, तो कचरा हो जाएगा पूरे शो का।
(महिला पत्रकार एवं तीनों पुरूष पत्रकार अपने-अपने कैमरों के साथ भागते-दौड़ते हांफते हुए पहुंचते हैं। राजा लाठी से कचरा इधर से उधर खिसकाता है। सेल्फी लेता है। तरह-तरह के पोज देते हुए पत्रकारों से फोटो खिंचाता है।)
कोतवाल- (दौड़कर झाड़ू सीधी कराते हुए) यों नहीं, यों करिए महाराज झाड़ू को।
राजा- (झिड़कते हुए) मुझे मत सिखा। झाड़ू नीचे की ओर रखने से सेल्फी में नहीं आती है।
मंत्री (बचाव करते हुए)- दरअसल समारोहपूर्वक पहली बार निकाल रहे हैं। (राजा के कान में) कुछ न कुछ मौलिक जोड़कर तमाशे में जान डाल देते हो महाराज।
राजा- अब फेंक आऊं कचरा?
मंत्री- फेंकने में आप बेजोड़ हैं महाराज,(कचरे की ओर हाथ करके) पर इसे नहीं फेंकना है। इस पर कालीन बिछवा देता हूं, कभी फिर जरूरत पड़ सकती है इसकी।
राजा (कचरा समेटते हुए)- फेंकने दो मंत्री जी, किसी भी लीला की रिपीट वैल्यू नहीं होती है।
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दृश्य-चौदह
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(शाम का धुंधलका। राजमहल का द्वार बंद है। द्वार पर कोतवाल तैनात है। वीर रस के कवि विघ्नसंतोषी 'विघ्न' और श्रृंगार रस के कवि चिरप्रेमी 'घनचक्कर' हाथों में डायरियां लिए राजा से भेंट के लिए जा रहे हैं।)
चिरप्रेमी 'घनचक्कर'- वीर रस के अग्निधर्मा कवि आदरणीय विघ्नसंतोषी 'विघ्न'....
विघ्नसंतोषी 'विघ्न'- श्रृंगार रस के महाकवि श्री चिरप्रेमी 'घनचक्कर'....
दोनों कवि (समवेत)- अपनी अनूठी लीलाओं के लिए जगत विख्यात, बोरियत की रामबाण, अवतारी राजा से भेंट हेतु पधार रहे हैं।
दोनों कवि (कोतवाल के पास पहुंचकर डायरियां दिखाते हुए समवेत)- हम कवि हैं...
कोतवाल- तो लिखो-पढ़ो....
दोनों कवि (कोतवाल पर डायरियां तानते हुए)- कवियों को लिखने-पढ़ने के लिए कहता है....
कोतवाल (विनम्रता से)- क्या आदेश है महाकवियों?
चिरप्रेमी 'घनचक्कर' (कोतवाल को टोकते हुए)- महाकवि मैं हूं। यह सिर्फ कवि हैं।
दोनों कवि (समवेत)- राजा से भेंट करनी है।
कोतवाल- भेंट करनी है या लेनी है?
दोनों कवि (समवेत)- भेंट लेने के लिए भेंट करनी है।
(दोनों कवि जबरदस्ती भीतर घुसने की कोशिश करते हैं)
कोतवाल (दरवाजे के पांव लगाए हुए)- असम्भव, कतई असम्भव। महाराज अभी विकास के आंकड़े गिनने में व्यस्त हैं।
चिरप्रेमी 'घनचक्कर'- मतलब?
कोतवाल- मतलब, अपने सोशलमीडिया प्लेटफार्मों पर दिनभर में अपलोडित सेल्फियों के लाईक और शेयर काउंट कर रहे हैं।
विघ्नसंतोषी 'विघ्न'- दरवाजा खोल रहे हो या हम अपनी डायरियां खोलें?
कोतवाल (घबरा कर मंत्री को फोन लगाता है)- मंत्री जी दो कवि खड़े हैं।
चिरप्रेमी 'घनचक्कर' (टोकते हुए)- दो कवि नहीं। एक कवि और एक महाकवि।
कोतवाल- दो कवि नहीं। एक कवि और एक महाकवि। कह रहे हैं कि राजा से भेंट करनी है।
मंत्री- दोनों कवि राजा को उनके तमाम सोशलमीडिया प्लेटफार्मों पर फॉलो करते हों, तो आने दो।
कोतवाल- राजा को उनके तमाम सोशलमीडिया प्लेटफार्मों पर फॉलो करते हो?
दोनों कवि (अपने मोबाइल फोन दिखाते हुए)- यह देखो, हम ही नहीं राजा को फॉलो करते, राजा भी हमें फॉलो करता है।
(दोनों कवि अंदर पहुंचते हैं। राजा अपने मोबाइल फोन में व्यस्त है।)
मंत्री- महाराज दो कवि आए हैं।
चिरप्रेमी 'घनचक्कर'- कवि नहीं, एक कवि और एक महाकवि। और आए हैं नहीं, पधारे हैं।
मंत्री- सॉरी, एक कवि और एक महाकवि पधारे हैं।
राजा- रात होने को है, ऐसे में कवि....
मंत्री- लक्ष्मी-वाहन और स्टेज के कवियों का विचरण इसी समय शुरू होता है महाराज।
चिरप्रेमी 'घनचक्कर'- यह हैं अग्निधर्मा कवि आदरणीय विघ्नसंतोषी 'विघ्न' जी। भड़काते बहुत जोरदार हैं। मारकाट की कविताएं सुनाते हैं और कविसम्मेलनों के लिए मारकाट करते रहते हैं।
विघ्नसंतोषी 'विघ्न'- और यह श्रृंगार रस के महाकवि श्री चिरप्रेमी 'घनचक्कर' जी हैं। श्रोताओं को फुसलाने में इनका कोई तोड़ नहीं हैं महाराज। इनका विस्तृत परिचय इनकी कविताएं खुद देंगीं।
चिरप्रेमी 'घनचक्कर' (डायरी खोलकर काव्यपाठ)- रचना का शीर्षक है 'बजाओ ताली'-
नायिका के घर के इतने लगाए चक्कर,
दर्शकों ने दे डाला निकनेम घनचक्कर,
पैदल-पैदल जाता हूं, जेब पर्स खाली।
बजाओ ताली।।
राह चलते नायिका से हुई सडन टक्कर,
सैंडल निकाल के बोली क्यों बे घनचक्कर,
पांच-सात सैंडल खाए बीस-तीस गाली।
बजाओ ताली।।
मंत्री- वाह!वाह! वाह!वाह!
राजा- मंत्री जी महाकवि चिरप्रेमी 'घनचक्कर' जी को एक सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट की जाएं।
(मंत्री राजा के हाथों 'घनचक्कर' जी को सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कराता है।)
विघ्नसंतोषी 'विघ्न' (डायरी खोलकर सक्रोध)-
शांति-वांति  बोरिंग होती है, आता मजा लड़ाई में।
शांति-वांति  बोरिंग होती है, आता मजा लड़ाई में।।
जीवन में रौनक बनी रहे, झगड़ा और फसाद करो,
पहले सोचो लड़ने की, बाकी सब उसके बाद करो,
जिन चेहरों से क्रोध जगे, सिर्फ उन्हीं को याद करो,
जीने  का  हो लक्ष्य एक, बरबाद हुओ बरबाद करो,
भाई-चारे   की   बात   करे  उसे  पटकिये  खाई  में।
शांति-वांति  बोरिंग  होती  है,  आता मजा लड़ाई में।।
शांति-वांति  बोरिंग  होती  है,  आता मजा लड़ाई में।।
राजा- वाह! वाह! वाह! वाह! वाह! वाह!
(राजा उठता है, विघ्नसंतोषी 'विघ्न' को गले लगता है और सेल्फी लेता है।)
राजा- मंत्री जी अग्निधर्मा कवि श्री विध्नसंतोषी 'विघ्न' जी को दो सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट की जाएं।
(मंत्री राजा के हाथों 'विघ्न' जी को दो सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कराता है।)
चिरप्रेमी 'घनचक्कर' (नाराज होते हुए)- महाराज इन्हें दुगनी भेंट क्यों?
राजा- मौलिक सुनाने वाले का पेमेंट सदैव आधा होता है महाकवि। (सोचकर) मंत्री जी महाकवि चिरप्रेमी 'घनचक्कर' जी को भी एक सौ स्वर्ण मुद्राएं और भेंट की जाएं। एक तो इन्होंने श्रृंगार रस का कवि होकर कविता बिन गाए सुनाई और दूसरा, पिटने की स्वीकारोक्ति करके कविता में भोगा हुआ यथार्थ उदघाटित किया है।
(मंत्री राजा के हाथों 'घनचक्कर' जी को एक सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कराता है। राजा दोनों कवियों के संग सेल्फी लेता है। दोनों कवि भी अपने-अपने मोबाइल फोन से राजा के साथ सेल्फी लेते हैं। दोनों कवि विदा लेकर मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते ही धरने पर बैठ जाते हैं।)
कोतवाल- भेंट हो गई, भेंट मिल गई। अब धरना-प्रदर्शन किस बात का?
दोनों कवि (समवेत)- राजा से हमारी मांग है कि अपने रत्नों की संख्या तत्काल नौ से बढ़ाकर ग्यारह करे, ताकि हम दोनों भी राजसभा में शामिल हो सकें।
(वातवरण में तनाव। कोतवाल उहापोह की स्थिति में।)
चिरप्रेमी 'घनचक्कर'- राजा फिलहाल रत्न की संख्या एक ही बढ़ा दे, तो भी चलेगा। 'विघ्न' जी तो अपनी-पराई मारकाट वाली कविताओं से भी कमा-खा लेंगे।
(विघ्नसंतोषी 'विघ्न'  चिरप्रेमी 'घनचक्कर' का गला पकड़कर मारपीट करने लगता है।)
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दृश्य-पन्द्रह
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(प्रेसकांफ्रेंस कक्ष। दोपहर बारह बजे का समय। मंत्री और एक महिला पत्रकार तथा तीन पुरुष पत्रकार कैमरों के साथ बैठे राजा की प्रतीक्षा कर रहे हैं हैं। पत्रकार बार-बार घड़ी देख कर मंत्री की ओर शिकायती नजर डालते हैं। राजा की डिग्रियां प्रेस के माध्यम से प्रजा को दिखाई जानी हैं।)
मंत्री- धैर्य रखें, मामला शिक्षा से सम्बन्धित है ना, इसलिए राजा वैसे ही आएगा जैसे पढ़ने जाता था।
कोतवाल- (आगे-आगे रास्ता बनाता हुआ आवाज लगाता है) महाराज अपनी डिग्रियों की फाइल लेकर पधार रहे हैं।
(राजा प्रेसकांफ्रेंस कक्ष में जाता है। राजा ने वैसे ही कपड़े पहन रखे हैं जैसे दीक्षांत समारोह में डिग्री मिलने पर पहने जाते हैं। पीछे-पीछे कंसल्ट गुरु है।)
कंसल्ट गुरु- (प्रेसकांफ्रेंस कक्ष में प्रवेश करते राजा के कान में) महाराज, आपको बिल्कुल चुप रहना है। एकदम चिड़ीचुप्प। जान निकल जाए, लेकिन आवाज नहीं निकलनी चाहिए।
(राजा के हाथ में पांच-सात कागज रखी फाइल है। कुर्सी पर बैठते ही राजा का माइक मंत्री अपनी ओर खींच लेता है। कंसल्ट गुरु और सिपाही कक्ष में एक तरफ खड़े हैं।)
मंत्री- नमस्कार, पत्रकार बंधुओं.......
पत्रकार 1- (टोकता है) मंत्री जी आप नहीं, राजा ही को बोलने दें।
मंत्री- मैं राजा ही की ओर से बोल रहा हूं। मीडिया से बेहतर कौन जानता है कि महाराज बोलते हैं, तो मोती झड़ते हैं। महाराज का मुंह बन्द ही रहने दें, अन्यथा इनके बोलते ही विरोधियों को मुद्दा मिल जाएगा कि राजा ने पत्रकारों पर मोती लुटाए।
(राजा कुछ कहने की कोशिश करता है।)
मंत्री (राजा को कान में समझाते हुए) आप नहीं महाराज। यदि पत्रकारों से संवाद करेंगे, तो सन्देह प्रमाणित हो जाएगा कि आपको डिग्री मिली नहीं, ली है।
मंत्री- (बात जारी रखते हुए) राजा की डिग्री पर सवाल उठाने वालों यह देखो, राजा (डिग्री दिखाते हुए) की एम.ए. की चौबीस कैरेट डिग्री।
(प्रशंसा सुनकर राजा सेल्फी लेता है। पत्रकार डिग्री को नजदीक से देखने जाते हैं।)
कोतवाल- (उन्हें पीछे धकेलते हुए) कृपया दूरी बनाके रखें, ताकि दोस्ती बनी रहे।
पत्रकार 1- डिग्री कम्प्यूटरीकृत है, जबकि उस दौर में तो कम्प्यूटर का अविष्कार भी नहीं हुआ था?
मंत्री- राजा जिस यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे, वहां कम्प्यूटर अपने आविष्कार से पहले ही चलन में आ गया था।
पत्रकार 2- क्या राजा ने बी.ए. भी कर रखा है?
(मंत्री धीरे से राजा से बी.ए. के बारे में पूछता है। राजा मना कर देता है। फिर कंसल्ट गुरु की ओर देखता है। उसकी सहमति मिलने पर थोड़ा सा सोचकर फाइल से बी.ए. की डिग्री निकाल कर मंत्री को देता है।)
मंत्री- (राजा की बी.ए. की डिग्री दिखाते हुए सगर्व) लो, राजा ने तो बी.ए. भी कर रखा है।
(राजा सेल्फी लेता है।)
पत्रकार 3- बी.ए. की डिग्री थी, तो एम.ए. के बाद क्यों दिखाई?
मंत्री- (राजा से कान में पूछकर) राजा ने बी.ए. एम.ए. के बाद किया था।
महिला पत्रकार 4- राजा क्या उन संस्थानों के पते-नक्शे बता सकते हैं जहां पढ़ने गए होंगे? परीक्षाएं दी होंगीं?
(महिला पत्रकार के सवाल का जवाब राजा देने लगता है, तो मंत्री उसे रोकता है। मंत्री राजा से पूछता है। राजा गर्दन हिलाकर इनकार का संकेत करता है।)
मंत्री- बात बहुत पुरानी हो गई है। हो सकता है राजा अपनी जगह किसी और को पढ़ने भेजते हों, अपनी परीक्षाएं डमी कैंडीडेट से दिलवाई हों। आप तो जानती ही हैं कि डिग्री-डिप्लोमा-सर्टिफिकेट कोई स्वर्ग तो है नहीं कि खुद के मरने पर ही मिलता है।
पत्रकार 1- तो क्या राजा ने क्लास अटैंड नहीं की?
(राजा छोटी अंगुली उठाकर कंसल्ट गुरु की तरफ लघुशंका का इशारा करता है।)
मंत्री- अगला सवाल पूछिए। राजा के अंगुली उठाने से साफ हो ही गया है कि इन्होंने कभी-कभार ही सही, क्लास तो अटैंड की थी।)

पत्रकार 2- राजा के शिक्षा प्राप्ति का क्रम क्या रहा होगा? स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या....?
मंत्री- (रोकते हुए) यह क्रम-व्रम तो मुझे अपना ही याद नहीं है। क्रम-व्रम में क्या धरा है? कुल मिलाकर फाइल में डिग्री होनी चाहिए। इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैट्रिक ग्रेजुएशन के बाद की है या यूनिवर्सिटी नर्सरी से पहले।
(राजा सेल्फी लेता है। मंत्री पहले एम.ए. और फिर बी.ए. की डिग्रियां दिखाते हुए) यदि किसी को राजा की डिग्रियों पर संदेह हो, तो वह अभी तो सिर्फ दूर से एक बार और देख सकता है। आज से यह चेप्टर सदा के लिए क्लोज हो रहा है। इस प्रेसकांफ्रेंस में राजा की डिग्रियां दिखाया जाना, राजा की डिग्रियों का अंतिम दर्शन समझिए।
(राजा डिग्रियां समेट कर फाइल में रखने लगता है।)
पत्रकार 3- राज ने मैट्रिक.....
पत्रकार 2- (पत्रकार 3 को टोकता है) क्यों प्रेसकांफ्रेंस को लम्बा करते हो? राजा जब इतना पढ़ा-लिखा है, तो मैट्रिक न भी कर रखी है तो क्या फर्क पड़ता है?
मंत्री- देखिए, जहां तक राजा के मैट्रिक करने, न करने का सवाल है। आप नौकरीपेशा लोग हैं। सब अच्छे से समझते हैं कि मैट्रिक के सर्टिफिकेट पर डेट ऑफ बर्थ छपी होती है। इसलिए जो जन्मता नहीं, अवतार लेता है, वह मैट्रिक नहीं करता। करनी भी नहीं चाहिए।
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दृश्य-सोलह
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(संध्या का समय। मंच के एक तरफ से राजा ब्रीफकेस बाबा, जिसके हाथ में ब्रीफकेस है, की पीठ पर हाथ धरे दूसरी तरफ को जाता है। मंत्री और कोतवाल पीछे-पीछे हैं। मंच के बीच राजा और ब्रीफकेस बाबा ज्योंही सामने देखते हुए खड़े होते हैं, कोतवाल अपने मोबाइल फोन से दोनों की फोटो खिंचाता है। फोटो खींचते समय मंत्री बीच में आता है, राजा उसे धक्का देकर परे करता है। फिर राजा अपना मोबाइल निकाल कर ब्रीफकेस बाबा के साथ सेल्फी लेता है। सब दूसरी ओर चले जाते हैं।
     मंच के दूसरी तरफ से चलता हुआ राजा मंच के मध्य में आता है। राजा के साथ में न मंत्री है और न कोतवाल। मंच के मध्य में राजा की भेंट सौदागर और उसकी पत्नी से होती है। सौदागर अपना एक हाथ राजा की पीठ पर रखता है और राजा सौदागर की पत्नी के दोनों हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़े रखता है। फिर एक हाथ छोड़ कर राजा जेब से अपना मोबाइल निकाल कर सौदागर और उसकी पत्नी के संग सेल्फी लेता है। सेल्फी में सौदागर की पत्नी राजा से सटकर खड़ी है। सौदागर और उसकी पत्नी विदा लेते हैं।
    राजा महल में जाता है। कोतवाल द्वार पर सलाम करता है और मंत्री अन्दर अगवानी। राजा सिंहासन पर बैठता है। सेन्टर टेबल पर पानी से भरे दो ग्लास रखे हैं।
    हंसता-खिलखिलाता राजा अपना मोबाइल देखने लगता है। अचानक दुखी होकर मौन रुदन करने लगता है।
    कोतवाल राजा को काफी देर तक रुदन करता देख ट्रे में रखकर पानी का ग्लास ले जाता है।)
मंत्री (कोतवाल से पानी की ट्रे लेकर राजा की ओर बढ़ाते हुए)- पानी ग्रहण करें महाराज। (राजा के गर्दन हिलाकर मना करने पर) पाणिग्रहण करने को नहीं महाराज, पानी ग्रहण करने को निवेदन कर रहा हूं।
(कोतवाल मंत्री से इशारे से राजा के रुदन का कारण जानना चाहता है।)
मंत्री- महाराज ने दो दुर्लभ सेल्फियां ली थीं। एक ब्रीफकेस बाबा के साथ और दूसरी सौदागर और उसकी पत्नी के साथ। खुशी के अतिरेक से हाथ हिल गया और दोनों ही सेल्फियां बेहद धुंधली आ गईं। क्षति अपूरणीय हुई है। (रुक कर राजा से) आपका दुःख मैं समझता हूं महाराज। कैमराजीवी के लिए तस्वीर ही शमशीर होती है। (कोतवाल से पानी का ग्लास लेकर राजा की ओर बढ़ाते हुए) पी लें महाराज। (सामने रखे पानी के दो ग्लासों की ओर इशारा करके) आपके आंसुओं से दो बांध ओवरफ्लो होने को हैं। पानी नहीं पीएंगे और इसी तरह आंसू बहाते रहेंगे, तो शरीर में पानी की कमी हो जाएगी और राज्य में बाढ़ के हालात हो जाएंगे। (कोतवाल से) तुमने ब्रीफकेस बाबा के साथ महाराज की जो तस्वीर ली थी वह तो फॉरवर्ड करदो। कुछ तो दुःख हल्का हो महाराज का।
(कोतवाल इधर-उधर देखने लगता है।) इधर-उधर क्या देखते हो? करदो अभी महाराज को फॉरवर्ड। कहां है तुम्हारा मोबाइल फोन?
कोतवाल- (गर्दन लटकाकर) जी, बांके पान पैलेस से रिचार्ज करा कर लौट रहा था कि कोई रास्ते में मार ले गया।
(कोतवाल की बात सुनकर राजा मौन रुदन और तेज कर देता है। अचानक कंसल्ट गुरु एक कैमरामैन को लेकर आता है। कैमरामैन रोते हुए राजा की अलग-अलग एंगल से कई फोटुएं खींच कर चला जाता है। राजा रोना छोड़कर सेल्फियां लेने लगता है।)
मंत्री (बाहर तक छोड़ने आए कंसल्ट गुरु से)- माइनस को प्लस में बदलना है कंसल्ट गुरु।
कंसल्ट गुरु- बेफिक्र रहो मंत्री जी। तमाशेबाज के आंसू गोबर की तरह होते हैं। गिरते हैं, तो भी कुछ ना कुछ लेकर ही उठते हैं। अब कल के अखबारों में राजा का फोटो छपेगा। इस कैप्शन के साथ कि राज्य की जबरदस्त धार्मिक और आर्थिक प्रगति देखकर भावुक हुआ राजा।
मंत्री- (थम्सअप का संकेत करते हुए) मास्टर स्ट्रोक!
कंसल्ट गुरु- कल सुबह देखना। ऐसा मास्टर स्ट्रोक होगा कि राजा के आंसुओं वाली तस्वीर अखबारों में देख सकें, तो संसार के सारे मगरमच्छ सदमे में आ जाएं।
(मंत्री हंसकर विक्ट्री का चिन्ह बनाते हुए कंसल्ट गुरु को विदा करता है।)
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दृश्य-सतरह
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(सुबह दस बजे का समय। बाजार में हल्की चहल-पहल। राजमहल के द्वार पर तैनात कोतवाल अपने नए मोबाइल फोन में व्यस्त है। कोने में सौदागर लैपटॉप पर काम कर रहा है।)
बांके (दुकान में सफाई करते हुए गुनगुना रहा है)-
राजा गजब तमाशेबाज।
जब देखो तब नया तमाशा, तनिक न आवै लाज।।
काका (घर से आता हुआ। बांके से व्यंग्यपूर्वक)- सफाई अभियान की लॉन्चिंग से लोग साफ-सफाई तो करने लगे हैं।
बांके- तमाशेबाज राजा के मुकाबले कोई दूसरा क्या साफ-सफाई करेगा? (रुक कर) इसे कहते हैं मार्केटिंग। सौदागर ने गांधी की लाठी झाड़ू से बंधवा डाली।
(सौदागर बांके की बात पर मुस्कुराता है। बांके का फोन बजता है।)
बांके- हैलो।
उधर से महिला स्वर- सर, प्राइम लोकेशन पर थ्री बीएचके अवेलेबल है। वैरी लो प्राइस। उसी के रिगार्डिंग कॉल किया है?
बांके- मैडम, इस राजा के राज में जिस घोंसले में रह रहे हैं वही बचा रहे, तो राजा की कृपा है।
(बांके फोन काटता है। काका को एक इलायची देता है।)
काका- (इलायची खाते हुए) फोन घर से था?
बांके- घर से नहीं, घर के लिए था।
काका- (सोचकर) क्यों बांके, देखने-सुनने में तो नहीं आई, पर राजा के रानी-वानी तो होगी?
बांके- सुनते हैं, रानी तो है नहीं और (हल्का सा हंसता हुआ) वानी हो, तो पता नहीं। वैसे काका रानी ही होती, तो राजा मूड की बात रेडियो से क्यों करता?
काका- बांके, तुम बता रहे थे कि 'कौन बनेगा राजा' सात समन्दर पार से तय होता है?
बांके- (सौदागर की तरफ इशारा करके) वह सौदागर देख रहे हो ना, वही है बाजारशाही को जारशाही से जोड़ने वाली कड़ी।
   चाबी वाला खिलौना चुनने का एक प्रॉसेस होता है काका। इसे इस रूपक से समझो।
    जिस राज्य की गद्दी पर अपना हित साधक राजा बिठाना हो, बाजारवादी वहां के नागरिकों के गले में लटकाने के लिए घण्टियां भिजवाना शुरू करते हैं। विभिन्न धातु, नाना रूप, कई-कई आकार-प्रकार और अलग-अलग ध्वनियों वाली एक से एक आकर्षक घण्टियां। वर्ल्डबैंक, डब्लूटीओ, आईएमएफ पूरे खेल को प्रायोजित करते हैं। घण्टियों की ब्रान्डिंग और मार्केटिंग के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाए जाते हैं। बम्पर डिस्काउंट, कैशबैक, बाई टू गेट थ्री। सेलिब्रेटी उन घण्टियों को स्टेटस सिम्बल प्रचारित करते हैं। धर्मरक्षक घण्टियों को मोक्षदायिनी सिद्ध कर डालते हैं। झाड़फूंक वाले तावीज कहकर बेचने लगते हैं। राष्ट्रवादी इस प्रतिस्पर्धा के चलते घण्टियां फटाफट गले में लटकाने लगते हैं कि हमारा दुश्मन हमसे पहले न लटका ले। राज्य का वातावरण इस कदर घण्टीमय हो उठता है कि जिन कवियों, कलाकारों की जिम्मेदारी जिस घण्टी को पूंजीवाद के गले में बांधने की होती है, वे तक उससे पूंजीवाद की आरती करने लगते हैं। 
काका- तो क्या कोई भी इन घण्टियों के पीछे की चाल नहीं समझता?
बांके- समझते हैं। कई समझते हैं और आवाज भी उठाते हैं, लेकिन उनकी आवाज घण्टियों के शोर में दब जाती है।
काका- अच्छा फिर क्या होता है, जब सब नागरिक गले में घण्टी लटका लेते हैं?
बांके- दो पाये से चौपाये में बदल जाते हैं। घण्टी की ध्वनि से सौदागर के लिए हर एक चौपाये की निगरानी आसान हो जाती है कि कौन कहां है और क्या कर रहा है?
काका- (सोचकर) मानलो, कोई चालाक बैल एक ही जगह खड़ा-खड़ा गर्दन हिलाकर घण्टी बजाने लगे तो?
बांके- सौदागर तुरन्त उस बैल को राजा चुन कर उसके सिर पर मुकुट रख देता है। उसकी घण्टी की साइज भी सबसे बड़ी करदी जाती है। फिर सौदागर उस एक चौपाये की निगरानी रखता है और राजा बना वह चौपाया शेष चौपायों की।
काका- मानलो, दो चालाक बैल खड़े-खड़े गर्दन हिलाकर घण्टी बजाने लगें, तो सौदागर उनमें से किसको राजा चुनेगा?
बांके- तो दोनों में से वह बैल राजा चुना जाएगा जिसकी डिग्रियां दूर से ही दिखाने योग्य हों।
(दोनों हंसकर राजमहल की तरफ देखते हैं।)
सिपाही- (मंत्री को फोन पर पूछता है) मंत्री जी भक्त मैसेज कर-करके पूछ रहे हैं कि बोरियत जानलेवा होती जा रही है। राजा आज लीला कितने बजे शुरू करेगा और लीला का सब्जेक्ट क्या रहेगा?
(मंत्री के बुलावे पर सिपाही राजमहल में जाता है और एक बोर्ड मंच पर लाकर धरता है। जिस पर लिखा है- भूख भगाओ, भोजन बचाओ)
बांके- (एक ग्राहक से मुक्त होते ही गुनगुनाता है) राजा गजब तमाशेबाज।
जब देखो तब नया तमाशा तनिक न आवै लाज।।
भूख प्यास विपदा बेकारी,
खूब दिखाता खेल मदारी,
लोग बजाएं ताली सुन-सुन डमरू की आवाज।
राजा गजब तमाशेबाज।
(कोतवाल और मंत्री दो कुर्सियों पर चढ़ कर एक रस्सी तानते हैं। जिससे जलेबियां बंधी लटक रही हैं। राजा का आगमन। राजा दोनों हाथ पीछे किए, उछल-उछल कर जलेबियां खाने का अभिनय करता है। जिसे देख-देख कर राजा के भक्त बेहद उल्लसित हैं और अलग-अलग कोणों से वीडियो बना रहे हैं, फोटो खींच रहे हैं। टीवी न्यूज स्टूडियो से एंकर वहां से रिपोर्टिंग कर रहे अपने संवाददाता से बात करता है। राजा रस्सी से तोड़कर एक जलेबी संवादाता को देता हुआ भीतर चला जाता है जिसे खाते हुए संवाददाता रिपोर्टिंग करता है।)
एंकर- मेरी आवाज आ रही है अधीर?
अधीर- दो माह की बकाया सेलरी कल अकाउंट में आ गई है, सो तुम्हारी आवाज एकदम क्लियर आ रही है सुधीर।
एंकर- राजा के 'भूख भगाओ, भोजन बचाओ' प्रॉजेक्ट के क्या मायने हैं अधीर?
अधीर- सुधीर, राजा ने रस्सी से जलेबियां लटकाकर नया कंसेप्ट दे दिया है कि भूख की समस्या का हल अब भाग-दौड़ से नहीं, उछल-कूद से होगा। राजा के भक्त मारे खुशी के नर्तन कर रहे हैं।
एंकर- भक्तगण अतिरिक्त खुश क्यों है?
अधीर- भक्तों का कहना है कि अब उन अमीरों को भी छठी का दूध याद आएगा, जो बिना मेहनत की खाते रहे हैं और अब खाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
एंकर- राजा के इस 'भूख भगाओ, भोजन बचाओ' वाले मास्टर स्ट्रोक पर राजा के विरोधियों की भी क्या कोई प्रतिक्रिया आई है सामने?
अधीर- राजा के विरोधी किस मुंह से प्रतिक्रिया व्यक्त करते सुधीर? बेचारे विरोधियों के मुंह में तो राजा ने यह कह कर पहले ही दही जमा दिया है कि अगले सप्ताह से राज्य में दूध-दही की नदियां बहेंगीं।
एंकर- बहुत-बहुत धन्यवाद अधीर 'भूख भगाओ, भोजन बचाओ' प्रोजेक्ट की तमाम जानकारी देने के लिए।
(चारों भक्त मंच के मध्य आते हैं।)
भक्त 1- मास्टर स्ट्रोक। राजा का एक और मास्टर स्ट्रोक। अगले सप्ताह से राज्य में दूध-दही की नदियां बहेंगीं।
भक्त 2- नदी?
भक्त 3- नदी नहीं, नद्दियां। दूध-दही की नद्दियां।
भक्त 4- क्यों बन्धुओं, दूध और दही एक ही नदी में बहेंगे या दोनों के लिए अलग-अलग नदियां होंगीं?
भक्त 1- राजा ने अभी यह तय नहीं किया है। अभी तो इस पर मंथन चल रहा है कि पानी वाली नदियों में ही दूध-दही बहाया जाए या दूध-दही बहाने के लिए नदियां अलग से बनाई जाएं।
भक्त 2- मेरे विचार से वर्तमान नदियों को ही तीन भागों में बांटा जाएगा। पानी वाली, दूध वाली और दही वाली।
भक्त 3- नहीं, नदियां दो ही भागों में बांटी जाएंगीं। पानी वाली और दूध वाली। दही के लिए दूध वाली नदियों में जामण डाला दिया जाएगा।
भक्त 4- ऐसा भी सम्भव है कि एक ही नदी में रात में पानी बहे और दिन में दूध-दही।
भक्त 1- क्यों दिन में दूध-दही बहेगा, तो लोग पानी क्या रात में ही भरेंगे?
भक्त 2- बरसात में दूध-दही की नदियों में पानी की मिलावट से बचाव के क्या उपाय होंगे?
भक्त 3- दूध-दही की नदियां क्या उसी समुद्र में गिरेंगीं जिसमें पानी की नदियां गिरती हैं या राजा दूध-दही की नदियों के गिरने के लिए समुद्र भी नया बनाएगा?
भक्त 4- क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो? राजा चुटकियों में सब प्रबन्धन कर डालेगा।
काका- चलता हूं बांके, डेयरी से दूध लेकर जाना है, नहीं तो न दूध-चाय मिलेगी और न दही-मठा।
बांके- बस, सप्ताहभर की दिक्कत और है काका, फिर तो दूध-दही की नदियां बहने ही लगेंगी।
(मंच के एक कोने में दो भक्त कुर्सियों पर चढ़ कर बिना जलेबियों वाली खाली रस्सी पकड़ते हैं। दो भक्त हाथ पीछे कर राजा की तर्ज पर उछल-उछल कर जलेबियां खाने का अभिनय करते हैं। उनके थकने पर उछल-कूद करने वाले भक्त रस्सी पकड़ते हैं और रस्सी पकड़ने वाले उछल-कूद करने लगते हैं। राजमहल के भीतर डायनिंग टेबल के एक ओर सौदागर बैठा है और दूसरी ओर राजा और ब्रीफकेस बाबा। तीनों हंसते-हंसाते गरमा-गरम जलेबियां खाते हैं। सौदागर की पत्नी जलेबियां परोसती है। कंसल्ट गुरु उसे निर्देश देता रहता है कि किसकी प्लेट में और परोसनी है। कोतवाल मुख्य द्वार पर पहरेदारी करता है। मंत्री हंसता-मुस्कुराता हुआ बाहर व्यर्थ उछलकूद करते भक्तों की फोटुएं खींचता है, वीडियो बनाता है। दर्शक कभी व्यर्थ उछलकूद करते भक्तों को देखते हैं, तो कभी साथ बैठकर जलेबी खाते सौदागर, राजा और ब्रीफकेस बाबा को।)
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दृश्य-अठारह
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(संध्या का समय। पृष्ठ भाग में राजदरबार का दृश्य। मंच के मध्य में नाटक के सभी पात्र समूह में गीत के ये दो बन्ध गाते हैं। राजा गीत के भावार्थ के अनुसार तरह-तरह की अदाएं दिखाता है।)

गीत
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राजा गजब तमाशेबाज।
जब देखो तब नया तमाशा, तनिक न आवै लाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

जो भी जाता लेकर आशा,
टरका  देता  दिखा तमाशा,
ठगने की अपनी शैली है, अपना ही अंदाज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।

सौदागर    चमचे    दरबारी,
मिलजुल मौज उड़ाते भारी,
महिमा अपरम्पार तुम्हारी, झूठों के सरताज।।
राजा गजब तमाशेबाज।।
                     (पर्दा गिरता है।)
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वसन्त पंचमी
फरवरी 5, 2022