धनीतंत्र का मनीमंत्र है,
धंधायुग यह धंधायुग है।
सपनों का शोरूम खोल लो, या डर की दूकान सजाओ,
जग बाजार सभी जन गाहक, कुछ भी बेचो खूब कमाओ,
जड़-चेतन धंधे की जद में,
यह पूंजी का फंदायुग है।
धनीतंत्र का मनीमंत्र है,
धंधायुग यह धंधायुग है।
तुलसी मीरा सूर कबीरा, राम कृष्ण की कथा बेचिए,
धन का गिरी लांघना हो तो, अपाहिजों की व्यथा बेचिए,
चैरीटी का बिजनस करिए,
दान दक्षिणा चंदायुग है।
धनीतंत्र का मनीमंत्र है,
धंधायुग यह धंधायुग है।
योग बता कसरत बेचो जी, साबुन कह मुल्तानी बेचो,
गंगाजल की छाप लगा कर, हैण्डपम्प का पानी बेचो,
माल नहीं लेबल बिकता है,
आंखों वाला अंधायुग है।
धनीतंत्र का मनीमंत्र है,
धंधायुग यह धंधायुग है।
सत्य अहिंसा तकली खादी, चरखे की चकरी बिकती है,
गांधीछाप जेब में हों तो, गांधी की बकरी बिकती है,
अर्थ मिले अर्थी उठती है,
धन के बदले कंधायुग है।
धनीतंत्र का मनीमंत्र है,
धंधायुग यह धंधायुग है।
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sundar rachana
ReplyDeleteSatya vachan sir
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